दुनिया में देशों की आर्थिक तरक्की
को अक्सर वहां की युवा आबादी से जोड़ा जाता रहा है. अमेरिका ने युवा आबादी के दम पर
19वीं सदी के आखिरी दशकों में तरक्की शुरू की, फिर यह कहानी 20वीं सदी के
आखिरी दशकों में जापान में दोहराई गई, चीन में 21वीं सदी
की शुरुआत में ऐसा देखने को मिला. भारत के महाशक्ति बनने के
दांव में भी युवा आबादी का अहम रोल माना जाता है. आखिर दुनिया का हर
छठवां इंसान इसी देश में बसता है. फिर भी ज्यादातर भारतीय मानते रहे
हैं कि जनसंख्या भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. क्योंकि देश
में उपलब्ध संसाधन
सभी की जरूरतें पूरी नहीं कर सकते. और अब इस बहस के बीच एक नई
समस्या खड़ी होती देखी जा रही है. बहुत से जोड़े बच्चे
नहीं पैदा करना चाहते. और यह सिर्फ भारत की ही नहीं दुनिया
के ज्यादातर मुल्कों की सच्चाई है. जानकार इसके लिए शिक्षा में बढ़ोतरी,
बढ़ते खर्चों से लेकर जलवायु संकट तक कई वजहों की ओर इशारा करते हैं. धरती पर अभी जितने इंसान
हैं, इतने पहले कभी नहीं थे. लेकिन हालिया वर्षों में जन्मदर से
जुड़े आंकड़ों में अहम बदलाव आए हैं और जनसंख्या वृद्धि धीमी हुई है. 1950 में दुनिया की
जनस
ंख्या ढाई अरब थी. इसके अगले चार दशकों में यह
आंकड़ा दोगुने से भी ज्यादा हो गया. लेकिन 2080 तक इसके चोटी तक
यानी 10 अरब के आंकड़े तक पहुंचने का अनुमान है. ऐसा क्यों हुआ? ज्यादातर जगहों पर ऐसा होना ही था. क्योंकि आर्थिक विकास के साथ,
शहरीकरण बढ़ने और खासकर महिलाओं की शिक्षा में बढ़ोतरी
होने से ऐसा होता है. जिन जगहों पर प्रजनन दर
ज्यादा है, वहां इसमें गिरावट आने की संभावना होती है. क्योंकि आधुनिक आर्थिक जीवनशैली में
कई बच्चे पैदा करना ज्यादातर जगहों पर, ज्यादातर लोगों के
लिए बिल्कुल संभव नहीं होता.
फिलहाल वैश्विक प्रजनन दर 2.3 है. यानी एक महिला औसतन दो से
ज्यादा बच्चों को जन्म दे रही है. अफ्रीका में हर महिला के औसत
चार या ज्यादा बच्चे होते हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका और
एशिया में यह आंकड़ा दो के करीब या उससे नीचे है. उत्तरी अमेरिका और यूरोप
में प्रजनन दर बहुत ही कम है. भारत की बात करें तो यहां भी
ज्यादातर राज्यों में प्रजनन दर 2.1 यानी रिप्लेसमेंट रेट
के नीचे जा चुकी है. रिप्लेसमेंट रेट का मतलब है
कि हर महिला का करीब दो बच्चों को जन्म देना. अगर हर महिला करीब दो बच्चों को
जन्म देत
ी है तो इससे जनसंख्या में स्थिरता आ जाती है क्योंकि जितने
लोगों की मौत होती है, उतने ही नए बच्चे पैदा होते हैं. लेकिन जैसा मैंने कहा कि भारत में
ज्यादातर राज्यों की प्रजनन दर 2.1 से नीचे जा चुकी है यानी कुछ
ही वर्षों बाद यहां जनसंख्या में कमी आने लगेगी. 1992 में भारत में हर महिला के 3 से
भी ज्यादा बच्चे होते थे और अब यह आंकड़ा सिर्फ 2 तक पहुंच गया है. फिर देश में और बच्चे पैदा ना करने
का फैसला करने वाले जोड़ों की संख्या लगातार बढ़ने के साथ
यह कमी और होने वाली है. पहले ही भारत में सिर्फ बिहार,
मे
घालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर राज्य हैं,
जहां प्रजनन दर 2.1 से ज्यादा है. दरअसल पूर्वी एशिया के कई देश प्रजनन
दर के मामले में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. चीन भी इनमें शामिल है. चीन ने जबरन
वन-चाइल्ड पॉलिसी को लागू किया था. लेकिन 2016 में यह पाबंदी हटने के
बाद भी ज्यादातर जोड़े एक से ज्यादा बच्चा नहीं पैदा कर रहे. फिलहाल चीन की आबादी 1.4 अरब है. अगर चीन की प्रजनन दर प्रति महिला एक
बच्चे पर रुक जाए तो देश की जनसंख्या गिरकर सिर्फ एक अरब पहुंच सकती है. और यह साल 2100 तक गिरकर
39 करोड
़ हो सकती है. ठीक इसी समय चीनी समाज में बुजुर्ग
होते लोगों की समस्या भी गंभीर हो रही होगी. अगर जनसंख्या में अनुमान से तेज कमी
आई तो इसका मतलब होगा काम करने वालों की काफी कमी यानी आगे जाकर
आर्थिक तरक्की में सुस्ती. फिर भी अभी हाल ये है कि चीनी जोड़े
आर्थिक वजहों के चलते बच्चे ना पैदा करने का फैसला कर रहे हैं. फिलहाल युवा बेरोजगारी दर बहुत
ज्यादा है और युवा लोगों को अपना खर्च चलाने में ही
मुश्किल हो रही है. तो वो परिवार कैसे शुरू करेंगे. यही वजह है कि चीन में
विवाह दर पहले ही बहुत कम है. चीन में 2
023 में हुई शादियों की
संख्या 2013 के मुकाबले आधी रही. लोग शादियां करने से भी हिचक रहे
हैं, बच्चों की तो बात ही छोड़ दें. आर्थिक सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं
खास वजह हैं, जिसके चलते युवा लोग जानबूझकर बच्चे नहीं पैदा कर रहे. और कुछ लोग कुछ नई वैश्विक चिंताओं
जैसे पर्यावरण संकट के चलते भी इससे हिचक रहे हैं. समाज के तौर पर हमें बच्चे नहीं पैदा
करने चाहिए क्योंकि पहले से ही कई बच्चे अभाव में जी रहे हैं. जलवायु संकट तो इस
बहस के ताबूत की आखिरी कील है. बच्चे पैदा ना करने का मतलब है कि
हमारे बच्चे परेशानिय
ां ना झेले और उन बच्चों से प्रतिस्पर्धा ना
करें, जो पहले ही संसाधनों की कमी झेल रहे हैं. इससे दोनों ही
मामलों में सफलता मिलती है. वैश्विक सामाजिक और पर्यावरणीय
बदलावों को ध्यान में रखते हुए बच्चे ना पैदा एक अतिवादी कदम है,
जो कि पर्यावरण के लिए तो अच्छा हो सकता है... लेकिन आर्थिक विकास के लिए
एक नई चुनौती भी पैदा करता है. इतिहास में कभी भी जनसंख्या की ऐसी
स्थिति के साथ विकास नहीं हुआ है. इसलिए कम काम करने वाले
और खरीदार भी कम होंगे. यह बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि हमारी सारी व्यवस्था,
स्वास्थ्य सेव
ाएं, बुनियादी सुविधाएं, बुजुर्गों की देखरेख, सबका
अनुमान आर्थिक तरक्की के हिसाब से लगाया जाता है, जो जनसंख्या वृद्धि
पर बहुत ज्यादा टिकी होती है. हालांकि जनसंख्या में कमी आने से
भविष्य की पीढ़ियों पर कुछ सकारात्मक असर भी हो सकते हैं. जैसे कि कम लोग होंगे तो
प्रतिस्पर्धा भी कम होगी. जनसंख्या में कम वृद्धि या कमी के
चलते शायद हाउसिंग मार्केट पर दबाव कम हो और घर सस्ते हो जाएं. यह आगे चलकर रोजगार के अवसरों
और कमाई को भी बेहतर कर सकता है. लोगों के छोटे-छोटे
वर्गों के लिए यह संभव हो सकता है. और आखिर म
ें पूरी धरती को ही इससे
फायदा हो सकता है क्योंकि तब यह कम इंसानों का घर होगी. आखिरकार धरती के कई प्राकृतिक संसाधन
पहले ही खत्म होते जा रहे हैं. कम लोगों के होने का मतलब
है, कम प्रदूषण की संभावना. जंगली जीवों के लिए ज्यादा
जगह और ज्यादा वनस्पतियां. लेकिन आर्थिक स्तर
पर यह चुनौती ही होगा. ...यह एक चुनौती तो है... लेकिन एक मौका भी! पूरी दुनिया और खासकर आर्थिक दुनिया,
जनसंख्या में आ रहे इन बदलावों पर बारीक नजर रख रही है. लंबे समय की कोई भी आर्थिक योजना
बिना इसके तैयार नहीं हो सकती. इससे जुड़ी नई बात
ें जैसे जैसे
सामने आएंगी, हम आपको बताते रहेंगे. आज बस इतना ही. बड़ी जनसंख्या को आप भारत की ताकत
मानते हैं या कमजोरी, बताइए हमें कमेंट बॉक्स में. आपसे अगले हफ्ते फिर होगी
मुलाकात, एक नए विषय के साथ. तब तक के लिए नमस्कार!
Comments
आजकल के शंघर्स को देख बच्चा पैदा करना तो दूर यहां शादी के बारे सोच के ही जिंदगी नर्क लगने लगती हैं।, हर बेरोजगार का दर्द... उनमें एक मैं भी हूं।
आर्थिक विकास का अर्थ.... QUALITY OF LIFE भी होना चाहिए☝ ☝☝!!
Birth of a child means 1) pressure on the child.2) pressure on the parents 3) pressure on the environment. 4) pressure on the country
I am 28 aur mujhe shaadi aur bacche paida nhi karna.. unko..iss duniya ki suffering mein nhi dalna...life is pure suffering and nothing else
Iam 22 yrs old and mujhe bhi shaadi or bacche nhi karne..i want to be single and enjoy my life without any unnecessary burden, responsibilities and stress...life is a lot more easier when we are not married
जनसंख्या में कमी अच्छा संकेत है इस धरती के लिए😊
बच्चे ना पैदा होने के कारण ~ * नौकरी नहीं है! * पालने में खर्चा बहुत है! * काम से फुर्सत नही है, फैमिली और बच्चों के लिए कहा समय है! * पति पत्नी को अब एक दूसरे पर भरोसा नहीं रहा, कोई भी, कभी भी एक दूसरे को गैर के लिए छोड़ देता है! * बढ़ता अवैध संबंध से लोग अकेले जीना सीख रहे है!
Lower population will be a boon for the environment and sustainability. Economic growth cannot be infinite, it is unsustainable.
Strength for business men..... And politics...... But it's just a hell for common man of India
दुनिया में सबसे ज्यादा कामवासना पर ज्ञान पेलते पेलते हम जनसंख्या में विश्वगुरु बन गए हैं 🤔
Less population will not result in economic slow down . They will move towards quality lifestyle. If there are less buyers with more money to spare it will only help with seller offering better products and services. Plus the impact on environment will be very positive
उत्तम बिकाश। ये धरती सिर्फ उद्योगपतीयो कि नही हे जो नये नये चीजे बनाते-बेचते जाये और मुनाफा लूटे। ये धरती पेड़-पौधे-जनवर-पक्षी-समुद्री जीब-नदी-पाहाड़ो का भी हे। कृपया बच्चे कम पैदा करे और उन्हे भी रहने दे।
भारत की जनसंख्या ताकत तब होती जब युवाओं को संसाधन बना दिया जाता लेकिन यहां तो इसके उल्टे हो रहे हैं।
Great coverages.I think you should cover vegan lifestyle and it's impact on health and climate change, would be happy to help
This is because of development. The more development the more higher standards of living, the more stress to earn livelihood. And more stress on children to perform good in schools.. So life becomes hectic and people prefer to avoid responsibilities like children to make life simple..
I'm 44, unmarried female, and I'm happy with my decision, for not having unwanted problems.
The population of India became a strength of only by using them in progressive approach but here we will see the young people used for the political agenda.
जिंदगी वह होती है जो दूसरों के लिए की जाए अपने लिए तो सब जीते हैं शादी शादी जिंदगी खराब करने वाला फैसला है सपोर्ट आचार्य prasant
भारत के साथ सबसे बड़ा दिक्कत ये है कि पढ़े लिखे और समृद्ध लोग बहुत कम बच्चे पैदा कर रहे हैं लेकिन अनपढ़ और गरीब बहुत अधिक बच्चे पैदा कर रहे हैं। जिससे गरीब और गरीब हो रहा है और अमीर और अमीर हो रहे है।
Life is struggle why put an innocent through all this suffering. Good living standard, Good Education and Good Health Service is right of every baby.