मैर्स्क 19 नए कंटेनर जहाजों में निवेश कर रहा है जो मेथनॉल से चलाए जाएंगे. लेकिन मेथनॉल, तेल का एक विवादास्पद वैकल्पिक ईंधन है. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी लगभग 700 कंटेनर जहाज चलाती है. क्या यह भविष्य की दिशा में एक गंभीर निवेश है? “ट्रांसफॉर्मिंग बिजनेस” इन खबरों के पीछे की सच्चाई पर नजर डाल रहा है.
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दिग्गज शिपिंग कंपनी मैर्स्क नई पीढ़ी के कंटेनर जहाजों
में निवेश कर रही है। मेथनॉल-ईंधन वाले 19 जहाजों
के साथ यह कंपनी तेल की जगह दूसरे ईंधन अपनाने की दिशा में काफी आगे है। हमारी एक समस्या है जिसे हल
करने की जरूरत है। यह एक अच्छा उपाय है। इसे आजमाते हैं। लेकिन मेथनॉल एक विवादास्पद समाधान है। वैश्विक स्तर पर पहले से ही
अपेक्षाकृत कम मात्रा में इस ईंधन का उत्पादन किया जाता रहा है, लेकिन उत्पादन में इज़ाफा? भविष्य में किफायती ढंग से मेथनॉल बनाने
की मुश्किलों को देखते हुए, इसे सही ठहराना मुश्किल है।
इस वीडियो में हम ईंधन और उसके पीछे की
तकनीक के बारे में विस्तार से समझेंगे। हम देखेंगे कि कैसे मैर्स्क अपने ग्राहकों की जरूरतों
से संचालित होता है। और कैसे पनामा नहर जैसे
अंतरराष्ट्रीय जहाज मार्ग इस बदलाव के मुताबिक ढल रहे हैं। क्या मालवाहक जहाज उद्योग कार्बन न्यूट्रल बनने के सही रास्ते पर है? या 707 जहाजों में से केवल 19 जहाजों में मैर्स्क का निवेश, ग्रीनवॉशिंग का ही बस एक और मामला है। रॉटरडम यूरोप का सबसे बड़ा समुद्री बंदरगाह। मैरी मैर्स्क 18,000 कंटेनर शंघाई के टेनजियर और फिर दक्षिण कोरिया के
उल्सान तक पहुंचा रही है। यह छह हफ्तों तक समुद्र में रहेगी। अधिकांश वैश्विक कंटेनर जहाजी बेड़े की तरह यह जहाज भी जीवाश्म ईंधन से चलता है। यह उद्योग वैश्विक ग्रीनहाउस गैस
उत्सर्जन का लगभग 3 प्रतिशत उत्सर्जित करता है। कमोबेश 2021 में जापान द्वारा उत्सर्जित 2.9 प्रतिशत जितना ही। जर्मनी का योगदान 1.8 प्रतिशत से कुछ कम था। और उत्सर्जन बढ़ना तय है। सालाना लगभग 1,100 करोड़ टन माल
की जहाज से ढुलाई की जाती है। यह आंकड़ा 2050 तक तीन गुना हो जाएगा। लेकिन मैर्स्क के पास एक योजना है, पारंपरिक तेल के विकल्प क
े रूप में सिंथेटिक ईंधन मेथनॉल का इस्तेमाल। हम जानते हैं कि यह काम कर सकता है क्योंकि इंजन तकनीक की गुणवत्ता
साबित हो चुकी है। एक ऐसा इंजन है, जो हम खरीद सकते हैं। साथ ही परिचालन और सुरक्षा के नजरिए से भी यह एक बहुत ही कारगर ईंधन है। इंजीनियरिंग फर्म एम-ए-एन एनर्जी सॉल्यूशंस, शिपिंग उद्योग के लिए नए दोहरे ईंधन
वाले मोटर विकसित कर रहा है। यह इंजन जरूरत पड़ने पर बीच समुद्र में मेथनॉल और जीवाश्म
ईंधन जैसे वैकल्पिक ईंधनों का अदल-बदलकर इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका केवल ऊपरी हिस्सा ही सामान्य
डीजल इंजन
से अलग है। वह है मेथनॉल जैसे सिंथेटिक ईंधन
के लिए इंजेक्शन व्यवस्था। मोटर का वजन कुछ सौ टन है और यह लगभग 19 मीटर लंबा है। एम-ए-एन हर साल करीब
1,000 इंजन बना सकता है। लेकिन कंपनी का कहना है कि
यह काफी नहीं होगा। बड़े स्तर पर पुराने जहाजों में
नए पुर्जे लगाने होंगे। और इसकी मांग बढ़ रही है। जब मैर्स्क ने मेथनॉल इस्तेमाल
करने का फैसला किया, तो पूरी इंडस्ट्री मेथनॉल पर चली गई। यह दिलचस्प लगता है, चलो इस्तेमाल करके देखते हैं। तो मेथनॉल में काफी दिलचस्पी है। मैर्स्क की यह नीति बहुत हद तक उसके ग्राहकों
द्वारा प्रेरित है, जिसमें लेनोवो, वोल्वो एचएंडएम और वेस्तास जैसे 200 से ज्यादा बड़े ब्रांडस शामिल हैं। उनमें से लगभग 70 फीसदी ने कार्बन लक्ष्य तय किए हैं और सप्लाई चेन को जल्द से जल्द डीकार्बनाइज करने का दबाव बढ़ रहा है। ज्यादा से ज्यादा कंपनियां ऐसे लक्ष्य तय कर रही हैं। फिर वो ऐसे उत्पाद खरीदने
को बहुत महत्व देती हैं, जो उनका उत्सर्जन घटाए। और जब वे उत्पाद में गुणवत्ता देखती हैं, तो कीमत चुकाने को तैयार होती हैं। यह कीमत यकीनन ग्राहकों के
कंधों पर डाली जाएगी। कितना यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन
औद्योगिक देशों में लोगों के लिए कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सामानों की कीमत कुछ ही डॉलर बढ़ने की संभावना है। दूसरी ओर आलोचकों का कहना है कि दुनिया के दक्षिणी हिस्से में, जीवनयापन की लागत पर इसका
बड़ा असर हो सकता है। तो क्या मैर्स्क और उसके प्रतियोगी सही ईंधन
पर दांव लगा रहे हैं? सबसे पहले यह CO2 और ग्रीन हाइड्रोजन से बना ग्रीन मेथनॉल होना चाहिए, जिसका प्रभाव जलवायु पर नहीं होता। दुनिया में लगभग 80 प्लांट्स हैं, जहां इसका उत्पादन होता है और इसकी संख्या बढ़ती जा रही है। जैसे चिली में पायलट प्रोजेक
्ट हारु ओनी। लेकिन यह छोटा है और अभी केवल कारों के लिए ई-ईंधन का उत्पादन करता है। वाणिज्यिक स्तर पर पहले CO2 से
मेथनॉल बनाने वाले प्लांट ने 2022 के अंत में चीन के आन्यांग में उत्पादन शुरू कर दिया है। यह एक नई तकनीक है, लेकिन यह प्लांट ग्रीन मेथनॉल नहीं बनाता है। हाइड्रोजन कोक अवन गैस से आती है और CO2 इंडस्ट्री की बेकार गैस से। इसके अलावा कई प्लांट बायोमास से निकला CO2 इस्तेमाल करते हैं, जो कि विवादास्पद है। जो भी बायो-मेथनॉल में बड़े पैमाने
पर निवेश कर रहे हैं उन्हें थोड़ा और इंतजार करना चाहिए।
ऐसी वैकल्पिक तकनीकों पर सोचना चाहिए, जिनमें सस्टेनिबिलिटी से जुड़े जोखिम ना हों। संक्षेप में कहें, तो CO2 को निकालना मेथनॉल उत्पादन की मुख्य जटिलता है। भविष्य में किफायती तरीके से मेथनॉल
बनाने की मुश्किलों को देखते हुए इसे सही ठहराना मुश्किल है। इसलिए अमोनिया जैसे कम लागत वाले
और ज्यादा आशाजनक रास्ते हैं, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए अभी
बहुत काम करना होगा, जब जहाजों को अमोनिया से चलाया जा सके। राजनेताओं ने साफ तौर पर नहीं बताया है कि शिपिंग कंपनियों को भविष्य में कौन सा वैकल्पिक ईंधन
इस्तेमाल क
रना चाहिए। हालांकि मेथनॉल और अमोनिया को
पसंदीदा माना जाता है। मार्च 2023 में यूरोपीय संघ 5,000 टन से अधिक के जहाजों के लिए ई-ईंधन कोटा तय करने पर सहमत हुआ। 2034 तक कम से कम दो फीसदी शिपिंग ईंधन, अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बनी बिजली से उत्पादित ई-ईंधन से आना चाहिए। विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र
अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन, जहाजरानी के क्षेत्र में नियम बनाने
के लिए जिम्मेदार है। लेकिन आईएमओ और ईयू की अपने लक्ष्यों में ढिलाई बरतने के
लिए आलोचना की गई है। हमें मजबूत ईयू नीति की जरूरत है और हमें आईएमओ से
एक वैश्विक नीति
समाधान की भी जरूरत है जो न केवल शुरुआती इस्तेमाल करने वालों को
प्रोत्साहन देने में प्रभावी हो बल्कि बड़े पैमाने पर बाजार में
बदलाव का संकेत दे जिसे 2030 के दशक में तेजी से बढ़ाने की जरूरत होगी। हमारे पास उस नीति की निश्चितता
जितनी कम होगी, निवेश में उतना ज्यादा जोखिम होगा। तो यह मुख्य रूप से बड़ी शिपिंग कंपनियां होंगी, जो जहाजों और ईंधनों में निवेश करेंगी। चार सबसे बड़ी कंपनियों के
मुख्यालय यूरोप में हैं। उनके पास वैश्विक शिपिंग बाजार
का आधे से अधिक हिस्सा है। हम यह कैसे सुनिश्चि
त करें कि हम दुनिया के दक्षिणी हिस्से को
नुकसान पहुंचाए बिना ये बदलाव करेंगे? हम खासतौर पर अपने देशों में इन
बदलावों को प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि हम संयुक्त राष्ट्र और आईएमओ के बहुपक्षीय समझौतों
तक नहीं पहुंच सकते हैं। और इसलिए हम मुद्रास्फीति में
कटौती के अधिनियम जैसी ईयू, ब्रिटेन और अमेरिकी नीतियों के
मद्देनजर ही सब कुछ करते हैं। इसका मतलब है कि तकनीक विकसित
देशों में केंद्रित हो जाएगी और आने वाले दशकों में हम इसे विकासशील दुनिया को बेच सकते हैं। यह बिल्कुल मददगार नहीं होगा। फिर भी दुनिया क
े सबसे
महत्वपूर्ण जहाज मार्ग भी इस परिवर्तन पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। लैटिन अमेरिका की पनामा नहर से छह फीसदी वैश्विक व्यापारिक
माल की ढुलाई होती है। प्राधिकरण चाहता है कि यह नहर 2030 तक कार्बन मुक्त हो जाए, यानी एक तथाकथित ग्रीन कॉरिडोर। ये उत्सर्जन-मुक्त शिपिंग सुनिश्चित करने के
लिए तैयार किए गए रास्ते हैं। ई-फ्यूल फिलिंग स्टेशन उपलब्ध कराना
भी रणनीति में शामिल है। शुल्क-भुगतान प्रणाली में कम कार्बन
उत्सर्जन वाले जहाजों को नहर से गुजरने के लिए कम
भुगतान करना होगा। यकीनन और बदलाव भी करने होंगे।
शुरुआत में हम अपने परिचालनों
में इस्तेमाल होने वाले किसी भी तकनीक का उपयोग करके अपने वाहनों के बेड़े को बदलेंगे। हम नहर के संचालन के लिए जरूरी बिजली उत्पादन से होने
वाले उत्सर्जन को भी अनुकूलित और कम करेंगे। शिपिंग क्षेत्र में बदलाव का मतलब लागत
में भारी निवेश करना होगा। जहां पारंपरिक जहाजों की कीमत लगभग करीब 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर है, वहीं नई पीढ़ी के दोहरे ईंधन इंजन
वाले जहाजों की लागत उससे भी दो करोड़ डॉलर ज्यादा है। और बिजनेस कंसल्टेंसी कंपनी मैककिंजी के मुताबिक, ई-ईंधन में बदलाव से जहाजों क
े संचालन में लगभग 40 से 60 फीसदी लागत की वृद्धि होगी। हम यह उम्मीद भी कर रहे हैं कि अगले कुछ सालों में हम हरित ईंधन के लिए अतिरिक्त लागत की पूरी भरपाई नहीं कर पाएंगे क्योंकि शुरुआती कुछ सालों में वे काफी महंगे होंगे। दरअसल हमारा अनुमान है कि हमें कुछ लागतों को खुद भी चुकाना होगा। और आप समझिए कि यह भी उचित ही है। शिपिंग कंपनी के मुनाफे में पिछले कुछ सालों के भीतर
भारी उछाल आया है। 2022 में मैर्स्क का मुनाफा करीब 3,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर था, जो कि पिछले साल से 60 फीसदी से ज्यादा था। कोविड-19 महामा
री के कारण चीन में बंद हुए बंदरगाहों के
कारण बड़े पैमाने पर सप्लाई चेन से जुड़ी दिक्कतें आईं। कंटेनर ट्रांसपोर्ट के दाम आसमान छू रहे हैं। और उस पर यूक्रेन में चल रही जंग ने माल ढुलाई दरों को और बढ़ा दिया है। लेकिन फिर से मैर्स्क की बात करें, तो क्या यह भविष्य के लिए
एक जरूरी निवेश है या ग्रीनवॉशिंग? क्या तेल पर चलने वाले 707
जहाजों की तुलना में दोहरे ईंधन वाले इंजन लगे 19 नए
जहाज सच में काफी हैं? यह बहुत ज्यादा नहीं लगता, लेकिन एक हालिया रिपोर्ट कहती है कि मैर्स्क 2040 तक शून्य कार्बन उत्सर्जक
ब
नने के लक्ष्य पर गंभीर है। भले ही कंपनी सप्लाई चेन को डीकार्बनाइज
करने के ग्राहकों के दबाव पर प्रतिक्रिया दे रही हो। वैकल्पिक ईंधन के रूप में मेथनॉल की
काफी आलोचना होती है। तकनीक काफी विकसित हो चुकी है। लेकिन इसे बनाना अभी भी महंगा और जटिल है। मैर्स्क इस क्षेत्र में बड़े प्रभाव वाला ताकतवर खिलाड़ी है। अगर बड़ी कंपनियां पूरी तरह से
मेथनॉल पर जोर देती हैं, तो अमोनिया जैसे दूसरे जलवायु-अनुकूल
विकल्प पीछे छूट सकते हैं। लेकिन भले ही यह बदलाव
महज ग्रीनवाशिंग ना हो, तब भी इस बात पर संदेह है कि क्या सिं
थेटिक ईंधन बढ़ते शिपिंग उद्योग को पूरी तरह
क्लाइमेट न्यूट्रल बना सकते हैं। हमें स्वतंत्र तौर पर भी उत्सर्जन
कम करने के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने की जरूरत है। और हमें भविष्य में ऐसे
हालात से बचना होगा जहां वैकल्पिक ईंधन का हिस्सा बढ़े, तो कुल ईंधन का उपयोग भी बढ़ जाए। लेकिन तथ्य यह है कि वैश्विक स्तर
पर हरित आधारभूत ढांचा और लॉजिस्टिक्स में पहले से ही
निवेश किया जा रहा है। तो क्या 2050 तक शिपिंग सेक्टर को डीकार्बनाइज करने
का लक्ष्य व्यावहारिक है? मैं पूरी तरह से सकारात्मक और आशावादी हूं क्योंकि हम प
रिवर्तन की दर देख सकते हैं। इसलिए हम इस बदलाव को ट्रैक करते हैं और हम कई सूचक देखते हैं। यह जानने के लिए कि वित्तीय समुदाय कहां है, नीति समुदाय कहां है, तकनीक कहां है। और वे सभी चीजें असाधारण गति
से आगे बढ़ रही हैं। इसलिए मुझे लगता है कि यह
मुमकिन हो सकेगा।
Comments
🇮🇳 जय हिन्द
Me aapke saare videos dekhti hu ❤I am aspirint ❤ aapke वीडियो very helpful ❤
DW Cares About Our Planet❤
Good👍👍
Very nice
What a nice documentary 👏 Congrats DW and Team 👍
DW Team आपकी Documentory हमेशा के तरह शानदार रहती है।
👍👍👍
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I'm from India
Shivaji Maharaj per video banaye
In future smaller modular atomic reactor will empower most of the ship.
Iam one first watched video
@7.00
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You are giving news apart from health talk .👍🏻
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Solar panel ke future par
It is Maersk (मस्क)
I work in Maersk line ship