Main

अपनी शर्तों पर मरना (How would you like to die?) | DW Documentary हिन्दी

पश्चिमी देशों में ज़्यादातर लोग अपने जीवन के आख़िरी पल अस्पताल में बिताते हैं. क्या वे घर में मरना पसंद करेंगे? जर्मनी में आधे से ज़्यादा लोग आईसीयू में मरते हैं. कुछ नर्सिंग होम में मरते हैं तो कुछ अस्पतालों में. ऐसा क्यों? ज़्यादातर लोग घर पर मरना चाहते हैं. लेकिन बहुत ही कम लोग शांति से अपने परिवार के बीच अपनी आख़िरी सांस ले पाते हैं. इंग्रिड लैंडर को ही लीजिए. वह दिल के दौरे के बाद पिछले तीन महीने से कोमा में वेंटीलेटर पर थीं. उनके पति, उनकी मृत्यु और आख़िरी इच्छा को पूरा करने के लिए डॉक्टर्स से जूझ रहे थे. उन्होंने कहा कि “यह बहुत ही डरावना है. वह महीनों तक, मशीनों के सहारे नहीं जीना चाहती थी”. आधुनिक दवाइयों के सहारे लोग ज़्यादा समय तक जीवित रह पा रहे हैं. हालांकि अस्पतालों को भी गंभीर मरीजों के इलाज़ से काफ़ी कमाई हो सकती है, ख़ासकर आईसीयू में. आईसीयू के डॉक्टर उवे यानसेंस मानते हैं कि मौत और मारने में पैसा काफ़ी मायने रखता है. एश्वाएलर के जांक्ट अंटोनियोस हॉस्पिटल के आईसीयू विंग, जहां यानसेंस काम करते हैं, वहां लगभग हर दिन लोग मरते हैं. बहुत से बुज़ुर्ग मरीज़ अनिश्चित काल के लिए वेंटीलेटर्स पर हैं. डॉक्टर, नर्सें, और अस्पताल के पादरी नियमित रूप से एथिक्स पर चर्चा के लिए मिलते रहते हैं. उनकी चर्चा का विषय होता है, कि – “क्या ज़्यादा गंभीर मरीज़ को मरने में सहायता करनी चाहिए या उन्हें कृत्रिम उपायों से जीवित रखा जाना चाहिए? थेरेपी का उद्देश्य क्या है? मरीज़ की इच्छा क्या है? चिकित्सकीय रूप से क्या संभव है, क्या होना चाहिए?” डॉक्टरों के लिए भी, मरीज़ की मृत्यु को लेकर निर्णय लेना कभी आसान नहीं होता. यह फ़िल्म पश्चिमी समाज की वर्जनाओं को झकझोरती है. लोगों को अवास्तविक लंबी खिंचने वाली बीमारियों से कैसे बचाया जा सकता है, और क्या उन्हें वह इलाज मिल रहा है जैसा वे चाहते हैं या जिसकी उन्हें ज़रूरत है? #dwdocumentaryहिन्दी #dwहिन्दी #healthcare #medicine ---------------------------------------------- अगर आपको वीडियो पसंद आया और आगे भी ऐसी दिलचस्प वीडियो देखना चाहते हैं तो हमें सब्सक्राइब करना मत भूलिए. विज्ञान, तकनीक, सेहत और पर्यावरण से जुड़े वीडियो देखने के लिए हमारे चैनल DW हिन्दी को फॉलो करे: @dwhindi और डॉयचे वेले की सोशल मीडिया नेटिकेट नीतियों को यहां पढ़ें: https://p.dw.com/p/MF1G

DW Documentary हिन्दी

19 hours ago

ज़्यादातर लोग अपने अंतिम दिनों में यहीं पर होते है. किसी अस्पताल में. हालांकि हम में से ज़्यादातर लोग घर पर ही मरना चाहेंगे, लेकिन ऐसा बहुत कम हो पाता है. क्या मरने से पहले इलाज बहुत ज्यादा हो गया है? हर चीज जो मुमकिन है वो ज़रूरी नहीं. क्या मैं मरीज़ों के फ़ायदे के लिए काम कर रहा हूं? इसमें कोई और हित शामिल नहीं होना चाहिए, कोई आर्थिक हित तो बिल्कुल नहीं. हमें डॉक्टरों से कितनी उम्मीद रखनी चाहिए? और मरीज़ की अपनी मर्ज़ी कितनी मायने रखती है? जब एक मरीज़ कहे कि उसे लाइफ सपोर्ट मशीन पर पड़े रहकर, बिन
ा कुछ बोल पाने के हालात में, बस 20 सालों तक छत को ताकते रहने में ज़्यादा डर लगता है, और उससे बेहतर है मरना, तो आपको यह बात स्वीकार करनी होगी. क्या अस्पताल वाकई जीवन के आखिरी क्षणों में इलाज कर मुनाफ़ा कमा रहे हैं? मृत्यु के बारे में बात नहीं की जाती है. और इसे लेकर काफी विवाद है. धरती से धरती राख़ से राख़ और मिट्टी से मिट्टी तक. जर्मनी में लगभग आधे लोग अपनी आख़िरी सांस अस्पताल में लेंगे. ट्यूब और वेंटिलेटर पर ली जाने वाली आख़िरी साँस या मौत आखिर कैसी होती है इसे बेहतर समझने के लिए हम इंटेंसिव केयर
विंग में आए हैं. डॉक्टर सुबह के समय अपने राउंड पर हैं. गुड मॉर्निंग कैसे हैं आप? आपके दिल की मांसपेशियों में रक्त प्रवाह की गंभीर समस्या है. फ़िलहाल हमें यह बेहतर होता नज़र नहीं आ रहा, इसलिए हम कुछ दिन और देखेंगे, ठीक है? क्यों इतने सारे लोग घर में शांति से मरने की बजाय अस्पताल के बिस्तर पर मरते हैं? अपने दौरे के दौरान हम कई बुज़ुर्ग मरीज़ों को देखते हैं और अक्सर उन्हें कई बीमारियाँ होती हैं, और अक्सर उन्हें कई बीमारियाँ होती हैं, और फिर भी वो अस्पताल आते हैं. हम किसी तरह उनका इलाज करते हैं. लेकिन
जैसा कि इस केस में आपने देखा, एक साथ चल रही ये बीमारियां इतनी गंभीर हो चुकी हैं और फिर कल आए उनके टेस्ट के नतीजे देखने के बाद हम ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं. उवे यानसेंस पैलिएटिव केयर देना चाहते हैं, यानी मरीज़ को मृत्यु के लिए तैयार करना. लेकिन दूसरे कई लोगों की तरह इस मरीज़ ने ऐसे इलाज की मंज़ूरी नहीं दी है. यानसेंस किसी तरह मरीज़ के रिश्तेदारों से बात करना चाहते हैं ताकि आगे के इलाज को लेकर उनका फैसला जान सकें. लेकिन बात नहीं हुई. मैं दिन में लगभग दो घंटे फोन पर बात करता हूं, क्योंकि मुझे य
ह ज़रूरी लगता है. उनके फैमिली डॉक्टर से बात होना ज़रूरी है. लेकिन यह बहुत मुश्किल भी है. उसे एक गंभीर लाइलाज दिल की बीमारी है. जी हां यह वाक़ई बहुत ज़रूरी था. वह डॉक्टर उसे अच्छे से जानता है. खुद मरीज़ ने भी डॉक्टर को यह बताया था कि अगर कोई गंभीर परेशानी हुई तो वह इंटेंसिव केयर में नहीं जाना चाहता. यह अहम होता है क्योंकि अब हमें साफ तौर पर पता है कि आगे क्या करना है, भले ही उसने लिखित में नहीं दिया. इसका मतलब है कि हम उसे ज़िंदा नहीं रख पाएंगे, पर हम पूरी कोशिश करेंगे कि वो शांति और बिना किसी तकली
फ़ के दुनिया को अलविदा कहे. मैं बैकपैक ले लूंगी मुझे नहीं पता कि वो नीचे है या नहीं. मैं नीचे जा रही हूं ठीक है? लेकिन ICU विंग में जानलेवा हालात हमेशा इतने धीमे और शांत नहीं होते. इंटेंसिव केयर डॉक्टर अलीस नॉयडेकर नीचे इमरजेंसी फ्लोर पर जा रही हैं. एक महिला की किसी तरह जान बचाई गई है और अब आगे के इलाज के लिए उसे ICU में शिफ्ट करना है. वह बच पाएगी यह कहना मुश्किल है. और फिर दोबारा जल्दी से. इंटेंसिव केयर में शिफ्ट करते ही तुरंत उसे हर संभव जीवनरक्षक मशीन से जोड़ दिया जाता है. बेशक डॉक्टर लोगों क
ा इलाज करना चाहते हैं. लेकिन ICU में आनेवाले ज़्यादातर लोग बच नहीं पाते. 20 मिनट हो चुके हैं. अलीस, क्या आप बता सकती हैं कि क्या हो रहा है? मरीज़ को हार्ट कैथेटर पर रखा गया. उन्होंने उसे बचाने की पूरी कोशिश की. पर अफ़सोस कुछ काम नहीं आया और वो मर गई. अब हम परिवार का इंतज़ार कर रहे हैं. हमारे लिए सबसे ज़रूरी था कि मरीज़ के आखिरी पलों में हम उसके साथ रहे. उसके दर्द और डर को कम करने की कोशिश करते रहें. हम आखिरी सांस तक उसका हाथ थामे उसके साथ खड़े थे, क्योंकि हमारे अलावा उसका कोई था नहीं. परिवार वाले
अभी यहां पहुंच रहे हैं. ICU में आने वाले मरीजों की उम्र बढ़ती ही जा रही है. अक्सर उन्हें पहले से ही इतनी बीमारियाँ होती हैं कि उनका बचना मुश्किल होता है. यह डॉक्टर तय करते हैं कि उन्हें कब तक जीवित रखा जाए और कैसे. इंटेंसिव केयर में जान बचाने के जितने तरीक़े हैं उतने खतरे भी. उन सबको समझने के लिए मरीज़ की पृष्ठभूमि समझना ज़रूरी है. एक टीम के तौर आपको कोशिश करनी होती है कि मरीज़ को आसान मौत मिले. यह भी स्वीकारना होता है कि मौत तकलीफ़ से छुटकारा दिलाने वाली एक प्रक्रिया है. आधुनिक चिकित्सा का मतलब
ये होता है कि मौत को लंबे समय तक टाला जा सकता है. यह अक्सर डॉक्टरों पर निर्भर करता है कि इलाज कब तक जारी रखना है और कब किसे मरने देना है. उवे यानसेंस एथिक्स कमीशन के साथ एक मीटिंग के लिए जा रहे हैं. यहीं पर अलग-अलग विशेषज्ञ इकट्ठे हो कर ये तय करते हैं कि मरीज़ को लाइफ सपोर्ट जारी रखना है या नहीं. आज यहाँ गंभीर रूप से बीमार फेफड़े के एक मरीज़ की बात हो रही है. वह कई हफ़्तों से इंटेंसिव केयर में है. उसे वेंटिलेटर पर ज़िन्दा रखा गया है. सांस लेने में तकलीफ़ बढ़ने की वज़ह से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया
है. उन्हें कई तरह के इन्फेक्शन हैं कुछ इन्फेक्शन ठीक भी हो रहे हैं. उन्हें कभी-कभी नींद नहीं आती भ्रम होने लगता है. उनका शरीर हर रोज़ दम तोड़ रहा है. क्या आप कुछ कहना चाहेंगे? वास्तव में हम सिर्फ़ सावधानी बरत रहे हैं और उनका भविष्य कुछ अच्छा नहीं दिख रहा है. इसका कोई अंत नहीं है. सवाल यह है कि हम कब तक इसे जारी रख सकते हैं. इसका अंत क्या है? हम चाहते क्या हैं? हम लंबे समय से उन्हें वेंटिलेटर से हटाने की कोशिश कर रहे हैं. हम वेंटिलेटर की हर चार घंटे वाली मॉनिटरिंग कर रहे हैं, लेकिन कई बार वो मशीन के
बिना लगातार सांस नहीं ले पाते. खतरा इतना ज्यादा है कि अगर हमने उन्हें वेंटिलेटर से हटाया तो निश्चित रूप से मल्टिपल ऑर्गन फेलियर हो सकता है. जब तक वो वेंटिलेटर पर हैं तब तक ज़िंदा हैं. इलाज को लेकर उनकी खुद की क्या मर्ज़ी है? उन्होंने साफ़-साफ़ कभी कुछ नहीं कहा. इसलिए हमें मरीज़ की मर्ज़ी के बारे में सही-सही जानकारी नहीं है. अगर हम ये कहते हैं कि उन्हें वेंटिलेटर से नहीं हटाया जा सकता, तो इसका मतलब ये है कि उन्हें बहुत लंबे वक्त तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर ज़िंदा रखने वाली स्थिति है. शायद घर में या कहीं
और. क्या उनके परिवार को ये बात समझ आ रही है या नहीं? वो घर जाना चाहते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता ऐसा करना सही है. हर बार कुछ दिनों में हालात ज्यों के त्यों हो जाते हैं. मरीज़ के फेफड़ों में बलगम जमा हो जाता है उन्हें परेशानी होने लगती है, और उनकी पूरी ताकत इसी में खर्च हो जाती है. मुझे लगता है घर जाकर कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा. मतलब कि घर जाने की उनकी इच्छा यानी उन्हें वेंटिलेटर पर रखना, 24 घंटे कड़ी देख-भाल, यह उनके परिवार के लिए मुश्किल होगा. हां मैं मानती हूँ अगर हम मिस्टर A को घर भेजते हैं तो
इसका मतलब है सच में पैलिएटिव केयर. हालांकि मिस्टर A को ये नहीं लगता कि उन्हें बिस्तर पर ही पड़े रहना होगा. लेकिन अब कोई रास्ता नहीं बचा है. वह खुद से चल-फिर नहीं सकते. मुझे लगता है कि ये पैलिएटिव केयर वाली ही स्थिति है. हम उन्हें, उनकी मर्ज़ी से घर भेजेंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये लंबा चल पाएगा. और आप काफ़ी लंबे समय से मरीज़ और उनके परिवार की आध्यात्मिक देखभाल कर रहे हैं? उन्होंने धार्मिक दृष्टिकोण से अपनी मृत्यु के बारे में खुल कर बात की. उनकी पत्नी अपने घर को एक इंटेंसिव केयर रूम बनाने के बार
े में सोच भी नहीं सकती, घर पर वेंटिलेटर रखे जाने का तो यही मतलब है. बल्कि उन्होंने मुझे कहा कि उनके हिसाब से हमें अपनी जिंदगी के आख़िरी समय में आराम से रहना चाहिए और साथ बिताए पलों के लिए शुक्रगुज़ार होना चाहिए. पिछले कुछ दिनों में हमने यही बातें कीं. इसका मतलब यह हुआ, कि इस आयोग ने अब पैलिएटिव केयर अपनाने का निर्णय लिया है. परिवारवालों को खबर करनी होगी. वह कौन करेगा? अगली बार जब बात होगी तो आपको यह काम करना होगा. धन्यवाद सभी अस्पतालों में ऐसे एथिक्स कमीशन नहीं हैं. हम नैतिक फैसलों पर बात कर रहे
हैं, जिनका मेडिकल से कोई मतलब नहीं है बल्कि इंसानियत से है. हमारा मानना है कि ऐसी व्यवस्था हर अस्पताल में ज़रूर होनी चाहिए. जीवन और मृत्यु का फ़ैसला हमने डॉक्टरों पर छोड़ दिया है. ये मेरी समझ से परे है, कि अपने घर में सामान्य मौत मरना अपवाद जैसा क्यों है? हम एक बुज़ुर्ग मरीज़ से मिलने जा रहे हैं. मैं पिछले हफ़्ते से उन्हें देख रहा हूँ क्योंकि उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी. पहले वे लगातार एम्बुलेंस को फ़ोन कर रहे थे पर अब अस्पताल नहीं जाना चाहतीं क्योंकि उन्हें पता है अगर एम्बुलेंस आ गई तो उन्
हें अस्पताल जाना ही पड़ेगा. मथियास थॉएन्स एक एनेस्थेटिस्ट और पैलिएटिव केयर डॉक्टर हैं. वो उन मरीज़ों से मिलते हैं जो घर में, परिवार वालों के बीच रहते हुए अपनी आखिरी सांस लेना चाहते हैं. गुड आफ्टरनून मैं सीधा अंदर ही आता हूँ. सभी को हेलो. मैं फिर यहां बैठूँगा. बढ़िया. जब मैं पहली बार आया था तब आप बहुत परेशान थीं क्योंकि क्लिनिक पर आपसे किसी ने कह दिया था कि आप मरने वाली हैं. अब जब आप घर पर हैं, तो आपको कैसा लग रहा है? ओह मुझे अब डर नहीं लग रहा और ना ही कोई बुरे ख्याल मुझे परेशान कर रहे हैं. क्या आप
को पिछले कुछ दिनों में सांस लेने में कोई परेशानी हुई है, या अब तकलीफ होनी बंद हो गई है? नहीं अब सांस लेने में कोई परेशानी नहीं है. आपने कुछ गौर नहीं किया, किया क्या? नहीं नहीं मैं हैरान हूँ कि सब इतना बढ़िया चल रहा है. क्या आपको लगता है कि आप मरने वाली हैं? नहीं, नहीं! चलिए थोड़ा चेक-अप कर लेता हूं. आगे झुकिए. और गहरी सांस अंदर और बाहर. सीधे कहूं तो दरअसल वह घर पर मरने आई हैं. उनका और हमारा यही फ़ैसला है. हम बचे हुए समय को अच्छे से बिताना चाहते हैं. और माँ को वापस यहाँ देखकर अच्छा लग रहा है. हमें
कभी न कभी तो इसका सामना करना ही है. सच कहूँ तो मुझे इससे कोई परेशानी नहीं है. शायद मैं औरों की तरह नहीं क्योंकि मैं अलग हूँ. पता नहीं बाकी लोग इसे कैसे लेते. मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं कि लोगों को जब पता लगता है कि वो कुछ दिनों के मेहमान हैं तो उन पर क्या गुज़रती होगी. पर मुझे लगता है यह सब बिल्कुल स्वभाविक है. लेकिन यह एक अजीब स्थिति है. शायद मुझसे ज़्यादा तुम्हारे लिए. मुझे चिंता होती है कभी देर रात को उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई तो. पर यहाँ मैं जल्दी से उनकी मदद कर सकती हूँ. हम यह पक्का करना च
ाहते हैं कि हमारे मरीज़ घर पर ठीक से हैं. हां उन्हें सांस लेने में दिक्क़त आ सकती है, दर्द हो सकता, जी घबरा सकता है, या उल्टी महसूस हो सकती है. फिर अगर घर पर उनकी मदद नहीं हो सकती, तो क्लिनिक के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. लेकिन अगर आपका इलाज घर पर हो सकता है तो लोग घर पर ही रहते हैं. ज़्यादातर समस्याएं आम दवाओं से ठीक हो सकती हैं. इमरजेंसी बॉक्स में बस सात तरह की दवाएं होती हैं. और आप उनसे बीस बीमारियां ठीक कर सकते हैं, बस फोन पर मरीज़ को निर्देश देकर. ठीक है, और अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बताइ
एगा. नहीं तो मैं अगले सप्ताह आऊंगा. ख़याल रखिएगा. मैं अभी भी मौत से एक कदम आगे हूँ. अभी मेरे पास थोड़ा समय बाक़ी है. आपने देखा घर आने के बाद मरीजों की हालत में कितना सुधार आ जाता है इन्हें अभी-अभी अस्पताल की मृत्यु शैया से छुट्टी दे कर घर भेजा गया था, पर इन्हें देखकर आप नहीं कह सकते कि ये मौत के इतने क़रीब थीं. बल्कि यहां रहकर उनमें कमाल का सुधार आया है. रोज़ाना 2 में से 1 मरीज़ मरता है. मैं रोज़ ही ये सब देखता हूँ. अंतिम समय में लोगों का साथ देने वाला यह काम, काफी तसल्ली देने वाला है. क्योंकि कई बा
र आप उनका दर्द और सांस की परेशानी को कम करते हैं. भले ही मैं अपने मरीजों की जान ना बचा पाऊं मगर उनमें से ज़्यादातर लोग अब मौत को अपना दुश्मन नहीं समझते. और अगर मेरी वजह से उन्हें मरने में आसानी हो तो यह अच्छी बात है. 92 साल की इंगे माटेन अपने घर पर एक महीने बाद गुज़र गईं, जैसा वो चाहती थीं. लेकिन कोई यह कैसे तय कर सकता है कि आप जैसे चाहते हैं वैसे ही मरें? हमने इंटेंसिव केयर की एक पूर्व कर्मचारी से बात की. वो कहती हैं कि वो कभी भी पुनर्जीवित नहीं होना चाहेंगीं. हेलो! तो आपने तय किया है कि अगर आप
बेहोश हों और कोई नर्स आपको बचाने आएं तो आप पुनर्जीवित नहीं होना चाहेंगी, क्या यह सही है? नहीं, अगर मेरी धड़कन रुक जाये, सिर्फ़ तभी. "और जब एम्बुलेंस कर्मचारी आएं?" जब दरवाज़ा बंद होता है, तो उन्हें वो हरा वाला स्टीकर दिख जाएगा. वहां पर एक इमरजेंसी बोतल है और एक इमरजेंसी बोतल फ्रिज में है. फिर वो रसोई में जाएंगे और जब दरवाज़ा खोलेंगे, तो वहाँ है बोतल. "और इसमें क्या है?" ये मरीज़ के बारे में काफ़ी जानकारी वाला एक डॉक्युमेंट है और यहां बड़े-बड़े लाल अक्षरों में लिखा हुआ है "मुझे फिर से जिंदा मत करो".
और आप ये क्यों नहीं चाहतीं? जब मैं काम किया करती थी तो मैंने बहुत कुछ देखा. मतलब आप अस्पताल नहीं जाना चाहेंगीं? मैं अस्पताल नहीं जाना चाहती हूँ और ना ही मैं वेंटिलेटर पर रहना चाहती हूँ. मैं नहीं चाहती कि मैं ट्यूब्स के सहारे ज़िन्दा रहूँ, वो भी ना जाने कब तक. 89 साल की यह महिला, इंटेंसिव केयर स्टेशनों के काम करने के तरीकों से वाकिफ़ हैं. क्या आपको लगता है कि लोगों को जिंदा रखने के लिए बहुत कुछ किया जा चुका है? लोगों को मरने नहीं दिया जाता? हां. जैसे ही आप पैरामेडिक्स के साथ अस्पताल में पहुंचते हैं
. तो आपको पुनर्जीवित करने की पहली कोशिश के बाद, डॉक्टरों और नर्सों के बस में जो कुछ होता है, वे सब करेंगे मुझे ज़िंदा रखने के लिए. और मैं ऐसा नहीं चाहती. आपने ऐसा क्या अनुभव किया, जिसकी वजह से आप कहती हैं कि नहीं, मैं नहीं चाहती कि वो मेरे साथ हो? मैंने अक्सर बुज़ुर्गों को पुनर्जीवित होते देखा है, और फिर उन्हें ड्रिप और वेंटीलेटर्स पर रखा जाता है और फिर कुछ दिनों, हफ़्तों और महीनों बाद वे मर जाते हैं. और मुझे नहीं लगता कि आपको उसकी ज़रुरत है. मैं अंत तक अपने तरीक़े से अपनी ज़िंदगी जीना चाहतीं हूँ,
और जब मैं ऐसा नहीं कर पाऊँगी, तो वो मेरा अंत होगा. अब लोग शायद ही अपने जीवन के आखिरी पलों को अपने हिसाब से जी पाते हैं. क्या पूर्व नर्स की इच्छा पूरी हो पाएगी? क्या वो ऐसी पैरामेडिक्स से मिलेंगी जो उन्हें इन परिस्थितियों में पुनर्जीवित नहीं करेंगे? 89 वर्षीय वृद्धा को डर है कि उनका भी यही हाल होगा. गंभीर रूप से बीमार कैंसर का एक मरीज़, जिन्हें दिल की धड़कन रुकने के बाद पुनर्जीवित किया गया. इसके बाद से ये कोमा में लाइफ़ सपोर्ट पर हैं. इंटेंसिव केयर की नर्स अलीस नॉयडेकर अब इनकी देखभाल करती हैं. चिंत
ा मत कीजिये, मैं कुछ जाँच रही हूँ. इनकी किडनी और लीवर फेल हो चुके हैं और दिमाग भी मुश्किल से काम कर रहा है. ज़्यादातर मरीज़ों को उनके घर के बाहर पुनर्जीवित किया जाता है, वो यहाँ आते हैं और उन्हें हर मुमकिन इलाज दिया जाता है, और तब आप देखते हैं कि, जैसा कि इस केस में है कि पुनर्जीवन प्रक्रिया के दौरान दिमाग़ में बहुत कम मात्रा में ऑक्सीजन होती है. हम अक्सर देखते हैं कि मरीज़ होश में नहीं आते हैं, और फिर कई दिनों या हफ़्तों बाद, जाँच से पता चलता है कि अब वो कभी होश में नहीं आयेंगे, उनका दिमाग़ इतनी बुर
ी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है, कि हम कुछ नहीं कर सकते. यह 58 वर्षीय मरीज़ भी कभी होश में नहीं आयेंगे. अलीस उन्हें पैलिएटिव केयर दे रही हैं, और उनके मरने तक उनके साथ रहेंगी. मैंने पूरी तैयारी कर ली है. क्या आप हमेशा अपने मरीजों से बात करती हैं? हां क्योंकि मुझे हमेशा लगता है कि वो कुछ ना कुछ सुन सकते हैं. हम हमेशा अपनी पूरी कोशिश करते हैं, ख़ासकर उन मरीजों के लिए, जो मौत के क़रीब हैं. आप हमेशा अपने मरीजों का सम्मान करते हैं. और जब डॉक्टरों को यह पता चलता है कि वह जिसकी जान बचा रहे हैं, वो तो मरने
वाला है, तो क्या होता है? हम परिजनों के साथ कमरे में जाते हैं. पहले से चल रही दवाइयों की जगह ज़्यादा डोज़ वाली पेनकिलर दवाइयां शुरू कर दी जाती हैं, और दूसरी दवाइयां मरीज़ को सिर्फ़ इसलिए दी जाती हैं ताकि उन्हें तकलीफ़ ना हो. और तब हम लाइफ़-सपोर्ट बंद कर देते हैं. हम हमेशा कुछ देर इंतज़ार करते हैं. सगे-संबंधियों को परिस्थिति के साथ समझौता करना होता है. अपने परिजन को गुज़रते देखना हमेशा ही बहुत मुश्किल होता है. एक सवाल जो अक्सर परिजन पूछते हैं, कि कितना समय लगेगा? उन्हें हमेशा इस बात का डर रहता है क
ि यह तुरंत ना हो जाए. यह मरीज़ पर निर्भर करता है. आम तौर पर इसमें दो दिन लगते हैं. लेकिन वह बहुत ही लंबा समय है. एक या दो दिन और फिर मरीज़ की मौत हो जाती है, क्योंकि वे पहले से ही बहुत कमज़ोर हो चुके होते हैं. कमरा नंबर तीन में लाइलाज बीमारी वाले मरीज़ हैं. उनके साथ यहाँ बैठने के लिये परिवार का कोई नहीं है. और जहां इस अस्पताल में मौत रोज़ की बात है वहीं हमारे समाज में इस पर कोई बात नहीं करना चाहता. हमें एक समाज के तौर पर ख़ुद से पूछना चाहिए, कि हम क्या चाहते हैं और क्या नहीं चाहते हैं. मेरे अनुभव से
मैं अक्सर इंटेंसिव केयर में ऐसे मरीज़ों और रिश्तेदारों से मिला हूँ जो यह सुनकर ताज्ज़ुब करते हैं कि अगर आप 85 90 या 92 साल के हैं तो आपको 'जीवन के अंत' के बारे में सोचना चाहिए. लेकिन आधुनिक दवाएं भी लोगों की बढ़ती उम्र के साथ सही तालमेल नहीं बिठा सकी हैं. इंटेंसिव केयर विंग्स में कुछ ही योग्य पैलिएटिव चिकित्सक हैं. इसलिए, लोगों को लंबे और उल्टे-सीधे इलाजों से गुज़रना पड़ता है. कभी-कभी तो यह इसलिए होता है कि डॉक्टरों को समझ नहीं आता, कि क्या करना चाहिए. लेकिन कभी-कभी यह मुनाफ़े के लिए भी होता है.
इन मुश्किल तरीक़ों से ज़िंदगी के आखिर में इलाज की प्रक्रिया में अच्छी कमाई है. एक डॉक्टर होने के नाते, क्या हम वास्तव में मरीज़ के लिए उचित कर रहे हैं की गंभीर बहस की तुलना में, उन्हें नली लगाना, ऑक्सीज़न देना, फिर से जिंदा करना, किडनी ट्रांसप्लांट करना बहुत आसान है. हमारी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ मरीजों के लिए है. और किसी के लिए नहीं. और जब चिकित्सा के कुछ क्षेत्र, चोरी-छिपे कमाई पर ज़्यादा ध्यान देने लगते हैं तो चिकित्सा के रास्ते कठिन हो जाते हैं. और पिछले 20 वर्षों से वही हो रहा है. ऐसा कैसे हो सकता है
कि अस्पतालों में लोगों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उनका इलाज हो रहा है, सिर्फ मुनाफ़े के लिए? आमतौर पर हम यह मानते हैं कि हमारे जीवन के आख़िरी पलों में डॉक्टर हमारे साथ होंगे. लेकिन डॉक्टर की बातों को नज़रअंदाज़ करना काफ़ी मुश्किल और तकलीफ़देह हो सकता है. हेल्मुट लैंडर अपनी पत्नी को शांति से मरने की इजाज़त दिलवाने के लिए डॉक्टरों से लड़ रहे हैं. ये मेरी पत्नी है तिरोल में. अब वह फोटो 6 साल पुरानी हो चुकी है. उसके बालों को देखिए. अब वह 68 की हो चुकी है, और अब वह ऐसी दिखती है. यह बहुत बुरा है. मैं वहां उसे ला
चार पड़े रहने से बचाना चाहता हूँ. यह उसके लिए मेरा फर्ज़ है. यह वाकई लंबा समय है. हाँ तीन महीनों की गहन देखभाल. वह वहाँ 12 अगस्त से है. उसके 18 ऑपरेशन हो चुके हैं. इंग्रिड लैंडर पाँच महीने पहले कमर के ऑपरेशन के लिए अस्पताल गई थीं जहाँ वह एक सुपरबग की चपेट में आ गईं. कई ऑपरेशनों के बाद भी डॉक्टरों से ये मामला नहीं सुलझा. मुझे उसकी आज की लुक वाली तस्वीर मिली है. आप देख सकते हैं. वह एक परमानेंट लाइफ़ सपोर्ट पर है, जहां नली से साँस और नसों से खाना दिया जा रहा है. चार महीने पहले हेल्मुट की पत्नी के दिल
ने काम करना बंद कर दिया था. तब से, वह लाइफ़ सपोर्ट पर हैं और कोमा में हैं. न्यूरोलॉजिकल टेस्ट्स से पता चला है कि सुधार की उम्मीद बहुत ही कम है. उन्होंने इलाज के लिए पहले ही अपनी इच्छाएं लिख दी थीं. मैं तो बस उसकी इच्छाएं पूरी करना चाहता हूँ. मैंने उसकी क़सम खाई है कि उसके जीवन का अंत मशीन पर नहीं होगा. वह वर्षों तक वैसे ही नहीं पड़ी रहेगी, जैसे वहां पर है. यह उसके लिए नहीं है और वो ऐसा नहीं चाहती है. आप इन सभी पॉइंट्स को देख सकती हैं. वे कई पन्नों में हैं. सब कुछ लिखा है इनमें ब्रेन डैमेज के मामल
े में, लाइलाज बीमारी मौत के क़रीब सब कुछ लिखा हुआ है. दिमाग़ काम नहीं कर रहा है. यह सब साफ़-साफ़ लिखा हुआ है. लेकिन वे लोग इस सब को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं. मैं उनसे कहता हूँ कि इसे पढ़िए इसमें सबकुछ लिखा हुआ है. लेकिन घूमकर बार-बार एक ही जगह आकर बात रुक जाती है. आपके पास पावर ऑफ़ अटॉर्नी होने के बावज़ूद भी आपकी कोई नहीं सुनता? नहीं बिलकुल नहीं आप पर कोई ध्यान नहीं देता. आप जर्मनी में सिर्फ़ एक लाइन सुनेंगे हम तय करते हैं क्या होगा. लोग इलाज के लिए क्या सोच कर आते हैं, कोई मायने नहीं रखता. हमें हर वो इलाज
करना चाहिए जो हम कर सकते हैं और बाक़ी तो इच्छामृत्यु है. मैं कहता हूँ तो आप जो कर रहे हैं वो क्या है? मांग के मुताबिक मौत? मैं कहता हूँ मैं सिर्फ़ इसका अंत चाहता हूँ. हेल्मुट की स्वास्थ्य बीमा कंपनी ने उन्हें मशविरे के लिए एक मेडिकल विशेषज्ञ से मिलवाया है. उम्मीद है वे उनकी पत्नी की इच्छा पूरी करने में उनकी मदद कर सकें. मैं आख़िरी बार 6 अक्टूबर को उसके साथ था. यह उसके अल्सर के फटने से एक दिन पहले की बात है, और उसके दिल ने काम करना बंद कर दिया था. हम धार्मिक लोग हैं, और हमेशा इस बारे में बात करते ह
ैं. और हमने अलविदा कहा, और कहा कि हम अब अगले जन्म में मिलेंगे. उसने कहा, कि वह जाने के लिए तैयार है. उसने कहा वह जा रही है. मैंने कहा, ऐसा मत कहो. उसने कहा, हां तुम जानते हो ना मुझे. मुझे एक किस दो. मैंने बस उसे थोड़ा सा दही दिया. और बस यही हुआ. इसे सहन करना मुश्किल है. बहुत मुश्किल. एक हफ्ते बाद हेल्मुट लैंडर की अस्पताल में दूसरी मीटिंग है. उन्हें उम्मीद है कि जानकारों की रिपोर्ट देखने के बाद, डॉक्टर ज़िद छोड़ देंगे. और उनकी पत्नी को पैलिएटिव केयर देना शुरू कर देंगे. अस्पताल से हमें यह बयान मिला,
यह संभव है कि होश में आने पर, श्रीमती लैंडर, ख़ुद सांस ले सकती हैं और कम से कम उनके शरीर में कुछ सुधार आएगा. पर हमेशा लाइफ़ सपोर्ट जैसे उपायों की ज़रुरत से इनकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि इन हालात के बारे में मरीज़ के ट्रीटमेंट प्लान में साफ़ तरीक़े से नहीं बताया गया है और ठीक होने की उम्मीद नहीं छोड़ी जा सकती, इलाज को इसी वजह से इतना खींचा गया है ताकि मरीज़ की बताई गई इच्छाएँ तय की जा सकें. गंभीर रूप से बीमार लोग मान सकते हैं कि उनकी इच्छाएँ पूरी होंगी? पैलिएटिव केयर डॉक्टर मथियास थॉएन्स श्रीमती
लैंडर के केस की रिपोर्ट लिखने वाले हैं. उन्हें यह निर्णय लेना है कि 68 वर्षीय मरीज़ की इच्छाओं को पूरा किया जाए या नहीं. मथियास थॉएन्स मरीजों की सम्मानजनक मृत्यु के लिए प्रतिबद्ध हैं ना कि मुनाफ़े के लिए. ऐसे विवादों से वह दुखी और नाराज होते हैं. श्रीमती लैंडर का मामला अलग नहीं है. वास्तव में एक मरीज़ की मर्ज़ी से उसका इलाज क़ानूनी तौर से सही है, पर उसे समझने के कई पहलू हो सकते हैं और कभी कभी उसकी सीमा को जबरन खींचा जाता है और इलाज जारी रहता है जबकि मरीज़ इसके ख़िलाफ़ होते हैं. वे यह नहीं पूछ पाते
कि इसका नतीजा क्या होगा. क्या यह वही होगा जो मरीज़ चाहता है? क्या उसे हासिल किया भी जा सकता है? और इस केस की तरह ज़्यादातर नतीजे कभी हासिल नहीं होते. ज़रूरत से ज़्यादा इलाज मेरे काम में अक्सर मुझे परेशान करता है. सही पैलिएटिव केयर का फ़ैसला बहुत पहले समय रहते ही हो जाना चाहिए था. डॉक्टरों के काम की निगरानी कौन करता है? जर्मनी में इसके लिए कैसा क़ानून है? द पुत्स एंड पार्टनर लॉ कंपनी जीवन के अंत से जुड़े कानूनों की विशेषज्ञ है. वो लगभग हर रोज़ ऐसे केसों से निपटते हैं जो मरीज़ों की मर्ज़ी पर केंद्रित हैं
और उनकी मर्जी लागू करने के तरीके ढूँढ़ते हैं. असल में हमारा सारा ध्यान इस पर होता है कि किसी भी तरह का मेडिकल हस्तक्षेप जिंदगी को बढ़ाने वाला भी, चाहें वह वेंटिलेटर ही हो बेकार है. उसे जायज़ होना चाहिए. और एक हस्तक्षेप तभी जायज़ है जब उसके पीछे कोई मेडिकल वजह हो या मरीज़ की मंज़ूरी हो यह शुरूआती बात है. अगर कोई मेडिकल दखल फ़ायदे से ज़्यादा नुक़सान करता है तो उसका कोई फ़ायदा नहीं है ये और ज़्यादा परेशानी का कारण बनता है तो उसका कोई मतलब नहीं है. इसलिए जो भी किया जा रहा है वह अवैध है और अधिकारों का ह
नन है. यह एक ज़ुर्म है. हालांकि एक फेडरल प्रोसीक्यूटर, एक डॉक्टर को आम तौर पर एक मरीज़ की उम्र बढ़ाने के लिए सज़ा नहीं देंगे. वह हमेशा इससे बचने का रास्ता ढूंढ़ते हैं. तान्या उंगेर ने ऐसे कई मामले देखे हैं जिसमें डॉक्टर असमंजस में होते हैं, और इस वजह से मरीजों का ज़रूरत से ज़्यादा इलाज होता है. पर उन्होंने उन्हें पैसे कमाने के लिए भी ऐसा करते देखा है. अगर किसी डॉक्टर पर सिर्फ पैसे कमाने के लिए ऐसा करने का शक हो तो क्या उस पर कार्रवाई होगी? यह शक हमेशा बना रहता है. लेकिन मौजूदा कानून के आधार पर इस प
र कार्रवाई करना मुश्किल है. क्योंकि आपको साबित करना पड़ता है कि वह कोशिश जानबूझकर पैसे कमाने की नीयत से हुई है. अगर रिश्तेदार आपका साथ दें. अगर वे कहें कि उनके रिश्तेदार को परेशान किया गया है, और यह डॉक्टर ने सिर्फ़ पैसे बनाने के लिए किया है, तब आपके पास मौका है किसी दूसरे डॉक्टर से जाँच करवाने का जिसे उस इलाज से कोई मुनाफ़ा ना मिल रहा हो. सच्चाई यह है कि भविष्य में हमें ऐसे डॉक्टरों की ज़्यादा ज़रूरत होगी जो पैलिएटिव केयर के जानकार हों और अपने काम के प्रति ईमानदार हों. तो यहाँ कौन जीता एथिक्स या
इकोनॉमिक्स? इंसान या मशीन? हेल्मुट लैंडर लोअर सैक्सनी में अपने घर से चार घंटे गाड़ी चलाकर क्लिनिक आए हैं. वह एक बार फिर डॉक्टरों से बात करना चाहते हैं. उन्हें मनाने के लिए कि उनकी पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी करते हुए उन्हें मरने दिया जाए. वह चार महीनों से इस अस्पताल में इंटेंसिव केयर में है. यह सोच कर ही बहुत डर लगता है. मैंने अपॉइंटमेंट ले लिया है और अब मैं वहां जा रहा हूँ. मैं अपनी पत्नी के अधिकारों के लिए लड़ रहा हूँ. जो आज हो रहा है, वह नाइंसाफ़ी है. इसलिए इन डॉक्टरों से आज मैं यही सब बात कहने आ
या हूँ. चार महीनों से डॉक्टर अपनी मरीज़ इंग्रिड लैंडर की इच्छाओं को नज़रअंदाज़ करते आ रहे हैं. डॉक्टरों और हेल्मुट लैंडर के बीच की बातचीत काफ़ी लंबी और मुश्किल होने वाली है. क्योंकि अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है एक स्थानीय जज को बुलाया गया है वह आज इंग्रिड लैंडर की इच्छाओं पर फ़ैसला सुनाएंगी. चार घंटे बाद. तो तत्काल प्रभाव से पैलिएटिव केयर शुरू किया जा रहा है. इसका मतलब ये कि अब उसे मरने से कोई नहीं रोक सकता. यह एक लम्बी लड़ाई थी, वो भी एक निराशाजनक बात को लेकर, लेकिन मुझे ये करना था, और मैं ख़ुश ह
ूँ कि मैंने यह किया. अब मुझे राहत सी महसूस हो रही है. दुःख तो बहुत है लेकिन राहत भी है. यह बहुत ही चिंताजनक है कि कुछ डॉक्टरों को लगता है कि उन्हें हर बार, हर संभव मेडिकल प्रयोग करना ही है. ये डॉक्टरों का काम नहीं है. एक डॉक्टर होने के नाते, आपको ख़ुद से पूछना चाहिए कि यह इलाज क्यों करना चाहिए? इससे हम मरीज़ के लिए क्या अच्छा कर सकते हैं? और अगर हम मरीज़ को ठीक नहीं कर सकते, और लाख कोशिशों के बावजूद भी अगर वे लाइफ़ सपोर्ट पर ही हैं, जैसा कि किसी भी मरीज़ ने ख़ुद के लिए नहीं सोचा होगा, वह उसे नामंज़ूर
होगा, तो हमें डॉक्टर के तौर पर उसे स्वीकार करना होगा. अगर वे इलाज से स्वस्थ नहीं हो सकते तो कोई और तरीक़ा सोचना होगा, और आख़िरी स्थिति में उन्हें मरने देना होगा. जब मरीज़ घर पर ना हो, तो उस इंसान कि मौत कैसी होगी? जब भी मैं किसी ऐसे मरीज़ को देखती हूँ, मेरा दिल रो पड़ता है. कोई बात नहीं. अलीस नॉयडेकर के मरीज़ की हालत अचानक से बिगड़ गई है. उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही है. इस स्थिति में उनकी देखभाल करना आसान नहीं है. कल ये अच्छे से सांस ले रहे थे तो हमने तय किया कि वेंटिलेशन की नली हटा दें. ह
मने इन्हें नींद में रखने वाली दवाई भी कम कर दी थी. अब मैं असमंजस में हूँ ये बहुत तकलीफ़ में हैं, और मुझे डॉक्टरों को फोन करना पड़ा और मरीज को फिर से नींद की दवाई देनी पड़ी. क्योंकि मैं इन्हें इस हालत में नहीं छोड़ना चाहती ये सचमुच तकलीफ़ में हैं. दिल की धड़कन सही चल रही है अलीस हेड डॉक्टर का इंतज़ार कर रही हैं. अब मुझे थोड़ी राहत मिली है. मैं नहीं चाहती कि मेरे मरीज़ को तकलीफ़ हो. लेकिन मैं यह भी नहीं चाहती, कि मैं जो दे रही हूँ उसके कारण इनकी मौत हो. क्योंकि अब ये वेंटिलेटर पर नहीं हैं. इसलिए मैं इतना स
ंभलकर काम कर रही हूँ. बहुत ही कम अंतर होता है किसी के मरते समय साथ होने में या उन्हें उसमें सहयोग करने में. डॉक्टर दवा बदलकर, मरीज़ के लिए इसे आसान बना सकते हैं. अब हमें लक्षणों को दवा के जरिए नियंत्रित करना चाहिए. सबसे ज़रूरी यही है. इस इलाज के जरिए हमारा लक्ष्य है, जीवनरक्षक इलाज का अंत, लक्षणों को नियंत्रित रखते हुए. मरीज़ की सांस अब ठीक चल रही है. मृत्यु की प्रक्रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है. मेरा हमेशा यह उद्देश्य होता है कि मैं वो करूँ जो मैं ख़ुद के लिए या मेरे परिवार के किसी सदस्य के यहाँ हो
ने पर चाहती. यह आपका पसंदीदा काम है, है ना? यह मेरा सपना है. मेरा पसंदीदा काम मैं कुछ और करने के बारे में नहीं सोच सकती. अलीस के मरीज़ की उस शाम मृत्यु हो गई. यह इंग्रिड लैंडर का अंतिम संस्कार है. अस्पताल में जीवनरक्षक तकनीकों से हटाए जाने के पाँच दिन बाद वह गुज़र गईं. अब मुझे शांति चाहिये. मुझे ख़ुशी है कि बहुत सारी मदद लेकर मैंने उसकी अंतिम इच्छा पूरी होते देखी. लेकिन हमारे पास धार्मिक श्रद्धा है और यह बहुत मदद करती है. और मैं अपने लिए आगे बढ़ने का रास्ता किसी ना किसी तरह ढूँढ़ लूँगा. ईश्वर आपक
ी विदाई और आगमन पर कृपा बनाए हमेशा-हमेशा के लिए. आमीन.

Comments

@fani473

Shukriya DW behtareen topic ke liye.

@bharatbhairaichura8922

Such kahu to Dw har baar ek naya bilkul different subject leke aati hey aur hume inka besabri se intezaar karte hey me aur to kyaa bolu ❤love you my dearest DW👈👌👍🙏❤❤❤🙏

@gyanniraj1899

thank you DW

@mukeshchandrasharma9925

जीवन के सबसे बड़े सत्य के बारे में हम सबसे कम जानते हैं। उसके लिए तैयार भी नही रहते। और तो और बात भी नहीं करते। इस विषय पर सेक्स से भी कम बात करते हैं। इस पर समग्र मे सोचना आवश्यक है। मरीज के जीने की संभावना और मरने की स्थिति के बारे में निर्णय करना बहुत ही महीन, कठिन, जटिल है। यह मेडिकल, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से उलझा विषय है।

@nileshshakywar

Kafi emotional video hai, logo ko apni marji se marne aur uske tarike ko chunne ka haq hona chahiye, koi insaan kitna dukh taklif me hai, kitne samay se hai, ye aap use dekh kar ya usse puch kar bhi mahsus nahi kar sakte, isliye ye har insaan ka kanooni adhikar hona chahiye. Aur jo doctors akhiri samay me bhi apne marijo ka khayal rakhte hai, unke sath rahte hai wo sach me angels hai. Unka shukriya aur aabhar shabdo me baya nahi kiya ja sakta.

@rishidurgcg

Yes, each hospital should have an ethical committee

@zahrafahad4380

Duniya drd dyti bht😢😢

@dearlife4850

Jab ham jeete hain apni sharton par to marna bhi khud ki ichha aur sharton par hi ho...

@dklf697

Santee, aram or jaldee say, bena kharch, dard k Apnay har janam may

@idontknow1902

Covid time yaad aa gya

@ashokkumar-se5sl

INDIA M ZALDEE SHRU HO TAKI ZANSANKHYA KMM HO

@qwe56110

ऐसा ही कुछ ढूंढ रहा था मैं ।

@vinodlakra1395

🌹🙏🏼🌹🙏🏼

@9time268

Hasta khelta parivaar dekh marna kismat ki baat

@nikksameideverywhere77

Ye doctor loot rhe h .😢 Bina hile jinda rakhne ki baat kh .,.Dil k emotions k through money ki income 🤬

@uk-20

India main to yahi hai... munafa munafa .....

@ShivamKumar-uz1oh

80 साल की उमर मैं 4 ब्रिटिश औरतों के साथ बेड पर सिगरेट पीते हुए सूरज ढलते समय करीब 4 बजे 😀😀😀😀😀❤️❤️❤️❤️❤️

@DasharathGaikwad-et7zs

जादु,टोना, नरबली, शमशान के साधु, ईनका क्या?