श्राद्ध और पितरो का पिंड दान का वास्तविक इतिहास क्या है ? इस वीडियो में इसका सम्पूर्ण इतिहास आपको पता चल जायेगा | What is the real history of Shraddha paksh and Pitro ka pind daan? In this video, you will know the entire history.
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[संगीत] नमस्कार दोस्तों स्वागत है आजकल भारत में ऐसी तमाम एंड shradhaen हैं जो khuleaam प्रैक्टिस करवाई जा रही हैं और जिनका वजूद महज ही कुछ 100 वर्षों का है कुछ तो मुश्किल से 50 से 100 साल पुरानी है इन्हीं में से एक प्रैक्टिस है pitaron का पिंडदान यानी की अपने purvajon को ऐन डैन देना पांडु पुरोहितों और brahmanon के मदद से और इस तरह की andhshradha paramparaon के कारण आज का सामाजिक ताना बना लोगों की खून पसीने की कमाई को अंधविश्वास पाखंड के गहरे दलदल में dhakelne का प्रयास किया जा रहा है तो दोस्तों
इस वीडियो को अंतिम तक dekhiaega इस नपुंसक प्रथा का आज मैं पूरा कट्ठा चिट्ठा खोलने वाला हूं सबसे पहला तो सवाल यहां पर यह उठाता है की यह पितृ का पिंड है क्या भारत में ज्यादातर ब्राह्मण samprday के अनुयायी अपने parijanon के मरने के बाद 13 दिन सुख मानते हैं इस बीच वह तरह-तरह के कर्मकांड brahmanon द्वारा करवाते हैं ब्राह्मण samprday ने ऐसी व्यवस्था बना राखी है jismein वह सर्व है और बिल्कुल haramkhoron की तरह उच्च पद पर बैठकर अपने तमाम anuvaiyon को अनेक जाती गोत्र वर्ण में बांट रखा है और उनकी पुरी दिन
चर्या को अपने द्वारा पूछ-पूछ कर करवाया जाने का प्रावधान रचना रखा है उदाहरण के तौर पे एक ब्राह्मण samprday का अनुयायी अपनी शादी भी एक ब्राह्मण को रात भर आंगन में रखकर अपनी दुल्हन के साथ mantron करता है तब जाकर उसकी शादी संपन्न मणि जाती है उसी तरह से जब उसका बच्चा होने वाला होता है उसका नामकरण भी ब्राह्मण ही करवाता है और कई केस तो ऐसे हैं गर्भाधान संस्कार भी ब्राह्मण करवाता है औरत का इसकी डिटेल मैंने वीडियो 81 में दे राखी है उसका लिंक भी डिस्क्रिप्शन बॉक्स में है उसकी आप डिटेल देख सकते हैं कितनी घ
टिया प्रथा है यह इसके अलावा जब भी कोई नया कार्य हो गृह प्रवेश हो घर banvana हो दुकान khulvane हो या कोई अन्य कार्य हो तो ब्राह्मण ही आकर वह करवाता है फिर मरने के बाद सारा क्रिया कर्म 13 दिन का ब्राह्मण ही करवाता है और इससे भी पेट नहीं भरा तो हर साल हिंदी कैलेंडर के अश्विन माह में सभी को अपने मारे हुए purvajon को जाकर डैन देना होता है और उसके लिए कुछ जगह फिक्स किए गए हैं jismein से गया सबसे ज्यादा फेमस है दरअसल इस तरह की प्रैक्टिसेज से ब्राह्मण पंडित पुरोहित मोटा मल hadpate हैं और आम जनता अपने खू
न पसीने की कमाई लूटा कर खुद को सांत्वना देने का प्रयास करती है की उसके पूर्वज यहां से अन्य खा लेंगे सोचिए कितनी murkhtapurn बात है अब यहां पे दूसरा प्रश्न उठाता है की लोग andhshradha में fanste क्यों हैं दरअसल andhshradha के धंधे के लिए दर और लालच ये दोनों ही खाद पानी का कम करते हैं इन्हीं दोनों की बैसाखी पर पूरा अंदर श्रद्धा का बाजार खड़ा किया गया है यहां भी pitaron को पिंड एन देने पर पूर्व जो की आत्मा भटकती बताई गई है और जब tathakthit आत्मा bhatkega तो भूत-प्रेत की घटना brahmanvadiyon द्वारा m
rutak के परिवार के rishtedaron द्वारा pracharit करके उसे इंसान को मजबूर कर दिया जाएगा या वह इंसान खुद ही मजबूर हो जाएगा की चलो ये करवा लेते हैं कम से कम लोग तो कामता ने मरेंगे गरुड़ पुराण तो धमकी टकड़े डालता है की जिनका पिंडदान नहीं होता unhen प्रीति योनि मिलती है और उसी योनि में निर्जन वनों में bhatkana पड़ता है पिंडदान से ही प्राणी का नया शरीर बनता है और इस शरीर से वह परलोक विचरण करता है इसके लिए vakayde गरुड़ पुराण में तमाम तरह की कहानियां कपूर कल्पित कपोल कल्पित करके बताई गई है दूसरी तरफ mru
tak और उसके परिवार को यह लालच भी रहता है की कहीं अगर स्वर्ग नरक हुआ तो उसका स्वर्ग मिलने से रह जाएगा और वहीं उसके घर में अगर छोटी-मोटी ghatnayen घटने लगती है जो की अक्षरा हर घर में घटती हैं तो वह उसे pitaron का एन देने की घटना मैन baithata है और फिर वह इन धूर्त brahmanon के जाल में फैंस जाता है अब यहां पे एक तीसरा प्रश्न खड़ा होता है की वह कौन-कौन सी कहानियां है जिसके आधार पर pitaron के पिंड की कहानी गढ़ी गई है दरअसल brahmanon ने भारतीयों को lootane के लिए तरह-तरह की कहानियां गढ़ी है और वो सारी
कहानियां ही भारत के जो मूल दर्शन द बौद्ध दर्शन जैन दर्शन क्योंकि बौद्ध दर्शन भारत से लगभग पुरी तरह से गायब कर दिया गया था 12वीं 13वीं सदी के बाद तो इसीलिए उसकी तमाम tithiyon पर उसके ही रीति riwajon को तोड़ मरोड़कर स्वर्ग नरक देवी देवता घुसा कर पाखंड अंधविश्वास घुसा कर उसी को ही ब्राह्मणवादी रीति रिवाज परंपरा बना दिया गया और unhin के ही प्रतीक chinhon को जस्टिफाई करने के लिए तरह-तरह की पाखंडी और अंदर श्रद्धा वाली कहानियां रच दी गई jismein से एक कहानी रची गई गयासुर की जो की वायु पुराण में आता है u
smein कहा गया एक गया नाम का असुर घर तप कर रहा था तब के द्वारा उसने इतनी सीधी प्राप्त कर ली की वह जिस किसी को भी छू देता वह मनुष्य हो या जानवर सीधे स्वर्ग पहुंचने लगा इससे देवताओं को बड़ी चिंता हुई स्वर्ग पहुंचने वालों की संख्या बढ़ाने के कारण वहां स्थान कम पड़ने लगा देवताओं ने अपने चिंता विष्णु के सामने व्यक्त की और विष्णु ने युक्ति के साथ गया को मार दिया साथ ही यह वरदान भी दिया की जिस स्थान पर वह मारा है वह स्थान उसी के नाम से जाना जाएगा और वहां जिस व्यक्ति का पिंडदान किया जाएगा वह सीधा ब्रह्मल
ोक pahunchega तो dekhiae यहां पे जो गयासुर है उसको विष्णु ने मार दिया क्यों क्योंकि गयासुर जिसको भी छू देता था या जो भी लोग उसके पास जाते द वह सीधे स्वर्ग पहुंच जाते द और हम जानते हैं की गया क्षेत्र बुद्धिस्ट स्थान है बुध को वहां पे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी ऐसा बताया गया है और जो भी लोग बोध मार्गी द वो निर्माण की प्राप्ति अर्थात की आप अपना जीवन अच्छे से काटकर चले जाएं इस बात को मानते हैं तो यही चीज है यहां पर बताई जा रही हैं बस गया सुर को मार दिया विष्णु ने और अब क्या कहा की pitaron का पिंड दोगे
तो निर्वाण की प्राप्ति होगी या brahmanvadiyon की कहानी के अनुसार तब ब्रह्म लोक जाओगे तो इस तरह से फालतू और falude की कहानी जो भारत के मूल परंपरा थी उसी को ढकने के लिए बनाई गई और बीच में brahmanon ने अपने हलवे पुरी का अपने पेट पूजन का अपने hramkhori के धंधे का भी भरपूर प्रदर्शन किया कागज पर देवी देवताओं के नाम पर अब यहां पे सवाल खड़ा होता है की फिर ये गयासुर की कहानी कितनी पुरानी है अगर यह माइथोलॉजी है तो इसका वास्तविक इतिहास क्या है अब इस गया सूर्य की जो कहानी थी वायु पुराण में उसकी थोड़ा और डि
टेल्स सुने जब गया सुर के दर्शन और स्पर्श से सभी जीव मुक्ति प्राप्त कर वसंत जाने लगे तब इंद्र ब्रह्मा आदि देवगढ़ फिर दौड़े दौड़े विष्णु के पास गए विष्णु ने ब्रह्मा से गया सुर का शरीर यज्ञ निर्मित मांगने के लिए कहा ब्रह्मा ने गया सुर का शरीर यज्ञ के लिए मांग लिया अब सोचिए यह karvaega तो usmein गया नरबलि देनी है ये तो कुछ भी नहीं है आगे सुने गयासुर उत्तर दिशा की ओर सर रखकर सो गया यज्ञ के समाप्त होने पर सभी देवताओं सहित ब्रह्मा गयासुर के सर पर सवार हो गए उससे गयासुर हिलने लगा तो dekhiae कितनी बेतुकी
बात है की इतने सारे देवी देवता जो पूरा ब्रह्मांड रच दिए हैं पूरा दुनिया चला रहे द अब गया मैं आके गया सूर्य के सर पे चढ़ रहे द इतनी behudi भारी कहानी इन brahmanon ने लिख राखी है और भारतीयों को कितना मूर्ख बना रखा है इसके बाद इससे भी पेट ना भरा तो उन्होंने एक बड़ा सिला यानी बड़ा पत्थर का टुकड़ा लाकर गया सुर के शरीर पर रख दिया तब भी गया शुरू का हिलना बंद नहीं हुआ तब विष्णु आता है और गधा लेकर आता है और वह जो पत्थर जो गया सुर के शरीर पर रखा हुआ था उसी पर खड़ा हो जाता है तो सारे देवी-देवता खड़े हैं ब
्रह्मा भी खड़ा है फिर पत्थर भी खड़ा है और उसी पर आकर विष्णु भी खड़ा हो गया तब जाकर गया शुरू का और इस तरह जैसे विष्णु ने गया सुर को मार दिया और फिर वरदान क्या दिया इस जगह का नाम तुम्हारा ही नाम से हो जाएगा और जो pitaron का पिंड देगा उसको ही मूंछ की प्राप्ति होगी तो कुल मिलाकर आप समझ सकते हैं की बुध कितने प्रभुत्व सारी व्यक्ति द कितने महान व्यक्ति द की उनको खत्म करने के लिए पूरे 33 करोड़ देवी देवता की मदद ली गई विष्णु भी ए गया उसके ऊपर भी चढ़ गया फिर भी नहीं खत्म कर पाया तो क्या कहा जाता है की अब
pitaron का पिंड दो यानी की brahmanon के पेट पालन का खर्चा दोगे तब अब जाओगे अब डायरेक्ट नहीं जा सकते तो इस तरह से मूल darshanon का brahmanikaran किया गया है और बीच में brahmanon को घुसा कर उनके पेट पूजन कार्य की व्यवस्था कराई गई है कागज पर puranon के माध्यम से अब चूंकि ये सारे पुराण पिछले कुछ 100 सालों के अंदर लिखे गए हैं स्पेशली अंग्रेजों के कालखंड में ही लिखे गए और देवनागरी स्क्रिप्ट में लिखे गए हैं देवनागरी स्क्रिप्ट तो मजा हजार साल से भी कम पुरानी है अपनी प्रसिद्ध पुस्तक गया में लिखा है की गय
ा का मिथक 14वीं 15वीं सदी का है यह वही दौर था जब भारत का brahmanikaran हो रहा था उधर नालंदा विश्वविद्यालय जला दिया गया था भारत में और भी 70 से ज्यादा विश्वविद्यालय बताए गए हैं उनका भी पुरी तरह से खत्म कर दिया गया था उनका नाम इसलिए हाईलाइट नहीं हुआ क्योंकि वहां पे किसी मुस्लिम का नाम नहीं आया और जहां एक किसी मुस्लिम का नाम आया जिससे jalvaya गया था उसको हाइलाइटेड कर दिया गया मतलब 70 विश्वविद्यालय जले हैं usmein से एक ही का नाम हाइलाइटेड किया गया और बाकी के 69 और उससे भी ज्यादा जो विश्वविद्यालय पौध
ों के द उसको खत्म किया गया उसकी जांच भी अभी बाकी है तो इसी दौर में madhavacharya सैन और उवत महिदर वेद का भाष्य कर रहे द 13वीं 14वीं सदी में और दूसरी तरफ इनके केले चपेट की कहानी गढ़ के बोधगया को hathiyane के चक्कर में द अगर हम उससे भी पहले की बात करें तो डॉक्टर मेरी माधव बरुआ जो की 1888 1948 के बीच में द इन्होंने अपनी पुस्तक और बोधगया जो की 193134 में छपी थी और फिर इसका इंग्लिश वर्जन का punsah मुद्रण हुआ था 1975 में usmein वो साफ-साफ लिखते हैं की जो पाल वंश का राजा था नयपाल उसका 1940 में जो शिलाल
ेख है उससे रिलेटेड रिसर्च की थी की हर ने और उसके आधार पर निष्कर्ष निकाला था की 11वीं सदी तक कोई भी pitaron का पिंड का डैन इत्यादि गया में नहीं होता था और ना ही श्राद्ध जैसी कोई बात होती थी खुद फाह्यान ने 399 ई में बोधगया की यात्रा की और unhen वहां कोई भी श्राद्ध या pitaron का पिंड नहीं मिला बल्कि unhen वहां बौद्ध मार्जिन मिले संग्राम मिला स्तूप मिले और यही बौद्ध स्तूप हंसों को भी मिले सातवीं सदी में अगर इस पूर्व 250 इयर्स पहले की बात करें तो वहां सम्राट अशोक ने अपने गिरनार के aathven शिलालेख पे
लिखवा रखा है की उन्होंने गया में बौद्ध स्तूप banvae द ये वही बौद्ध stupaiyan को पांचवी सदी में देखने को मिला और सातवीं सदी में सॉन्ग ने भी उसी स्तूप को देखा यानी कुल मिलाकर बोधगया को ही काउंटर करने के लिए उसे कब जाने के लिए 14वीं 15वीं सदी के बाद brahmanon ने बुध मार्ग की सारी ghatnaon का brahmanikaran करके उसे श्राद्ध और pitaron का पिंड में कन्वर्ट कर दिया अब यहां पे एक और प्रश्न खड़ा होता है की चलो brahmanon ने brahmanikaran कर दिया तो लोगों ने कैसे मैन लिया लोग कैसे वहां पहुंचने लगे पितृ का प
िंडदान देने तो इसका जवाब भी बहुत ही आसान है आपको इस बात को समझना होगा की जितने भी भारत में विदेशी यात्री आए द 19 सब ने नोट्स लिखे हैं चूंकि भारतीयों के जितने भी नोट्स द उनको तो इन पांडे पुरोहितों brahmanon ने मिलकर 13वीं 14वीं शताब्दी में सब जलवा दिया सारे पाली साहित्य जलवा दिए गए हैं तो उनका कोई भी इतिहास नहीं बचत है जो शिलालेख के प्रमाण है वही बचे हुए हैं तो जो विदेशी यात्री द उनने जो नोट्स लिखा unhin के आधार पर अगर हम देखें तो जहां पर यह pitaron के पिंडदान देने की बात करते हैं unmen चार स्थान
प्रमुख है पहला है गया दूसरा बनारस तीसरा है प्रयाग चौथा हरिद्वार और यही चारों स्थान पौधों के लिए भी पिंडदान करने के लिए बताए गए हैं पिंड का मतलब होता है ऐन डैन इस पॉइंट को आप samjhie यहां से आप समझ जाएंगे की कैसे बौद्ध tithiyon का ही ब्राह्मण ही कारण करके यह श्राद्ध वाली और pitaron के पिंड वाली घटना बताई गई है बौद्ध मार्जिन इस वर्षा रितु में mahinon के लिए अपने अपने आश्रम में चले जाते द और प्रचार कार्य रोक देते द क्योंकि बरसात में उसे समय सदके इतनी अच्छी नहीं होती थी और प्रचार करना भी बरसात के म
ौसम में मुश्किल था फिर वो अश्विन पूर्णिमा के दिन इकट्ठा होते द और अपनी सारी बातों का डिस्कशन करते द और उसी डेट में जो राज्य महाराजा होते द और अन्य dhanadhya लोग होते द वो लोग inhen आकर डैन दिया करते द तो इस तरह की एक घटना का वर्णन हैंडसम ने भी अपने प्रयाग यात्रा में बताया है इतने भी राज्य महाराजा द वो आकर बौद्ध भी कू को डैन दिया करते द इसको पिंडदान कहा जाता था ना की pitaron का पिंड purkhon का डैन नहीं हैंडसम लिखते हैं की आजकल के में शिलादित्य राजा ने अपने भूतपूर्व पुरुषों के समान इस स्थान पर आकर
अपनी 5 वर्ष की ekatthi की हुई संपत्ति को एक दिन में डैन कर दिया इस महादान भूमि में asankhy द्रव्य और ratnon का ढेर लगाकर पहले दिन राजा भगवान तथागत बुद्ध की मूर्ति को बहुत उत्तम रीति से सुसज्जित करता है और बहुमूल्य ratnon की भेंट करता है तब स्थानीय विकू होते हैं उनको डैन करता है फिर बुद्धिमान विद्वान और फिर अन्य धर्म और लंबी हो और गरीब दारी दरो को ही वो डैन करते हैं सोचिए सातवीं सदी में एक चीनी पौधे यात्री प्रयाग गया और उसे यह देखने को मिला की उसे समय राजा तथागत बुद्ध और बुध विकू को डैन कर रहे द
यह उन लोगों के लिए जोरदार तमाचा है जो यह बताते हैं की प्रयाग में कुंभ का मेला लगता था और यह बहुत पुराना है और महाभारत कालीन है और कौन सा कालीन है यह पितृ का पिंड लगता था दरअसल वहां पर जो डैन भी होता था वह बौद्ध bhikhon को होता था तथा के नाम पर होता था जब बौद्ध भी खूब भारत में nauvin दसवीं शताब्दी से लेकर 12वीं tiravi शताब्दी में पुरी तरह से खत्म कर दिए गए उसके बाद से इन्हीं सारी ghatnaon को brahmanon ने इन्हीं tithiyon को कब्जा लिया और लोगों से जबरदस्ती डैन लेने लगे दर दिखाकर भाई दिखाकर और लालच
दिखाकर आज भी brahmanon के जो अनुवाई गया में नहीं पहुंच पाते हैं वह प्रयाग पहुंच जाते हैं हरिद्वार या बनारस pahunchkar pitaron के पिंड का डैन करते हैं कुछ तो ऐसे त्यौहार हैं जो पुरी तरह से बुद्धिस्ट त्यौहार हैं और उनको angrejon के कालखंड में brahmanvadiyon ने कब्जा कर लिया जब उत्खनन प्रमाण से पता चला की ये buddhisto के त्यौहार है और जो आम जनता थी उसे वह तिथि तो याद रहे की हम अश्विन माह में जाते हैं नदी किनारे जाते हैं उसे जगह पे जाते हैं बस बौद्ध भी वहां से जब चले गए है गए या मार दिए गए तो उनकी
जगह पे ब्राह्मण पहुंच गया और दो चार दास पीढ़ी बाद तो लोग भी भूल जाते हैं क्या unhen सिर्फ डैन देना होता था अब वह purkhon को देने के नाम पर धंधे में बदल गया क्योंकि सारे अंधविश्वास को एक दिन में नहीं खोला जा सकता है इसीलिए इसका एक और पार्ट लेकर आऊंगा jismein इसके जो बचे हुए पॉइंट्स हैं वो पुरी तरह से क्लियर हो जाएंगे तो दोस्तों अब समय ए गया है की भारत की जो मूल परंपरा है रीति रिवाज है उसको पहचाना जाए जो अंदर श्रद्धा है उसको त्याग कर लोगों को भी जागरूक किया जाए की वो लोग भी त्याग करें और इन पंडित
पुरोहितों brahmanon के जो षड्यंत्र है hramkhori का धंधा है उसे पर अंकुश लगाया जाए तो दोस्तों इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा सेयर कीजिए और हर भारतीयों को इस tathakthi pitaron के पिंड के पाखंड के प्रति जागरूक करने में मदद करें तो आज बस इतना ही dhanyvad
Comments
मैं 70 साल का हो रहा हूँ । मैंने इस वीडियो को देख कर अपने घर पर सभी को बोल दिया है कि मेरे मरने के बाद मेरा केवल क्रिया करम ही करना है और कुछ भी नहीं कोई तेरवी नहीं कोई पिंड दान नहीं कोई भी पंडित को घर पर ही नहीं बुलाना है कोई बाल नहीं कटवायेगा ये सब पाखंड है जो अभी तक हमारे बाप दादा ग़लत करते आये हैं । अब बंद करो ये सब सेवानिवृत अधीक्षक भारत सरकार
ब्रह्मण लोग अपने स्वार्थ और धंधा के लिए देश को बर्वाद कर दिया है । भारत के पिछड़ेपन का मुख्य कारण यही ब्रह्मण लोग ही हैं ।
आप बुद्ध के जागृत अनुयायी हैं हमें मन के विकास के लिए तुम्हारे जैसे मित्र की वाणी की जरूरत है।
आपने मेरे मन का डर सत्य बताने पर डर ख़तम कर दिया एक बार फिर से शुक्रिया आपका 🙏🏻
बहुत बहुत धन्यवाद ऐसा समाज को जागरूक करते रहे धन्यवाद भाई धन्यवाद साइन्स जरनी जी
बुद्ध कितने महान थे ।की मेरे पास कोई शब्द नहीं। कोटि कोटि प्रणाम बुद्ध को
DR.B.R.AMBEDKAR -SYMBOL OF KNOWLEDGE, THE GREATEST INDIAN EVER.
Bahut hi achha video banaya hai sir 🙏 __( Great speech Science Journey Sir )__🙏
Excellent sir ⚘⚘⚘⚘⚘
लगे रहो भारत की जनता को सच्चाई सामने रखते रही ये
Sir you are doing great service to humanity. Your videos are lighthouse for SC, ST & OBC.
👍 very good
Very good sir ji
3% vs 97% पासा कभी भी पलट सकता है 🤣🤣🤣🤣🤣
SCIENCE JOURNEY, BAHUT SUNDER KAM KER RAHI H. PAKHAND BHGAO PAKHAND BHGAO PAKHAND BHGAO RETIRED SUPERINTENDENT GOVERNMENT OF INDIA
आपने दुनियाके सामने सही इतिहास दिखाया धन्यवाद 🙏
Bahut hi Sandar video banaya hai sir 🙏 _________________________________ __( Great speech Science Journey Sir )__🙏 _________________________________ _______( Jay science journey )_______🙏🙏
निःसंदेह ब्राहम्ण ही इस देश में सबसे बड़े चोर पहले भी थे, आज भी हैं लेकिन आगे इन्हे चोरी नहीं करने देंगे। जय संविधान जय भीम...
रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद l
More knowledge &Great job