इतिहास में साइंस के नाम पर कई इविल मेडिकल एक्स्पेरमेन्ट्स किए गए हैं। हम सभी जानते हैं कि कुछ पागल साइंटिस्ट किसी सोसाइटी या पॉपुलर कल्चर में विलेन होते हैं, जो कि वास्तविक जीवन में कभी कभी रिजल्ट्स या आउटकम्स के लिए भयानक ट्राइम्स करते हैं। कुछ एथिकल मिस्टेक्स हैं, जो लोगों के नज़रिए से सही भी हैं, पर कुछ ऐसे डरावने और भयानक होते हैं।जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही भयानक मेडिकल एक्स्पेरमेन्ट्स जो आपने शायद ही सुने हो। पीटर न्यू बॉय के डायरेक्शन में क्लिनिकल साइकोलॉज
िस्ट ने 1960 और 1970 के दशक में एक सीक्रेट एक्स्पेरमेन्ट किया जब उन्होंने जुड़वा और तीन बच्चों को सिंगलट्स के रूप में अडॉप्ट कर लिया।और उन्हें एक दूसरे से अलग रखा। इस एक्स्पेरमेन्ट की फंडिंग नेशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ़ मेन्टल हेल्त ने अवैल कराई थी जो 1980 में सामने आया जब 3888 सहयोगसे एक दूसरे से मिल गए। उन्हें ये ऐडिया ही नहीं था कि उनके भाई भी हैं। तीनों में से एक जिसका नाम डेविड कैल्मन था, उसने कहा कि हमारे जीवन का 20 साल लूटा गया है।ये बात ओलांदो सेंटेनल आर्टिकल में भी सामने आई थी। तीनो भाइयों म
ें से एक जिसका नाम एडवर्ड गलेन था उससे इतना सदमा लगा की 1900 पचानवे में मैपलहुड न्यू जर्सी में उसने अपने घर पर ही आत्महत्या कर ली। अकॉर्डिंग तो न्यूस रिपोर्ट्स इस एक्स्पेरमेन्ट को लीड करने वाले चाइल्ड साइकाएट्रिस्ट स्पीकर न्यू बॉय और ब्यूला बर्नार्ड को कोई पछतावा नहीं हुआ।उन्होंने यहाँ तक कहा, वे बच्चों के लिए कुछ अच्छा कर रहे हैं, उन्हें अलग कर रहे हैं ताकि वे अपने इंडीविजुअल पर्सनालिटी का विकास कर सके। न्यू बॉय ने अपने सीक्रेट एविल एक्स्पेरमेन्ट से क्या सीखा? इसकी एक कंट्रोवर्शियल स्टडी येल यू
निवर्सिटी के एक लाइब्रेरी में रखा गया है और उन्हें 2066 तक खोला नहीं जा सकता है। की एक मूवी थ्री ऐडेंटिकल स्ट्रेंजर में तीनो के जीवन की स्टोरी दिखाई है, जो संडास 2018 में रिलीज़ हुई थी। एक अजीबोगरीब साइंटिस्ट जिसका नाम हैनिंग ब्रांडी था आज से लगभग 200 साल पहले जब इंसानों को साइंस के बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं था तो उस वक्त केमिस्ट्री के क्षेत्र के साइंटिस्ट को जादूगर भी माना जाता था, क्योंकि जब वो अलग अलग केमिकल को मिलाकर कुछ नई चीजें बनाते थे तो लोग उसे देखकर एकदम हैरान हो जाते थे और उसे जादू
गर समझने लगते थे।आज से लगभग तीन शताब्दी पहले की है यानी की 1669 की, जब उस पागल और सनकी साइंटिस्ट को कहीं से इस बात का भरोसा हो गया कि इंसानों के पेशाब में सोने का अंश है और थोड़ा बहुत एक्स्पेरमेन्ट के बाद इंसानों के पेशाब से सोने के कारण निकाले जा सकते हैं। उसे अपने इस खोज पर इतना ज्यादा भरोसा था कि उसने अपना और अपनी दोस्त और अपनी पत्नी के पेशाब को कलेक्ट करना शुरू किया।और कई महीनों की मेहनत के बाद लगभग 5700 लीटर से भी ज्यादा पेशाब इकट्ठी कर ली, जिसके बाद उस सनकी साइंटिस्ट ने उस पेशाब को उबालना
शुरू कर दिया। लगभग कई दिनों तक पेशाब को उबालने के बाद जब पेशाब में मौजूद सारा लिक्विड भाव बनकर उड़ गया, तब उस बर्तन में नीचे की तरफ पाउडर की कुछ फर्क बच गई। वो पाउडर बिलकुल सोने की तरह चमक रहा था।ये तो देख कर वो साइंटिस्ट एकदम से खुश हो गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि उस पागल साइंटिस्ट ने लगभग 6 साल तक अपने इस फ़ॉर्मूला को दुनिया से छुपा कर रखा। उसे डर लगने लगा था कि सोना बनाने का यह फ़ॉर्मूला कहीं लीक ना हो जाए। लगभग छह सालों के बाद जब किसी दूसरे साइंटिस्ट को इस बात की खबर लगी तो उसने उस पाउडर प
र शोध करना शुरू किया।और उसने बताया की सोने की तरह चमकने वाला वो पदार्थ सोना नहीं बल्कि फास्फोरस है, क्योंकि इंसानों के पेशाब में बहुत मात्रा में फॉस्फेट पाया जाता है। इसलिए जब वो साइंटिस्ट ने उसे उबालना शुरू किया तो पेशाब का सारा लिक्विड उड़ गया, लेकिन फॉस्फोरस बचा रह गया। एक वैज्ञानिक जिनका नाम था डॉक्टर डंकन मैकडॉग। उन्होंने सोल यानी आत्मा के वजन कैलकुलेट करने की कोशिश की। सुन के ही काफी अजीब लग रहा होगा राइट? विल ये एक्स्पेरमेन्ट कुछ ऐसा ही था और उन्होंने इसे अंजाम देने के लिए छह पेशेंट्स को
चुना, जिनकी मौत जल्द ही होने वाली थी। उनके मरने से पहले ही उन्हें एक वेइट स्केल पर लिटाया गया और उनके मरने से पहले वजन नापा गया ताकि उनके मरने के बाद जो वजन आए उनसे कंपेर किया जा सके। आप सभी जानते हो धार्मिक ग्रंथों में माना जाता है कि मरने के बाद आत्मा शरीर छोड़ देती है।इसी आत्मा का वजन उन्हें मापना था। एक एक करके उन्होंने सभी लोगों पर अपना प्रयोग किया। पहले पेशेंट के वजन में 21 ग्राम की कमी आई। दूसरे पेशेंट का वजन मरने के तुरंत बाद कम तो हुआ लेकिन कुछ ही सेकण्ड्स बाद उनका वजन पहले जैसा ही हो ग
या। दूसरे।दो पेशेंट्स के भी वजन में भी कमी आई लेकिन कुछ मिनटों बाद उनका वजन पहले से भी ज्यादा बढ़ गया।एक पेशेंट की मौत इक्विपमेंट को सेट करने के दौरान ही हो गई तो उसका वजन मेजर नहीं हो सका और फाइनली एक आखरी पेशेंट के मरने के बाद वजन करने पर पाया गया की उसके वजन में कोई बदलाव नहीं था। लेकिन 1 मिनट के बाद ही उसका वजन तकरीबन 28 ग्राम कम हो गया। इस प्रयोग में सबके वजन का अंतर अलग अलग होने के वजह से।साबित नहीं हुई कि आत्मा जैसी कोई चीज़ होती है, नहीं तो हर बार वजन का अंतर एक जैसा ही रहता। लेकिन ऐसा न
हीं हुआ और इसका साइंटिफिक एक्स्प्लमशन ये निकला की सभी के वजनों में कमी मौत के बाद शरीर में होने वाले बदलाव की वजह से होती है। ऐसे ब्लड का क्लॉथ होना, पेपरों से आखिरी सांस का बाहर आना, केमिकल रिएक्शन द्वारा उत्पन्न हुए गैसेस का शरीर छोड़ना। इस प्रयोग के रिजल्ट्स गवर्नमेंट तक पहुंचने के बाद गवर्नमेंट ने इस पर रोक लगा दी, क्योंकि ये ह्यूमन राइट्स का उल्लंघन करते हैं और इस वजह से आज तक इस तरह के एक्स्पेरमेन्ट्स करना इल्लीगल है।वर्ल्ड वॉर टू के समय जब हिटलर की दहशत बढ़ती जा रही थी तो एक नाजी साइंटिस्
ट जोसेफ मंगले के बहुत से दर्दनाक एक्सपेरिमेंट सामने आए। वर्ल्ड वॉर ट्यूब के दौरान हजारों एक्स्पेरमेन्ट्स किए जा रहे थे। पर इन सबका मकसद था हिटलर की आर्मी के सोल्डर्स के लिए मदद हासिल करना, वो भी दवाइयों और ट्रीटमेंट्स के जरिए। और इन सभी का लीडर था जोसेफ मंगले, जिसे एंजेल ऑफ़ डेथ भी कहा जाता था। जब भी नए पेशेंट को डॉक्टर मेंगले के पास लाया जाता था तो वो बेसब्री से सभी पर नजर गढ़ता था।कि इस बार कोई जुड़वा बच्चा आ जाए। वो जुड़वा यानी ट्विन्स को लेकर पागल था। अक्सर वो दो जुड़वा बच्चों को आपस में स्ट
िच यानी सींचते थे। उनके चमड़े, उनके ब्लड वेसल्स और यहाँ तक ऑर्गन के साथ ताकि वो बन सके ऐसे ट्विन्स जो यूश़ूअली बचपन से ही आपस में जुड़े होते हैं। पर ये मासूम बच्चों को अक्सर गंगरिन नाम की बिमारी हो जाती थी। और ये बहुत ही दर्दनाक मौत मर जाते थे। जोसेफ और भी बहुत से एक्स्पेरमेन्ट्स करता था। जैसे लोगों को प्रेशर चेम्बर्स में डालना, उन्हें बर्फ़ में जमा कर मारना, कैस्ट्रेशन यानी नसबंदी करना, अंदरूनी अंगों को शरीर से अलग करना, लिंगो को बदलना एत्सरा सारे एक्स्पेरमेन्ट्स के बारे में सुन के ही होश उड़ ज
ाते हैं राइट लेकिन ये साइंटिस्ट द्वारा किए गए सारे एक्स्पेरमेन्ट्स आज डेमोक्रेसी के जमाने में करना इलीगल है।अल्बर्ट आइन्स्टियन और जे रॉबर्ट ओपन हाइमर में कुछ चीजें कामन थी।दोनों ज्यूस ओरिजिन के नुक्लेअर फिजिसिस थे और दोनों ने एटेम्पट के प्रोजेक्ट्स पर काम करके उन्हें डेवलॅप भी किया था और तबाही का अंदाजा लगा के वे दोनों फिजिसिस्ट नुक्लेअर वेपन्स के एकदम खिलाफ़ भी हो गए थे।जी रॉबर्ट ओपेन हैमर जब छोटे थे तो उनके टीचर ने स्कूल में ही उनका टैलेंट पहचान लिया था। उन्होंने उनके माता पिता को कहा की 1 दिन
ये लड़का बड़ा हो के सारी दुनिया को हिला देगा। और हुआ भी कुछ ऐसे ही। वर्ल्ड वर्ड टू के दौरान नाजी जर्मन और इम्पेरिअल जापानीज़ आर्मी से निपटने के लिए उन्होंने यु एस गवर्नमेंट के एटेम्पट बॉम्ब बनाने के सीक्रेट मिशन जिसका नाम दिया था।दी मैनहैटन प्रोजेक्ट उन्होंने टीम लीडर बनकर काम करना शुरू कर दिया और उस वक्त कहीं नाज़ी जमन्स उनके पहले ही एटेम्पट बॉम्ब ना बना ले। इस खौफ से उनकी टीम रात दिन काम करने लगी। जुलाई 16, 1945 को उनकी टीम ऑफ़ साइंटिस्ट और इंजीनियर्स ने ट्रैनिटी साइट न्यू मेक्सिको में एटेम्प
ट बॉम्ब का सक्सेसफुल एक्सप्लोरशन किया। दूर से आसमान में 40,000 फुट के मशरूम क्लाउड के भयंकर लाइट और साउंड उठते देखकर उन्होंने दुनिया की तबाही की कल्पना अंदर ही कर ली। उनका अंदाजा ठीक था और टेस्ट करने के सिर्फ 21 दिन बाद 6 अगस्त 1945 को यु एस ने हेरोशिमा जापान में एटेम्पट बॉम्ब गिरा डाला।जिसमें शहर के 90% यानी 80,000 लोग मारे गए। नाइन्थ अगस्त 1945 को नागासा की जापान में बॉम्ब में करीब 40,000 लोगों को मारकर तबाही मचाई और जापान के फिर सिलेंडर होने के बाद वर्ल्ड वॉर टू का अंत हुआ। उनके अंदर फिर इंसा
नियत की इतनी तबाही देखकर पछतावे से भरे फीलिंग्स आए और उन्होंने प्रेसिडेंट ट्रूमन से इसका विरोध किया। जिसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। प्रेसिडेंट के ओवर ऑफिस से उन्हें किक करके बाहर निकाल दिया गया और उनकी सारी सिक्योरिटी विथड्रा कर दी गई। फिर भी उनके मौत तक नुक्लेअर के खिलाफ़ इनका विरोध रहा और उन्हें आज भी दी। फादर ऑफ़ एटोमिक बॉम्ब कहा जाता है। तो अगर आप ऐसे ही स्पेस साइंस मेथोलॉजी और हिस्टरी के इंटरेस्टिंग फ़ैक्ट्स के लिए क्यूरियस है तो स्टेट ट्यून टु युअर चैनल रेड एंड क्यूरियस
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