Main

एक एसएस अधिकारी की रहस्यमय मौत: एक नाज़ी के अपराध की सच्ची कहानी | DW Documentary हिन्दी

साओ पाउलो के पास, अक्टूबर 1980 का एक दिन. एक आदमी अपने बाथरूम में मरा पड़ा है. उसका नाम है गुस्ताव वागनर. नाज़ी यातना शिविर के अपने कार्यकाल के दौरान उसे "सोबिबोर के शैतान" के नाम से जाना जाता था. पुलिस उसकी मौत को खुदकुशी बता रही है. नाज़ी यातना शिविर में हत्याएं कराने के बाद सामान्य जीवन जीना कैसे संभव है? यहूदी नरसंहार के तीन दशक बाद, श्लोमो श्मायज़नर की ब्राज़ील में गुस्ताव वागनर से मुलाकात होती है, वही व्यक्ति जिसने उसे पहले प्रताड़ित किया हुआ है. कुछ समय बाद, पूर्व एसएस अधिकारी मृत पाया जाता है. क्या श्लोमो श्मायज़नर का इससे कोई लेना-देना है, जो यातना शिविर से जीवित बचे चंद लोगों में से एक है? या फिर देर से ही सही, लेकिन यह एक प्राकृतिक न्याय है? सोबिबोर यातना शिविर में , श्लोमो श्मायज़नर का भयावह काम था मारे गए यहूदियों के दांतों में जड़े सोने से नाज़ियों के लिए गहने बनाना. गुस्ताव वागनर, जिसे " सोबिबोर के शैतान" के नाम से जाना जाता है, वो एक कट्टर नैशनल सोशलिस्ट था. उसे दूसरों को दुख पहुंचाने में बहुत मज़ा आता था और वह अचानक कुछ भी कर देता था, इसलिए लोग उससे डरते थे. सोबिबोर में लगभग 2,50,000 लोगों की हत्या की गई. बहुत कम लोग वहां से भागने में कामयाब रहे, जिनमें से एक श्लोमो भी था. फिर 36 साल बाद वह अपने प्रताड़क से दोबारा मिला, दुनिया के दूसरी हिस्से, ब्राज़ील में. इस फिल्म का वास्तविक अपराध वाला प्रारूप दर्शकों को अपराधबोध, प्रतिशोध और न्याय की दुनिया में ले जाता है. श्लोमो श्मायज़नर को जिस प्रश्न से जूझना पड़ा वह आज भी बहुत प्रासंगिक है. क्या इतने बड़े पैमाने पर अपराधों का प्रायश्चित संभव है? #DWDocumentaryहिन्दी #DWहिन्दी #holocaust #sobibor #truecrime ---------------------------------------------- अगर आपको वीडियो पसंद आया और आगे भी ऐसी दिलचस्प वीडियो देखना चाहते हैं तो हमें सब्सक्राइब करना मत भूलिए. विज्ञान, तकनीक, सेहत और पर्यावरण से जुड़े वीडियो देखने के लिए हमारे चैनल DW हिन्दी को फॉलो करे: @dwhindi और डॉयचे वेले की सोशल मीडिया नेटिकेट नीतियों को यहां पढ़ें: https://p.dw.com/p/MF1G

DW Documentary हिन्दी

3 days ago

हर डेथ कैम्प में एक शैतान होता है. सोबिबोर में उसका नाम था गुस्ताव वागनर. कत्ल करने में माहिर. कद-काठी से बेहद ताकतवर, क्रूर और बहुत बुद्धिमान. कोई आदमी अगर अपने लोगों के लिए राष्ट्रवादी है, तो क्या वह नाज़ी होता है? पीने वाले को जिस तरह शराब चाहिए, उसे खून चाहिए था. वागनर को कोई भूल नहीं सकता. आज साओ पाउलो में उसके एक पीड़ित ने उसे पहचान लिया. क्या सचमुच तुममें हिम्मत नहीं है? इंसान बनो, सच बताओ! श्लोमो ख़ास था, अपनी तरह का अनूठा. उसने तो सोबिबोर छोड़ा लेकिन सोबिबोर ने उसे नहीं छोड़ा. वह एक सर्व
ाइवर है. मुझे नहीं लगता कि स्तानिस्लाव कोई आम इंसान है, मेरे खयाल से उसके कई व्यक्तित्व हैं. वह अपने आसपास एक रहस्य बुन रहा था और उसे यह पसंद था. अरे, उस वक़्त बहुत सी बातें होती थीं कि गुस्ताव वागनर को किसने मारा? राइफल लो, कारतूस लो जाओ यहूदियों का सामना करो, वो आ रहे हैं. वागनर के साथ हिसाब बराबर करने के लिए स्तानिस्लाव के पास पर्याप्त कारण थे. मैं फिर से कहता हूँ, स्तानिस्लाव एक मक्खी भी नहीं मार सकता था. अगर मुझसे पूछें कि उन्होंने वागनर को मारा या नहीं? यक़ीनन मारा. दो लोग जो दशकों बाद फिर
से मिले. इस मुलाकात को मैं बार-बार जाकर देखता हूं. मैं हूं अंटोनियस केम्पमान. सालों से इन दोनों लोगों की कहानी ने मुझे उलझा रखा है. एक है नाज़ी गुस्ताव वागनर, वह आदमी जिसे "सोबिबोर का शैतान" कहा जाता था. दूसरा है एक यहूदी और होलोकॉस्ट सर्वाइवर. स्तानिस्लाव श्मायज़नर, या "श्लोमो." मैं अक्सर सोचता हूं कि अगर मुझे ऐसा आदमी मिल जाए, जिसने मेरे परिवार का कत्ल किया है तो मैं क्या करूंगा. और ये भी कि न्याय व्यवस्था को ठीक रखने वाले अगर अपना काम ढंग से नहीं कर पाते तो क्या होता है? ब्राज़ील 1978 साओ पाउ
लो के एक पुलिस स्टेशन में, स्तानिस्लाव श्मायज़नर और गुस्ताव वागनर लगभग 30 साल बाद फिर से मिले. दुनिया भर के पत्रकारों ने इस मुलाकात पर रिपोर्टिंग की. गुस्ताव फ्रांत्स वागनर एक पुराना एसएस अधिकारी था और दूसरे विश्व युद्ध में नाज़ी यातना शिविर, सोबिबोर का पूर्व डिप्टी कमांडर. उसने खुद को ब्राज़ीली पुलिस के हवाले कर दिया था. ये है गुस्ताव फ्रांत्स वागनर. आज साओ पाउलो में उसके एक पीड़ित ने उसे पहचान लिया. वह यह तो मानता है कि वह सोबिबोर में था लेकिन किसी के कत्ल से इनकार करता है. स्तानिस्लाव "श्लोमो
" श्मायज़नर, सोबिबोर का सर्वाइवर. वहां लगभग 2,50,000 लोगों की हत्या कर दी गई. 36 साल बाद वे एक-दूसरे से फिर मिले. यह एक नाटकीय मुलाकात थी. मिस्टर स्तानिस्लाव, वो आदमी जो आ रहा है क्या आप उसे यातना शिविर के कमान्डर के रूप में पहचानते हैं? वो गुस्ताव वागनर है. स्टाफ सार्जेंट, द बॉस पक्का? एकदम पक्का क्या तुम्हें पता है कि मेरे लिए इसके क्या मायने हैं? क्या तुमने कभी इस पर सोचा भी है? क्या सचमुच तुममें यह स्वीकार करने की हिम्मत नहीं है कि तुमने क्या किया? इंसान बनो, सच बताओ! 36 साल बाद भी कम से कम
एक मर्द की तरह गलती कबूल करो. तुम्हें शर्म आनी चाहिए! सच बताओ! यह एक ऐसी मुलाकात थी जिसकी जड़ें किसी दूसरे वक्त और दूसरी जगह में हैं दशकों पहले, एक अलग महाद्वीप पर. सोबिबोर को बहुत शांत और अलग-थलग रखा गया था. यह किसी सुदूर जंगल में कहीं था. सोबिबोर कोई शहर नहीं था. यह लगभग 20 मकानों वाला एक गाँव था. रिचर्ड राश्की एक अमेरिकी पत्रकार और लेखक हैं. 1970 के दशक में, उन्हें सोबिबोर से जीवित बचे लोगों की खबरें मिलीं. उन जीवित बचे लोगों में से एक स्तानिस्लाव श्मायज़नर था, जिसे "श्लोमो" के नाम से जाना जा
ता था. राश्की ने ब्राज़ील में उससे मुलाकात की. मैंने श्लोमो से एक सवाल किया सोबिबोर ने आप में क्या बदला? और उसने कहा, सोबिबोर के बाद से मैं हँसा नहीं हूँ, मैं रोया नहीं हूँ, मैंने प्रार्थना नहीं की. उसने कहा मुझे केवल नफ़रत और गुस्सा महसूस होता है और अब भी बदले की प्यास है. यहीं पर कभी सोबिबोर यातना शिविर होता था. यहाँ 2,50,000 यहूदियों का कत्ल कर दिया गया था. शिविर में 300 से भी कम कैदी बच पाये. आज तक, शिविर की केवल कुछ तस्वीरें ही मिलती हैं और इसकी कोई फिल्म रिकॉर्डिंग नहीं है. यहीं इस रैंप पर
, श्लोमो और वागनर पहली बार मिले थे. श्लोमो मई 1942 में अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ यहां पहुँचा और यहीं पर उतरा. वागनर की ज़िम्मेदारी थी कि यहाँ आने वाले सभी लोगों में से चुने कि कौन से यहूदी काम करेंगे. श्लोमो ने वागनर से जाकर कहा मैं एक सुनार हूँ. वागनर को तुरंत एहसास हुआ कि यह काम का हो सकता है और उसने उसे भीड़ से चुन लिया. श्लोमो के पूरे परिवार को जंगल के पीछे के इलाके में ले जाकर गैस से मार दिया गया. लेकिन श्लोमो को अभी तक यह नहीं पता था. पत्थरों से भरा एक मैदान. एक समय यहाँ राख का ढेर
था. मारे गए यहूदियों की राख. नाज़ी मौत के अपने तांडव के सभी निशान मिटा देना चाहते थे. पीड़ितों का कुछ भी नहीं बचना चाहिए था. गुस्ताव फ्रांत्स वागनर, सोबिबोर के खास लोगों में से एक था. वागनर को कोई भूल नहीं सकता था. मेरा मतलब, मैंने 30-40 सालों बाद जिसका भी इंटरव्यू किया, मैं बस "वागनर" कहता और वो बातें करने लगते. उन सबके पास वागनर की कहानियाँ थीं. उससे सब डरते थे. वागनर वहां का भगवान था. वागनर को यह तय करने का हक़ था कि किसे जीना चाहिए और किसे मरना. किसे कितना लंबा जीना चाहिए और किसे तुरंत मर जा
ना चाहिए. वागनर ऐसा ही था. वागनर बहुत दुष्ट, बुद्धिमान, धूर्त और हिंसक था. उसके स्वभाव के बारे में बताने में बहुत समय लगेगा. और अभी भी मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं जो मैं असल में उसके लिए इस्तेमाल कर सकूँ. कत्ल करने में माहिर. कद-काठी से बेहद ताकतवर, क्रूर और बहुत बुद्धिमान. उसे सब कुछ पता होता था. वह डर और दहशत फैलाकर रखता था. वह हर चीज़ पर नज़र रखता कई कैदियों को यह बात याद है. वह 25 कोड़े मारने के लिए कुख्यात था. सोबिबोर में काम करने वाले लगभग हर कैदी ने वो कोड़े खाए हैं. और अगर ग़लती से भी आपने ग़
लत गिनती की तब आपको फिर से 25 तक गिनना होता था. मारेक बेम सोबिबोर में बने स्मारक के निदेशक हैं. वह कई सालों तक शिविर के कुछ जीवित बचे लोगों के संपर्क में रहे. उन्हें श्लोमो के ज़िंदा बच निकलने की कहानी अब भी याद है. श्लोमो केवल 15 साल का था जब उसका पहली बार वागनर से सामना हुआ था. श्लोमो ख़ास था, अपनी तरह का अनूठा. आप यह समझिए कि वो बहुत कम उम्र का था, एक छोटे लड़के से कुछ ही बड़ा. उसमें बहुत ऊर्जा थी. उसके पास बहुत साहस और दिमाग था. वह लोगों को चुन रहे उस आदमी के पास गया और बोला कि क्या आपको सुनार
की ज़रूरत है? मैं आपकी मदद कर सकता हूँ. ज़िंदगी और मौत के बीच कुछ ही सेकंड का अंतर था. वागनर ने श्लोमो को छोड़ दिया क्योंकि श्लोमो सोने का काम जानता था. उसे मजबूर किया गया कि वह मारे जा रहे यहूदियों के पास मिले सोने के सामान और सोने के दांतों से गहने बनाए. वागनर और उसके एसएस वाले साथियों ने अपने चाबुक पर सोने जड़वाए, या अपनी बीवियों के लिए गहने बनवाए. वागनर के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद लालची था. मई 1942 में यहाँ हुई उनकी पहली मुलाकात से लेकर 1978 में ब्राज़ील के पुलिस स्टेशन में आमने-सामने
मिलने तक श्लोमो ने सबसे ज्यादा वागनर के बारे में ही सोचा था. मई 1978 में गुस्ताव फ्रांत्स वागनर 30 साल बाद फिर से दिखा. वह अन्डरग्राउन्ड हो गया था और गुमनामी में जी रहा था. लेकिन अब उसने ख़ुद को दुनिया के सामने लाने की सोची. कोई आदमी अगर अपने लोगों के लिए राष्ट्रवादी है, तो क्या वह नाज़ी हो गया? यह कैसी बात हुई? क्या यह कोई गाली है या कोई सम्मान भरा तमगा? मुझे नहीं पता. जब आप यातना शिविर में काम करते थे तो क्या आपने वहां बहुत से यहूदी, बहुत से मरे हुए लोगों को देखा था? मैंने क्या देखा था? बहुत
से यहूदी और मरे हुए लोगों को? नहीं, बिल्कुल नहीं. क्या आप जानते हैं वहां कितने यहूदी मरे? नहीं, मुझे नहीं पता आपको कुछ नहीं पता? मुझे कोई जानकारी नहीं है. देखिए, जब आप ऐसे हालात में होते हैं, तो आप उन चीज़ों को नज़रअंदाज़ करते हैं जो हो रही हैं, और जो आपको मंज़ूर नहीं हैं. जो आदमी कैदियों के बीच ‘सोबिबोर के शैतान’ के नाम से जाना जाता था वो दावा कर रहा है कि उसे कैम्प में हुए लोगों के सामूहिक कत्ल के बारे में कुछ भी नहीं पता. यह दावा मानने लायक नहीं था, क्योंकि वागनर एक कट्टर नैशनल सोशलिस्ट था. 19
31 की शुरुआत में, गुस्ताव वागनर नाज़ी पार्टी में शामिल हुआ. 1933 में, वह एसएस में शामिल हो गया. 1942 में, वागनर ने सोबिबोर डेथ कैम्प बनाने में मदद की और वह वहां का सबसे अहम व्यक्ति बन गया. वागनर सोबिबोर का दूसरा नाम बन गया. यहूदियों से नफ़रत, सारी क्रूरता, लोगों को मारकर मिलने वाली खुशी, वह सबका प्रतीक था. गुस्ताव वागनर ने कभी नहीं सोचा होगा कि तीन दशक से भी ज़्यादा वक़्त बीतने के बाद, दुनिया के किसी अलग ही कोने में उसका सामना दोबारा श्लोमो श्मायज़नर से होगा. उसके साथ क्या होना चाहिए? उसे जेल जान
ा चाहिए और अपने गुनाहों के बारे में सोचना चाहिए. वो 36 साल आज़ाद रहा जबकि कई लोग इतने लंबे समय से कैद में हैं. मौत की सज़ा नहीं? नहीं, बिल्कुल नहीं. मैं सज़ा-ए-मौत का विरोधी हूँ. श्लोमो श्मायज़नर की न्याय की उम्मीद व्यर्थ रही. वागनर पर कोई मुकदमा नहीं चला और न उसे जर्मनी ही भेजा गया. ब्राज़ील के कानून के मुताबिक उस पर मुकदमा चलाने की मियाद बीत चुकी थी. दो साल बाद वो मर गया. वो अपने ही बाथरूम में अपनी गोद में एक बड़े चाकू के साथ मिला. छाती पर चाकू के वार से उसकी मौत हुई थी. मौत की आधिकारिक वजह खु
दकुशी बताई गई. कुछ समय बाद, अमेरिका में डाक से एक पोस्टकार्ड आया. इसमें गुस्ताव वागनर के शरीर की एक तस्वीर थी, और एक रहस्यमय संदेश था. उसमें लिखा था कि उसने अपनी ही पीठ में छुरा घोंपकर खुदकुशी की, अपनी जान ली. मुझे याद है. ये बात मेरे दिमाग में रह गई. मैं अब्राहम राब से मिलने जा रहा हूं, जो अमेरिका में पूर्वी तट पर रहते हैं. एस्टर राब, जो सोबिबोर के कुछ सर्वाइवरों में से एक थीं, उन्होंने अपना जीवन यहीं बिताया था. वो कार्ड उन्हीं के लिए था. अब्राहम उनका बेटा है. कार्ड किसने भेजा था? और उसमें क्या
लिखा था? अब्राहम राब ने सोचा कि वो पोस्टकार्ड भी दूसरे रेकॉर्ड्स के साथ ही उस जगह पड़ा होगा. पता नहीं, एक दिन अखबार में एक लेख आया कि वागनर मर चुका है. और उसके कुछ ही समय बाद, हमें ब्राज़ील से एक पोस्टकार्ड मिला जिसमें वागनर की एक तस्वीर थी जिसमें वह गिरा हुआ सा था. मेरे खयाल से उस वक्त वह कमोड पर था. और नोट में लिखा था कि उसने चाकू मारा है. उसने अपनी पीठ में चाकू मारकर खुदकुशी कर ली है. इस पर हमने कुछ मज़ाक जैसा भी किया था कि अपनी पीठ पर खुद ही चाकू मारना ज़रा मुश्किल लगता है, लिहाज़ा ज़रूर किस
ी ने खुदकुशी में उसकी मदद की होगी. अब्राहम की माँ एस्टर राब, सोबिबोर के बचे हुए लोगों की एक खास आवाज़ थीं. डेथ कैम्प और गुस्ताव वागनर की यादें उन्हें जीवन भर परेशान करती रहीं. वागनर के मरने से एक साल पहले, एस्टर राब ने बीबीसी को एक इंटरव्यू दिया था जिसमें उन्होंने सोबिबोर में वागनर के साथ बीते वक्त के बारे में बताया था. मैं उसे भूल नहीं पाती. मुझे हमेशा सपना आता है कि वो मेरा पीछा कर रहा है. मुझे ये ख्वाब अक्सर आता है. मुझे लगता है कि इससे यह एहसास रह जाता है कि मैं कभी ख़ुश नहीं रह पाउंगी. मैं
सच में कभी ख़ुश नहीं हो सकती. आप कभी खुश नहीं हो सकतीं? और आप इसका दोषी किसे मानती हैं? वागनर को हमें वह पोस्टकार्ड नहीं मिला जिसका ज़िक्र अब्राहम ने किया था. हमने उनसे कहा कि जितना हो सके वो पोस्टकार्ड पर मौजूद तस्वीर का स्केच बनाने की कोशिश करें. वो तस्वीर बहुत डीटेल में नहीं थी. एक छोटे से कमरे में टॉयलेट पर बैठा एक आदमी. मेरे ख़याल में वो बिना कमीज था और उसकी पीठ पर कट के निशान थे. अब्राहम का स्केच वैसा ही लग रहा था, जहां वागनर की लाश मिली थी. तो यह पोस्टकार्ड और रहस्यमय संदेश किसने भेजा होग
ा? हमें लगता है ये श्लोमो ने भेजा होगा. क्या श्लोमो, वागनर की मौत में शामिल था? हाँ, मुझे तो लगता है. क्या आपके परिवार में सभी को ऐसा ही लगा? हाँ, मैं ऐसा सोचता हूं. उन्हें लगा कि श्लोमो यह नहीं कहना चाहता कि उसने हत्या की लेकिन वह चाहता है कि हम जान लें कि उसी ने मारा है. एस्टर राब और उनके बेटे के लिए, पोस्टकार्ड इस बात का सबूत था कि किसी ने सोबिबोर के पीड़ितों का बदला लिया था. क्या वो श्लोमो था? और यह "श्लोमो" नाम से मशहूर स्तानिस्लाव श्मायज़नर, दरअसल था कौन? 1980 के दशक के मध्य में, एक फिल्म
क्रू ने उसे फिल्माया था. उस समय तक, ब्राज़ील श्लोमो का नया घर बन चुका था. 1947 में वह एक नई ज़िंदगी शुरू करने के लिए रियो डे जनेरो आया था. लेकिन वह अपनी यादों को पीछे नहीं छोड़ पाया था. श्लोमो बहुत ही आकर्षक, बुद्धिमान और प्रताड़ित सा था. सब कुछ हद से ज्यादा. 1980 के दशक में, पेट्रा लाटैस्टर-सिश ने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म पर काम किया जिसमें श्लोमो मुख्य किरदार था. उन्होंने शोध के लिए ब्राज़ील की यात्रा की और श्लोमो के साथ रहीं. पहले ही पल से, वह कुछ अनूठा सा था. श्लोमो का बीता हुआ कल भयावह और असहन
ीय था. लेकिन दूसरी ओर, वह आश्चर्यजनक रूप से मज़ाकिया भी था. हमने खूब हँसी-मजाक किया. इसके साथ ही, वह बेहद दिलचस्प जिसे हम कह सकते हैं कि एक दिलकश शख्सियत था. एक ऐसा आदमी जो आपका दिल जीत ले. आपने पूछा कि वह कितना सहज और ईमानदार था. अजीब बात है कि मैंने उसे बेहद सहज और ईमानदार पाया लेकिन कुछ चीजें थीं जिसके बारे में उसने कभी बात नहीं की. अपनी उस यात्रा के दौरान, पेट्रा लाटैस्टर-सिश और श्लोमो अक्सर गुस्ताव वागनर के बारे में बात करते थे. यह बात बिल्कुल साफ़ थी कि वह मानता था कि वागनर जैसा राक्षस ज़ि
ंदा रहने लायक नहीं है. उसने मुझे वागनर और उसकी मौत से जुड़ी एक तस्वीर और एक बहुत पीले रंग की, पुराने अख़बार की कतरन या शायद कई कतरनें दिखाईं. तब तक वे काफ़ी पीली पड़ चुकी थीं. और वह यक़ीनन उन्हें बार-बार देखता होगा, क्योंकि वो कागज़ काफ़ी मुड़े-तुड़े और फटे से थे. मुझे वो फोटो घिनौनी सी लगी. और हाँ, उसने मुझे ऐसे दिखाया जैसे अपनी किसी जीत की फ़ोटो दिखा रहा हो. और आज तक मुझे नहीं पता कि वो क्या दिखाना चाहता था. वह एक पहेली था. एक पहेली. उसके पास हथियार थे. शायद पहले .22 कैलिबर, और फिर बाद में .38 वह ऐ
सा आदमी नहीं था जो अपने पीड़ित होने का रोना रोए. कभी-कभी कोई यहूदी किसी न किसी तरह से मोस्साद की मदद कर देता था. मोस्साद ने कई युद्ध अपराधियों का सफाया किया है. और सूची में कौन था? गुस्ताव फ्रांत्स वागनर कई बार मौका नहीं मिलता. लेकिन जब उसने टीवी पर गुस्ताव वागनर को देखा तो उसे मौका मिल गया. जंग के बाद, श्लोमो ब्राज़ील में आकर बस गया. 70 साल से ज़्यादा बीतने के बाद, मैं उसके कदमों के निशान ढूंढ रहा हूँ. क्या मुझे अब भी श्लोमो को जानने वाले लोग मिलेंगे? और क्या उन्हें पता होगा कि वागनर की मौत में
उसकी कोई भूमिका थी या नहीं? 1947 में जब श्लोमो यहाँ आया, तो उसने यूरोप की यादों को पीछे छोड़ने का इरादा कर लिया था. वह एक नई ज़िंदगी, एक नई शुरुआत चाहता था. फिर उसने शादी की और उसके दो बेटे हुए. फिर वह एक ऐसे आदमी से मिला जिसने उसके और सोबिबोर से बचे कुछ लोगों के जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाई. मैं अपने एक साथी मार्टिन कॉल के साथ जा रहा हूं. मार्टिन पुर्तगाली बोलता है और ब्राज़ील को अच्छी तरह से जानता है. जिस आदमी से हम मिलने जा रहे हैं वह रियो डे जनेरो के सबसे अमीर इलाकों में से एक फ्लेमेंगो मे
ं रहता है. यह हैं एक जानेमाने पत्रकार और प्रकाशक स्वी गिवेल्डर. और ये है भूतपूर्व राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन के साथ मेरा इंटरव्यू. उनके साथ बात करना बहुत ही सुखद अनुभव था. मेरा नाम स्वी गिवेल्डर है. मेरी पूरी ज़िंदगी पढ़ने-लिखने में ही बीती है. ये 1968 की बात है. मैं न्यूज़रूम में था. मुझे उसी बिल्डिंग के नीचे से एक फ़ोन आया और रिसेप्शन ने मुझसे कहा, कोई है जो आपसे बात करना चाहता है. उसका नाम क्या है? स्तानिस्लाव श्मायज़नर, उन्होंने बताया. मैंने सोचा, ये तो यहूदी नाम है, यानी कोई यहूदी आया है. मैंने क
हा, ठीक है ऊपर भेजो. श्लोमो ने स्वी गिवेल्डर को अपनी कहानी बताई. उसने डेथ कैंप और वागनर के बारे में बात की. और सोबिबोर के विद्रोह के बारे में जहां से लगभग 300 कैदी भाग गए थे. श्लोमो बचे हुए कुछ लोगों में से एक था और वह एक किताब लिखना चाहता था. स्वी गिवेल्डर ने "हेल इन सोबिबोर" नाम से किताब प्रकाशित की. हर कोई उस दिन तक यही कहता कि यहूदी कैसे भेड़ की तरह चुपचाप, शांति से, बिना हो-हल्ला किए गैस चैम्बर में चले गए. और फिर अचानक एक दिन एक यातना शिविर की कहानी सामने आई और सिर्फ यातना शिविर नहीं, वहाँ प
र हुआ यहूदी विद्रोह भी. और तब यहूदी समझ पाए कि ऐसा नहीं था कि उनके यहाँ नायक नहीं हुए और स्तानिस्लाव की किताब की यही ख़ास बात थी. स्तानिस्लाव श्मायज़नर दुनिया को बताना चाहता था कि सोबिबोर में क्या हुआ था. वह एक बहुत ही साधारण आदमी था. उसे अपने बारे में चर्चा पसंद थी. जब एक मैगज़ीन में उसकी फ़ोटो छपी थी तो वो फूला नहीं समाया तो एक तरह से उसने अपनी शोहरत का रास्ता खुद बनाया था. हाँ इसे शोहरत कह सकते हैं. और लोग कहते हैं कि उसे 15 मिनट की शोहरत मिली. गवाही देना एक बात है लेकिन क्या श्लोमो इससे ज्या
दा कुछ चाहता था? एक इंटरव्यू में जब श्लोमो से पूछा गया कि क्या वागनर की मौत में कोई यहूदी शामिल था. श्लोमो का जवाब टालमटोल वाला था. श्लोमो ने जवाब देने से इनकार क्यों किया? यह कहना स्तानिस्लाव की शख्सियत से बिल्कुल मेल खाता है. ये सब बोलता हुआ उसका चेहरा मेरी आंखों के सामने तैर जाता है. एकदम ख़ुशी से भरा हुआ क्योंकि वह अपने इर्द-गिर्द एक रहस्य बुन रहा था. उसे मज़ा आता था, बहुत मज़ा. माफ़ कीजिएगा मैं हँस पड़ा लेकिन मैं स्तानिस्लाव को बिल्कुल वो करते हुए देख सकता हूँ जैसा आप बता रहे हैं. स्तानिस्लाव
"श्लोमो" श्मायज़नर यूरोप से 11,000 किलोमीटर दूर रियो आया. जब आया तो वह कैसा था? और ब्राज़ील में वो कैसा हो गया? क्या वह नाज़ियों को भूलने की कोशिश कर रहा था या उन्हें न्याय के कठघरे में लाने की कोशिश कर रहा था? जो भी हो, श्लोमो ने यह तय कर लिया था कि वह फिर से नहीं छिपेगा. लेकिन जो दूसरे लोग वहाँ से निकले थे उन्होंने वैसा किया क्योंकि वो छिपना चाहते थे, ग़ायब हो जाना चाहते थे. 1945 में दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म हुआ. जर्मनी हार गया था. धीरे-धीरे, नाज़ी अत्याचारों की और कहानियाँ सामने आईं. गुस्ताव वा
गनर का नाम युद्ध अपराधियों की सूची में था. उस पर कत्ल, नरसंहार और बाकी कई अपराधों के आरोप थे. वागनर भाग गया. उन हज़ारों नाज़ियों की तरह जो "रैटलाइन्स" नामक एस्केप रूट से भागे थे. बहुत से लोग जहाज़ से दक्षिण अमेरिका पहुँच गए, कई लोग ब्राज़ील में गए. उनमें से कई जर्मन भाषी लोगों के साथ रहे और जर्मन परंपराओं को बनाए रखा. गुस्ताव वागनर 1950 में ब्राज़ील पहुँचा. उसने अपना असली नाम नहीं छुपाया. उससे दूसरे विश्व युद्ध और होलोकॉस्ट में उसकी भूमिका के बारे में नहीं पूछा गया. हमारा राष्ट्रपति जेतूलियो वार
गस दरअसल एक तानाशाह था. वह नाज़ी जर्मनी का समर्थक था. वो सभी विदेशियों का स्वागत करता था चाहे वो कहीं से भी हों, कैसे भी हों. ब्राज़ीलियाई लोगों को इसकी परवाह नहीं थी कि जंग में फ़्रांत्स या फ़्रिट्ज़ ने क्या किया होगा. उन्हें बस सांबा, कशासा, और फुटबॉल से मतलब था, बस वागनर साओ पाउलो के पास एक शहर आचीबाया में बस गया. वह एक महिला से मिला, उससे दोस्ती की और वहीं एक नया घर बसा लिया. लेकिन वह अपने अतीत से नहीं भाग पा रहा था. मेरा नाम मारियो चिमानोविच है. मैं 76 साल का हूं, और मैंने ब्राज़ील में छिपे
एक खास नाज़ी अपराधी को पकड़ने में ज़ीमोन वीज़ेनथाल की मदद की थी. और उसका नाम था गुस्ताव फ्रांत्स वागनर. शुरुआत में वागनर को कोई चिंता नहीं थी. वह दक्षिण अमेरिका में रहने वाले सबसे प्रमुख नाज़ी से काफी दूर था. कुछ लोग पराग्वे, बोलीविया और अर्जेंटीना चले गए थे. और अडोल्फ आइषमन ब्यूनस आयरस पहुंचा. आइषमन यूरोपीय यहूदियों के नरसंहार के सूत्रधारों में से एक था. अर्जेंटीना में वह नकली नाम से रहता था. क्लॉउस बार्बी बोलीविया में बस गया. वह अधिकृत फ़्रांस के लियोन में गेस्टापो का मुखिया था और अपनी क्रूरत
ा के लिए कुख्यात था. योज़ेफ़ मेंगेले जो कि एक डॉक्टर था वो आउशवित्स में कैदियों पर अपने प्रयोगों के लिए बदनाम था. वह अपनी यात्रा में आधे दक्षिण अमेरिका तक चला गया. पहले तो किसी ने उनकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया, और उन्होंने अपना जीवन लगभग पूरी तरह से बिना किसी रोकटोक के बिताया. यहाँ पर एक तरह से जर्मन सुरक्षित थे. ऊंचे रैंक के एसएस अधिकारियों ने दूसरे विश्व युद्ध के अंतिम दौर में एक नेटवर्क स्थापित किया था. सब कुछ उन्हें वहीं से मिल जाता था. जाली दस्तावेज़, परिवहन, काम सब कुछ. श्लोमो श्मायज़नर कैसे औ
र कहाँ रहता था? हमारी यात्रा का अगला पड़ाव हमें ब्राज़ील ले गया. जब श्लोमो यहां आया तो उसे नहीं पता था कि वागनर भी ब्राज़ील में रह रहा है. श्लोमो इस बिल्डिंग में रहता था. एक बड़ी छत वाली सबसे ऊपरी मंजिल पर. यहीं पर मैं अपने परिवार के साथ रहती थी. 602 नंबर अपार्टमेंट में. और यहाँ पर हमारा चहेता स्तानिस्लाव रहता था. यह फुटेज 1980 के दशक में श्लोमो के अपार्टमेंट में ली गई. मेरा नाम जूलिया सालोमाओ है. मैं स्तानिस्लाव की पड़ोसी थी. वो कैसा आदमी था? बहुत ही रहस्यमयी. वह बहुत पढ़ा-लिखा, बहुत अदब वाला और
बहुत बुद्धिमान था. लेकिन साथ ही उसमें एक तरह की कड़वाहट भी थी, जितना वो खुश रहने की कोशिश करता, उसे उतनी ही कड़वाहट महसूस होती. मुझे लगता है कि यह उसके चारित्रिक गुण थे. यह उसकी ज़िंदगी का नतीजा था, यह उसके दिल में बस गया था. एक दिन हमारी बिल्डिंग में आग लग गयी. फायर अलार्म बजा और सभी लोग सीढ़ियों से नीचे भागे. लेकिन जब हम नीचे पहुंचे तो सबको ख़याल आया कि स्तानिस्लाव नहीं है, कहाँ है स्तानिस्लाव? हम सब परेशान हो गए. मेरी चाची वापस ऊपर गईं. फायर फाइटर्स ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वह फिर भ
ी गईं. वह ऊपर उसके अपार्टमेंट में गईं तो देखा कि वो वह एक कोने में घबराया हुआ बैठा था. वह बहुत डर रहा था. मेरी चाची ने उसे एक बच्चे की तरह पकड़ा. वह रोने लगा ऐसा लग रहा था मानो वह अपने अतीत के बहुत मुश्किल वक्त को फिर से जी रहा हो. उसने तो सोबिबोर छोड़ा लेकिन सोबिबोर ने उसे नहीं छोड़ा. यह बहुत दुखद था. श्लोमो गोयेनिया में अकेले रह रहा था. उसने अपनी पत्नी और दोनों बेटों को रियो में छोड़ दिया था. वो एक सर्वाइवर है. उसने सब कुछ से पार पाने की कोशिश की. मेरा नाम होद्रीगो इस्तीवाले तेइशेरा है और स्तान
िस्लाव श्मायज़नर की मेरे पूरे परिवार से अच्छी जान-पहचान थी. मुझे नहीं लगता कि स्तानिस्लाव सिर्फ एक आदमी था, उसमें कई आदमी समाए थे. क्योंकि वह जल्दी खुद को ढाल लेता था. वो जब जिस माहौल में रहा, उसने खुद को ढाल लिया. जब वह बच्चा था तो उसकी अलग दुनिया थी. वो पहले कैम्प गया, फिर वह रूसी सेना में गया, वहाँ लड़ाई लड़ी. फिर वह ब्राज़ील आया. यहाँ उसने ज़िंदगी जी या कहें कि बनाई, है न? लेकिन वह अतीत को नहीं भूल सका. आप अतीत को भूल भी कैसे सकते हैं? आप कोशिश कर सकते हैं, पर ऐसा कर नहीं पाते हैं. गुस्से से भर
ा हुआ, दुख के बोझ से दबा और गुस्से के अलावा भावनात्मक रूप से एक मरा हुआ आदमी. उसके बारे में मेरी पहली राय यही थी. तो एक अकेला गुस्से से भरा हुआ आदमी बिना खुदकुशी किए कैसे रहा? म्यूज़िक की वजह से. तो उसकी अपनी एक मांद थी, मैंने ऐसा कुछ पहले नहीं देखा था. वहाँ शायद 1000 लॉन्ग प्ले रेकॉर्ड्स होंगे, वाइनल रेकॉर्ड्स, मोत्सार्ट से मंतोवानी तक, सब कुछ होगा. यही उसके लिए अफ़ीम जैसा था. यही उसकी नींद की दवा. यही उसकी शराब. यानी संगीत. रिचर्ड राश्की श्लोमो से मिलने गोयेनिया गए. 40 साल बाद भी उन्हें याद है
कि श्लोमो ने क्या कहा था. मुझे नफ़रत है और मुझे बदला चाहिए. उसने ये मुझसे कहा था. वो ऐसा ही था, इसमें कुछ भी भ्रम नहीं था. अगर वो किसी से नफ़रत करना चाहता था तो उसने की और अगर वो किसी को मारना चाहता था तो वो एक ही आदमी था गुस्ताव वागनर. 1960 के दशक की शुरुआत में दक्षिण अमेरिका में छुपे हुए नाज़ियों की तलाश शुरू हुई. इस्राएल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोस्साद ने अडोल्फ आइषमन का पता लगाया और उसका पीछा किया. मई 1960 में, आइषमन को इस्राएली एजेंटों की एक टीम ने पकड़ लिया और इस्राएल ले आये. उस पर मानवता के ख
़िलाफ़ अपराध का आरोप लगाया गया था. इस मुकदमे ने नाज़ी शासन की क्रूरता को पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया. आइषमन को मौत की सज़ा दी गई. यह मुक़दमा उन छिपे हुए नाज़ियों के लिए भी एक संदेश था कि आइषमन की तरह उन्हें भी ढूंढ कर उनके अंजाम तक पहुंचाया जाएगा. सारी पहल, दक्षिण अमेरिका में नाज़ियों को ढूंढ कर मारने के संबंध में उठाए गए कदम, सब कुछ मोस्साद की तरफ से हो रहा था, स्थानीय समुदायों की ओर से नहीं. कभी-कभी कोई यहूदी किसी न किसी तरह से मोस्साद की मदद कर देता था. जंग के बाद वाले उस दौर में नाज़ियों
को पकड़ने में ज़ीमोन वीज़ेनथाल का नाम सबसे ख़ास था. विएना में उन्होंने दुनिया भर से सबूत इकट्ठा किए, दस्तावेज़ तैयार किए और अलग-अलग सुरागों के बीच संबंध स्थापित किए. वीज़ेनथाल भी गुस्ताव वागनर को ढूँढना चाहते थे. उस जंग के बाद से अपने पूरे करियर में मैं जितने भी क्रूर लोगों से मिला उसमें गुस्ताव वागनर को मैं सबसे बुरे लोगों में से एक मानूँगा. और जिसे मैं सबसे ख़राब कह रहा हूँ उसे एसएस ने सबसे बढ़िया माना होगा. 1960 के दशक में वीज़ेनथाल ने फ्रांत्स श्टांगल के खिलाफ सबूत इकट्ठे किए. श्टांगल, गुस्त
ाव वागनर से ऊंचे ओहदे का आदमी था और वे सोबिबोर में मिले थे जहां श्टांगल कैम्प कमांडर था. श्टांगल भी ब्राज़ील में ही छुपा था. श्टांगल को 1967 में गिरफ्तार किया गया, जर्मनी भेजा गया और मुकदमा चलाया गया. अदालत में श्टांगल का सामना डेथ कैम्प के एक सर्वाइवर से हुआ. यह था स्तानिस्लाव श्मायज़नर यानी श्लोमो, जो श्टांगल के खिलाफ गवाही देने के लिए ब्राज़ील से आया था. सोबिबोर में, श्लोमो को मारे गए यहूदियों से निकाले गए सोने से श्टांगल के लिए भी आभूषण बनाने को मजबूर किया गया था. मुझे लगता है कि स्तानिस्लाव
को उस जंग में इतना कुछ सहना पड़ा कि वो कुछ ठीक करना चाहता था. शायद दुनिया को कुछ बेहतर करना चाहता था या शायद अपने अंदर कुछ ठीक करना चाहता था. स्तानिस्लाव श्टांगल वाले इस मामले के बाद अपने आप को थोड़ा हीरो जैसा मान रहा था. श्लोमो की जर्मनी यात्रा सफल रही. श्टांगल को दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा दी गई. मुकदमे के दौरान श्टांगल ने एक राज़ खोला. वागनर की आजादी पर पहला ख़तरा 1967 में मंडराया. फ्रांत्स श्टांगल, जिसके साथ वो भागा था, उसे ब्राज़ील में पकड़ लिया गया. उसे नाज़ियों का पीछा करने वाले
ज़ीमोन वीज़ेनथाल ने ढूंढ निकाला. श्टांगल को पश्चिमी जर्मनी को सौंप दिया गया और वहीं जेल में उसकी मौत हो गई लेकिन उससे पहले उसने बता दिया कि वागनर जिंदा है और ब्राज़ील में है. श्लोमो को अब यह भी पता था कि वागनर कहाँ रह रहा था. बताया जाता है कि उसने कहा था कि वो उसी हवा में साँस नहीं ले सकता है जिसमें वागनर ले रहा हो. तो क्या श्लोमो वागनर को खोजना चाहता था? मुझे नहीं लगता कि स्तानिस्लाव कभी दक्षिण अमेरिका में किसी नाज़ी की मौत में शामिल रहा होगा, बिल्कुल नहीं. क्योंकि स्तानिस्लाव अक्सर मेरे पास आ
ता था. मेरी अक्सर उससे बात होती थी. अगर किसी ने उससे बात की होती तो वो मुझे बताता. और किसे पता होगा कि श्लोमो ने वागनर को ढूँढने की कोशिश की थी या नहीं? क्या श्लोमो ने वीज़ेनथाल की मदद की थी? श्लोमो की पत्नी मर चुकी है और केवल एक बेटा ज़िंदा है. हमने कई बार उस तक पहुँचने की कोशिश की. हमने उससे बात करने की हर मुमकिन कोशिश की. सैकड़ों व्हॉट्सएप मैसेज लिखे, उसे कॉल करने की कोशिश की. दोस्तों और परिवार के ज़रिए उस तक पहुंचने की कोशिश की. आख़िरकार वह श्लोमो का बेटा है. वह हागेन में अदालत में उसके साथ थ
ा. जब उसके पिता को अंग्रेजी में बात करनी होती तो वही अनुवाद करता था. इसलिए वह बहुत कुछ जानता है. हमें उम्मीद है कि वह हमारी मदद कर सकता है. हमने उसके रहने का ठिकाना पता कर लिया. हमने उसे एक ख़त लिखने का फ़ैसला किया. यह पूछने के लिए कि क्या वो हमसे मिलना चाहेगा और उसे उसके मेलबॉक्स में डाल दिया. हम कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे और अति भी नहीं करना चाहते थे. मार्टिन अकेले उसके घर गए थे. अभी तक कुछ नहीं हुआ है. वह काफ़ी देर से दरबान के साथ वहाँ है. दरबान ने कहा हाँ, वह यहीं रहता है. यह उसकी तस्वीर मि
ली है, वह ऐसा दिखता है. लेकिन उसने उसे कई महीनों से नहीं देखा. आम तौर पर वह अपनी पत्नी या बेटी के साथ घूमने निकलता है. उसके दामाद का भी आना होता है, लेकिन उसका कहना है कि उसने कुछ समय से उनमें से किसी को नहीं देखा है और उन्हें पता नहीं है कि वे कहां हैं. वो महीनों से घर नहीं आया. श्लोमो के बेटे ने कभी भी हमारे मैसेज या खतों का जवाब नहीं दिया. हम समझ गए कि वो हमसे बात नहीं करना चाहता. 1974 में, वागनर तब भी ब्राज़ील में सुरक्षित महसूस कर रहा था. इस बीच, जर्मनी में उसकी खोज हो रही थी. उसकी गिरफ़्ता
री का आदेश जारी कर दिया गया था, लेकिन ब्राज़ील में वो आम ज़िंदगी जी रहा था. उसने अपने असली नाम से ही पासपोर्ट की तारीख़ बढ़ाने के लिए अप्लाइ किया था. ज़ीमोन वीज़ेनथाल अभी भी वागनर को ढूंढ रहे थे. साओ पाउलो में हम मारियो चिमानोविच से मिले. ये वो आदमी था जिससे वीज़ेनथाल ने वागनर को ढूँढने में मदद ली थी. क्या आपको पता है मुझे ये क्यूँ चाहिए? मैंने अपने जीवन में बहुत स्मोक किया. 50 साल चिमानोविच एक पत्रकार हुआ करते थे. उन्होंने दक्षिण अमेरिका में नाज़ियों पर शोध किया था. आप समझिए कि मैं इस कहानी का मु
ख्य किरदार था. मैंने नाज़ियों को ढूंढ़ने वाले ज़ीमोन वीज़ेनथाल को एक नकली कहानी बुनने के लिए मनाया था. वीज़ेनथाल को शक था कि वागनर साओ पाउलो के पास कहीं रह रहा था. सुबह 7 बजे मेरे पास एक फ़ोन आया. उधर से आवाज आई, हैलो, मैं विएना से ज़ीमोन वीज़ेनथाल बोल रहा हूँ. मुझे आप से बात करनी है. यहाँ आइए और मैं आपको एक सुराग दूँगा. कैसा सुराग? मैंने पूछा. उसने कहा द बीस्ट ऑफ सोबिबोर ब्राज़ील में है. गुस्ताव फ्रांत्स वागनर मैं नहाया, अपने सूटकेस में कपड़े पैक किए, हवाई अड्डे के लिए भागा और विएना की टिकट खरीदी.
अगली फ्लाइट 30 मिनट में उड़ी. विएना में फ्लाइट से उतरते ही मैंने रास्ता पूछा, वीज़ेनथाल सेंटर का रास्ता किधर से है? ज़ीमोन वीज़ेनथाल ने चिमानोविच को वागनर के बारे में वह सब कुछ बताया जो वह जानते थे. फिर ज़ीमोन ने मुझे उस आदमी के बारे में बताया उसकी क्रूरता, उसने यहूदियों को कैसे मारा, और कैसे वह अपने नाम के साथ ही ब्राज़ील में रहता रहा है. मैंने कहा इस कहानी में एक खास चीज़ गायब है. वो क्या है? उसकी तस्वीर हमारे पास उसकी एक भी तस्वीर नहीं थी, एक भी नहीं. न बीयर पीते हुए या टहलते हुए. तो यह सुराग
किसी काम का नहीं था. वीज़ेनथाल समझ गए. मैंने यूं ही एक सुझाव दिया. मैंने कहा कि किसी और की तस्वीर लेते हैं और उसे वागनर बता देंगे. चिमानोविच ने एक न्यूजपेपर आर्टिकल से एक तस्वीर ली जो ब्राज़ील के किसी जर्मन हिटलर समर्थक की थी. चिमानोविच ने दावा किया कि तस्वीर में दिख रहा शख़्स वागनर था, जबकि उन्हें पता था कि ऐसा नहीं था. ये कौन था? कोई बेवकूफ, बदमाश आदमी था. उसने कुछ बूढ़े लोगों के साथ मिलकर हिटलर की पुण्यतिथि मनाई थी. मतलब ऐसा कुछ हुआ था हेल हिटलर! फिर एक घूंट शराब पी ली. फिर कहा, हेल हिटलर! फि
र दूसरा घूंट पिया. ये योजना काम कर गई. गुस्ताव वागनर, एक नाज़ी जो अब तक छुपा हुआ था, अचानक ब्राज़ील में एक बड़ा मुद्दा बन गया. वीज़ेनथाल की मदद से यह झूठ लोगों में फैल गया. फिर कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया. ब्राज़ील के अधिकारी दबाव में आ गए. अचानक हर कोई गुस्ताव वागनर के बारे में पूछने लग गया. फिर एक ऐसी घटना घटी जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था. गुस्ताव फ्रांत्स वागनर ने अचानक पुलिस स्टेशन में आकर कहा, वो मैं नहीं हूँ, वो किसी और की तस्वीर है. ये मोस्साद का जाल है. वो मुझे भी अडोल्फ आइषमन की
तरह पकड़कर इस्राएल ले जाना चाहते हैं. वागनर को साओ पाउलो के पुलिस स्टेशन में जनता के सामने पेश किया गया. श्लोमो, वागनर की पहचान करने के लिए वहां गया था. श्लोमो उस आदमी के सामने खड़ा था जिसने उसके पूरे परिवार की हत्या कर दी थी. क्या आपने यातना शिविर में लोगों का कत्ल किया था? नहीं, किसी का नहीं. क्या आपने इन्हें कत्ल करते देखा था? हाँ मैंने देखा था लेकिन उनमें से कोई भी कुछ मानने को तैयार नहीं है. वो सब के सब बहुत अच्छे थे, वो हमारे साथ बहुत अच्छे से पेश आए. बस अब इतना ही कहना बाकी है कि वो हमारे
लिए फूल लेकर आते थे. मुझसे एक सिगरेट ले लो, मुझे बड़ी खुशी होगी. सोबिबोर को याद करो, सिगरेट पियो. तुमने मुझे कभी सिगरेट नहीं दी, लेकिन मैं दे रहा हूँ. शांत हो जाओ! वागनर को ब्राज़ील की राजधानी ब्रासीलिया लाया गया और अदालत में पेश किया गया. चार देश ऑस्ट्रिया पोलैंड इस्राएल और जर्मनी सभी उसके प्रत्यर्पण की मांग कर रहे थे. लेकिन वागनर को सौंपा नहीं गया. ब्राज़ील की अदालत ने फैसला किया कि उस पर मुकदमा चलाने की कानूनी समय-सीमा बीत चुकी है. वागनर एक बार फिर आज़ाद घूम सकता था. वह ज्यादा नहीं बदला है. के
वल एक चीज़ जो बदली है वह यह है कि वह अब बूढ़ा हो गया है. लेकिन वह अब भी वही गुस्ताव वागनर है. वही आदमी है. हालाँकि वह सोबिबोर वाला गुस्ताव वागनर नहीं है. वह सोबिबोर का भगवान था. आज वह भगवान नहीं रहा. गुस्ताव वागनर को किसने मारा? उसके पास कसाई का चाकू मिला था. उसे किसने मारा? किसने नहीं? बहुत सारी बातें और अटकलें थीं. अगर मैं सोबिबोर का सर्वाइवर होता तो मैं श्लोमो की तरह वागनर की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं कर पाता. शायद मैं उसे अपने हाथों से ही मार देता. श्लोमो जानता था कि उसे कैसे खोजना है. सो मैं
ने ख़ुद से सवाल किया कि क्या वो ऐसा करना चाहेगा? और मेरा जवाब है, हाँ वो करेगा. वागनर हाथ में चाकू लिए वहाँ पर था. उसने मुझे चाकू दिखाया था, और बिना कमीज़ पहने कुछ नाचने जैसी हरकत कर रहा था. मेरी पत्नी ने कहा, वह खुद को मारने की कोशिश करेगा या किसी और को मार डालेगा. इतने दशकों के बाद, यह पता लगाना आसान नहीं है कि उस समय दरअसल वहाँ क्या हुआ था. क्या वागनर की मौत में श्लोमो का कोई हाथ था? या यह अटकलों के अलावा कुछ नहीं है? तथ्य क्या है, अनुमान क्या है? गुस्ताव वागनर की मौत की जांच से जुड़ी फाइलें अ
भी भी साओ पाउलो के जुडिशल आर्काइव में हैं. वागनर की ज़िंदगी के आखिरी घंटों को कुछ पन्नों में लिखकर एक कार्डबोर्ड बॉक्स में रख दिया गया. तो सज्जनों, तो ये रहीं वो महत्वपूर्ण और जरूरी फ़ाइलें जो साओ पाउलो की अदालत में पेश हुईं थीं. हाँ, यहाँ यही लिखा है. गोरा 69 साल उम्र, विधुर विएना में जन्मा. फ्रांत्स और मैरी वागनर का बेटा. जांच यह पता लगाने के लिए शुरू की गई कि क्या यह वाकई ख़ुदकुशी थी या फिर हत्या भी हो सकती है. 1980 में पुलिस की जांच में यह बात निकल कर आई कि वागनर की मौत ख़ुदकुशी से हुई थी. काफ
़ी पतली फ़ाइल है. हाँ, मौत की जाँच के लिए केवल 25 पेज. ये रहा वो, टॉयलेट के बगल में. मरने के लिए ये जगह बहुत अजीब है. यहाँ क्या उसने सचमुच खुद को यहाँ चाकू मारा? 15 सेंटीमीटर लंबा चाकू ये तीर उस घाव की ओर इशारा कर रहा है जिसके कारण कथित तौर पर उसकी मौत हुई. यह उसके दिल की तरफ था. लेकिन ज़रूरी नहीं कि चाकू का एक ही घाव आपकी जान ले लेगा. यह सब थोड़ा अजीब है. यह फुटेज वागनर की रिहाई के बाद का है. वह आदमी जो कभी बेहद क्रूर और ताकतवर था, अब लगातार डर के साये में जी रहा था. मिस्टर वागनर, अब आप अपनी जि
ंदगी में क्या करेंगे? उससे नफ़रत करने वाले लोग उसके आसपास रह रहे थे और जानते थे कि वो कहाँ रहता है. वागनर की रिहाई पर साओ पाउलो का यहूदी समुदाय हैरान रह गया था. श्लोमो के दोस्त खाइम कोरेनफेल्ड जो सोबिबोर के सर्वाइवर भी थे, उन दिनों को अच्छी तरह से याद करते हैं. उसे मारने की पूरी तैयारी कर ली गई थी. पैसों का लेनदेन भी हो गया था. उन दिनों मैं हमेशा हथियार रखता था. मैंने कहा, मैं हूँ न, क्या मैं उसके सर में गोली मार दूँ? मैं कर लूँगा, कोई दिक़्क़त नहीं, कर लूँगा मैं. श्लोमो को भी एक फैसला लेना था.
1980 के दशक के एक इंटरव्यू में श्लोमो, वागनर का पता लगाने और उसे मारने के बारे में अपने विचार को लेकर हद से ज्यादा स्पष्ट था. मेरा सबसे बड़ा सपना था, एक दिन वागनर का सामना करना. मैंने उसे मारने के बारे में सोचा था लेकिन मेरे लोगों ने यानी यहूदी समुदाय ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया. वरना मैं तैयार था. वागनर की मौत से एक साल पहले, वागनर को ढूंढा जा रहा था और वह डरा हुआ था. उसकी मौत पर आई पुलिस रिपोर्ट बताती है कि वागनर को लगता था कि उसे टारगेट किया जा रहा है. गवाहों के मुताबिक वागनर मानसिक रूप से ब
हुत ठीक नहीं था. उसने कहा था कि उसने आवाज़ें सुनीं, यहूदी उसका पीछा कर रहे थे और उसने पहले भी ख़ुदकुशी की कोशिश की थी. उस ऐतिहासिक दिन को एक साल और पांच महीने बीत चुके हैं, जब पूरी दुनिया के सामने एक यहूदी स्तानिस्लाव श्मायज़नर ने वागनर को पहचाना था. अब वह दास क्लिनिकस अस्पताल की आठवीं मंज़िल पर पुलिस सुरक्षा में है. किसी को पता नहीं है कि इस नाज़ी ने फिर से खुदकुशी की कोशिश क्यों की? अब क्या होगा? उसकी सर्जरी होगी. इमरजेंसी सर्जरी? हाँ सोबिबोर का शैतान आज पहचाने जाने लायक नहीं था. एक आदमी जो अपन
े ही भ्रमजालों का कैदी बन गया था. पुलिस जांच के अनुसार, जिस दिन वागनर की मौत हुई, वह घर पर था, लेकिन वह अकेला नहीं था. यहाँ लिखा है कि तीसरे गवाह ने उसे हाथ में चाकू लेकर घर में जाते देखा, फिर बाथरूम में जाते देखा. यहाँ बाथरूम है, यहाँ टॉयलेट है. वो यहाँ टॉयलेट के बगल में गिरा पड़ा था. "पिआ" क्या होता है? ओह सिन्क वो सिन्क और टॉयलेट के बीच में फंसा हुआ है. और यहाँ नीचे, इस तस्वीर में सब ठीक से नहीं दिख रहा, ये चाकू है. ठीक है ये गवाहों के नाम हैं, आर्जेमीरो फ्रुतुओसो गोदोए, एक ब्राज़ीलियन, उम्र 33
साल. तो अभी वह 73 का होगा. हो सकता है वह अभी भी जिंदा हो. हो सकता है वह एक स्वतंत्र गवाह हो जो हमें बता सकता है कि क्या हुआ था. हम सबसे बड़े गवाह गोदोए को ढूंढना चाहते हैं. वह वागनर को जिंदा देखने वाला आख़िरी शख़्स था. और हम यह भी जानना चाहते हैं कि 3 अक्टूबर 1980, जिस दिन वागनर की मौत हुई थी, उस दिन श्लोमो कहाँ था. क्या श्लोमो वागनर को मार सकता था? पुलिस स्टेशन में, सोबिबोर का पूर्व डिप्टी कमांडर अपने पूर्व पीड़ित के आमने-सामने खड़ा था, वो पीड़ित आदमी जिसने लड़ना सीख लिया था. उस वक्त, श्लोमो ने
विद्रोह में इस्तेमाल किए गए हथियारों को पाने में मदद की थी. लगभग 300 कैदी भागने में कामयाब रहे थे. इस कहानी पर एक फ़ीचर फ़िल्म भी बन गई. श्लोमो जब वहाँ से बचकर भागा तब वह रूसी गुरिल्ला लड़ाकों के साथ जा मिला. उन्होंने उसे एक घोड़ा दिया, और एक राइफ़ल दी. उसका काम जंग ख़त्म होने तक जर्मन सेना से लड़ना था. वह हत्या करना चाहता था और उसने वैसा ही किया. और उस काम के लिए उसे मेडल भी मिला. सवाल यह है कि क्या उसकी हत्या करने की इच्छा ख़त्म हो गई? क्या यह मान लेना सही होगा कि ब्राज़ील जाने के बाद उसके दि
ल से हथियार उठाने की चाह खत्म हो गई होगी? मैं कहता हूँ, नहीं यह नामुमकिन है. बदला लेना उसकी शख़्सियत का हिस्सा हो गया होगा. कत्ल के मामले अपने पीछे सबूत छोड़ जाते हैं. और उन सभी सबूतों की जांच करने वाले लोगों में से एक अभी भी जिंदा है. 40 साल पहले हुई घटनाओं के बारे में उसे कितना याद होगा? जोसे अल्वारेंगा एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी हैं, जिनकी उम्र अब 71 साल है. वह अभी भी उस घटनास्थल के बेहद करीब रहते हैं. आचीबाया न केवल नाज़ियों के लिए बल्कि सभी क़िस्म के अपराधियों के लिए एक अच्छी जगह है. वे जंगलो
ं में छुप सकते हैं. वहां बहुत सारी जगहें हैं. वहाँ आपको कोई नहीं खोज सकता, आप हमेशा के लिए छिप सकते हैं. वह जिन जंगलों की बात कर रहे हैं वे बहुत ज्यादा दूर हैं और वहाँ तक पहुंचना मुश्किल है. सड़कें पक्की नहीं हैं. मरने से पहले वागनर यहीं रहता था. मेरा नाम जोसे अपारीसीदो दे अल्वारेंगा है, मैं एक रिटायर्ड पुलिस जासूस हूँ. अपने करियर के दौरान, मैंने कम से कम 80 मौतों की जांच की. घटनास्थल पर बहुत सारा ख़ून पड़ा था, लेकिन घर साफ सुथरा था. 99 प्रतिशत मामलों में, अगर हत्या हुई हो तो आपको घटनास्थल पर कि
सी दूसरे आदमी का निशान मिलता है. हो सकता है वह एक कुर्सी हो जिसे अपनी जगह से खिसकाया गया हो, मतलब कोई न कोई निशान जरूर होता है. लेकिन यहाँ तो कुछ भी नहीं था. ऐसा कुछ भी नहीं जिससे लगे कि हत्या हुई है. ये पूर्व जाँचकर्ता इस बात को लेकर आश्वस्त थे. पुलिस फ़ाइलों को पढ़ने से, हम मोटे तौर पर वागनर की मौत की जगह के बारे में जान गए. लेकिन हमारे पास सटीक पता नहीं है. बार-बार, हमने स्थानीय लोगों से बात करने की कोशिश की जो वागनर को उस समय से जानते थे लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. क्या कोई घर पर है? हम एक-एक
कर कई घरों में गए. यह एक बड़ा इलाका है, लेकिन यहां बहुत ज़्यादा लोग नहीं रहते हैं. हैलो हाय, माफ कीजिए. मैं यहां एक घर ढूंढ रहा हूं. मुझे लगता है कि कुछ जर्मन यहाँ रहते हैं. माफ कीजिए, मैं मदद नहीं कर सकती. जिस घर में वागनर एक जर्मन महिला के साथ रहता था वह इसी घने और खूबसूरत जंगल में कहीं होगा. उन्होंने यहाँ बेहद सुंदर माहौल और एकांत का आनंद लिया होगा. सबसे ज़्यादा मज़ेदार ये होता था कि रात का खाना खा लेने और बर्तन धोने के बाद हम बाहर जाकर बैठते और शाम और प्रकृति का आनंद लेते थे. सबसे ज्यादा आन
ंद हमें इसी में आता था. मेंढकों की टर्र-टर्र की आवाज़, जुगनुओं को चमकते देखना. और हम हमेशा थोड़ी इधर-उधर की बातचीत करते थे. कमाल था. फिर हमें वो जगह मिली जहाँ वागनर की मौत हुई थी, कुछ लोगों ने बताया कि उसके परिवार के कुछ लोग अभी भी यहाँ रहते हैं. हैलो सर, क्या आप अलेक्ज़ेंडर के भाई हैं? नहीं तो मैं गुस्ताव वागनर के एक रिश्तेदार को ढूंढ रहा हूं. मुझे उनसे बात करनी है. हैलो क्या आपके पास उस आदमी का पीछा करने के अलावा कोई काम नहीं है? वो बहुत पहले की बात है. आजकल क्या हो रहा है, आपको उस पर ज़्यादा
ध्यान देना चाहिए. वो कहीं ज़्यादा ज़रूरी है. और लोगों को सच बताइए. इसीलिए तो हम यहां हैं. लेकिन यहां कुछ भी नहीं है. मेरी वीडियो लेना बंद करो, मूर्ख सॉरी लेकिन आप अभी यहाँ रहती हैं. मुझे लगता है बस अब हो गया. अब और अंदर नहीं जाया जा सकता. वो इंसान जो हमें इसके बारे में सबसे ज़्यादा बता सकता था, वो चला गया. वो भी एक ऐसा इंसान जो इन सबमें कहीं दोषी नहीं है, जितना हमें पता है. लेकिन जो इसके बारे में बहुत कुछ बता सकता था. और उस औरत ने तो हमें उल्टा डांटना शुरू कर दिया. तुम यहाँ क्यों आए हो, क्या तुम
्हारे पास उस आदमी का पीछा करने के अलावा कोई काम नहीं है? उसने ऐसा कुछ कहा कि, हम लोग मानते हैं कि बीती बातों को अतीत में ही छोड़ देना चाहिए. और अभी हम लोगों को इस पर बात करनी चाहिए. हम इसे अलग तरह से देखते हैं. हाँ हम देखते हैं. हम अतीत के बारे में बात करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि यहां ऐसा नहीं हो पाएगा. उनके इरादे साफ़ थे. वागनर के बारे में कोई भी बात नहीं करना चाहता है. लेकिन कई लोगों को श्लोमो के बारे में बात करने में मज़ा आता है, हालांकि उन्हें ढूंढना भी बहुत आसान नहीं है. हमने एक महि
ला के बारे में सुना है जिसके साथ श्लोमो अपने आख़िरी दिनों में था. लेकिन उसका बहुत आम सा नाम है, और उसका पता लगाना मुश्किल है. लेकिन फिर वो हमें मिल जाती है, फ्रांसिस्का. हमने उन्हें कॉल किया और वो हमें बुला लेती हैं. फ्रांसिस्का की मुलाकात श्लोमो से 1974 में गोयेनिया में हुई थी. वह बताती हैं कि उसे अंधेरे से डर लगता था, वो लाइट जलाकर सोता था. वो एक आदमी था जो अब भी अपनी यादों से परेशान था. उसे शास्त्रीय संगीत पसंद था. इससे उसे एक तरह का सुकून मिलता था. लेकिन उसे रियो की चीज़ें भी पसंद आईं जैसे स
ांबा वगैरह. लेकिन सिर्फ सबसे बढ़िया वाला. शुभकामनाएं फ्रांसिस्का बताती हैं कि श्लोमो अक्सर जर्मनी जाता रहता था. वह नाज़ियों के खिलाफ गवाही देने के लिए, गुनहगारों के देश गया. हालाँकि वह जितनी बार भी वहां गया, यह उसके लिए मुश्किल अनुभव रहा. इसने उससे बहुत कुछ छीन लिया. मेरा नाम फ्रांसिस्का आल्वेस डे ऑलिवेयरा है. मुझे श्लोमो से प्यार हो गया और उसे मुझसे. हम 15 सालों तक साथ रहे. वो हमेशा कहता था अच्छा हुआ कि जब मैं ब्राज़ील आया ही था तब तुम नहीं मिलीं. मैं घोड़े की तरह हमेशा अपने आसपास की चीजों को लात
मारता रहता था. और वो हमेशा मुझसे कहा करता कि मैं सिर्फ़ सुकून चाहता हूं. लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसे कभी वह सुकून मिला. मुझे लगता है कि उसने सिर्फ़ लड़ाइयाँ देखीं थीं. उसके अंदर एक बवंडर था, कुछ चीज़ें उसे दुख पहुँचा रही थीं. मैं इसे महसूस कर सकती थी. उसने मुझसे कहा कि क्या तुम मेरा दूसरा रूप नहीं देखना चाहोगी? क्या तुम उस दूसरे स्तानिस्लाव से नहीं मिलना चाहोगी? वो दूसरा स्तानिस्लाव कैसा था? उसके पास हथियार थे. शायद पहले .22 कैलिबर, और फिर बाद में .38, लेकिन सिर्फ अपने बचाव के लिए. वो हथियार लेकर
नहीं घूमता था. साओ पाउलो में वागनर की पहचान करने के बाद वो बहुत परेशान सा हो गया. और वहाँ नाज़ियों के समूह भी थे. उसे जान से मारने की धमकी मिली. साओ पाउलो में बैठक करने वाले नाज़ी गुटों से. जो आदमी अपराधियों के बारे में इतना कुछ जानता था उसे एक बार फिर नाज़ी धमकी दे रहे थे. फ्रांसिस्का ने हमें बताया कि श्लोमो को बेचैनी और परेशानी महसूस होने लगी थी. और फिर वागनर की मौत हो गई. उस समय इस पर बहुत चर्चा थी. गुस्ताव वागनर को किसने मारा? उसे किसने मारा? किसने नहीं? बहुत सारी बातें और अटकलें थीं. जिस दि
न आचीबाया में वागनर मारा गया, स्तानिस्लाव यहाँ गोयास में मेरे साथ था. वह कहीं नहीं गया था. इसलिए ये हो ही नहीं सकता कि वो कातिल हो. समझे? वो नहीं था. क्या इसका मतलब यह हुआ कि श्लोमो हमेशा बदले की भावना से भरा नहीं रहता था, जैसा कि कई लोग मानते थे या फिर मानना चाहते थे? गुस्ताव वागनर की मौत. आचीबाया के इसी कब्रिस्तान में वागनर को दफ़नाया गया था. उसकी मौत के ठीक एक दिन बाद अंतिम संस्कार किया गया. हमने सटीक जगह का भी पता लगा लिया. अखबार में एक छोटा सा लेख आया और उसमें केवल इतना कहा गया कि उसका अंति
म संस्कार बहुत छोटे स्तर पर हुआ. जैसा कि उसमें लिखा था, उसमें केवल दो "रहस्यमयी विदेशी" शामिल हुए थे, लेकिन उनका कोई परिचय या नाम नहीं है. वो ये दोनों पुरुष थे, जो थोड़े-थोड़े जर्मन लगते हैं. लेकिन हम नहीं जानते कि वे कौन हैं. यहां कब्र पर कोई पत्थर नहीं है. कोई नाम या उकेरा हुआ भी कुछ नहीं है. उसके अंतिम संस्कार में मुट्ठीभर लोग ही शामिल हुए. वागनर को यहां करीब तीन सालों तक ही दफ़ना कर रखा गया था. किसी ने उसकी कब्र का ख़र्च नहीं उठाया, इसलिए उसे कब्र से खोदकर निकाल लिया गया. मृत लोगों के अवशेष
रखने वाली एक जगह पर उसके अवशेष रखे गए, और बाद में एक गुमनाम कब्र में दफना दिया गया. वागनर को देखने वाला आखिरी आदमी भी शायद इसी इलाके में कहीं रहता है. हमने पुलिस फ़ाइल में उसका नाम पढ़ा. आर्जेमीरो डे गोदोए वो खेतों में काम करने वाला एक मजदूर है जो वागनर के साथ काम करता था. पुलिस को दिया उसका बयान सिर्फ एक पेज लंबा है. हमने काफी दिनों तक उसकी तलाश की. हमने आर्जेमीरो या कहें कि मीरो को एक 'बार' के फ़ेसबुक पेज पर ढूंढ निकाला जहाँ वह गिटार बजाता था. यह आचीबाया के आसपास की पहाड़ियों में कहीं है. और वा
गनर की मौत की पुलिस जांच के अनुसार, वह आख़िरी व्यक्ति था जिसने वागनर को मरने से पहले देखा था. शायद उसी ने पुलिस को खबर की होगी या उन्हें घर तक लेकर आया होगा. बाएँ मुड़ जाओ, पुल पार करो, हाँ ओके अब फिर से बाएं, और बाएं. आर्जेमीरो डे गोदोए यहीं रहते हैं. पहले तो उन्हें हम पर और हमारे वहाँ आने पर शक हुआ. वह हमसे बात नहीं करना चाहते थे. लेकिन फिर उन्होंने उस दिन के बारे में बताना शुरू किया. आइए अंदर आइए यह हमारे सफर की आख़िरी मंज़िल है. क्या एक यहूदी ने वागनर से बदला लिया? आर्जेमीरो डे गोदोए वागनर के
अंतिम समय में उसके साथ थे. वह जानते हैं कि दरअसल हुआ क्या था, और वागनर की मानसिक स्थिति क्या थी. उन्होंने हमें बताया कि उस दिन, वागनर को लग रहा था कि वह ख़तरे में है. मेरी बीवी ने मुझे बुलाया मीरो जल्दी करो, यहाँ आओ, गुस्ताव का ख़याल रखो. ध्यान रखना कि वो तुम्हें न मार डाले, उसके पास एक चाकू है और वह सभी दरवाज़े बंद कर रहा है. गुस्ताव गुस्से में था और अजीब हरकत कर रहा था. उसकी आँखें नीली थीं. और उसने चाकू पकड़ रखा था लेकिन वह उसे चला नहीं रहा था, बस उसे पकड़े हुए था, जैसे वह कुछ कर बैठेगा. और उ
सने मुझे चाकू दिखाया. जैसे नाच रहा हो, हाथ में चाकू, बदन पे कोई कमीज़ नहीं. और आप जानते हैं उसने मुझसे क्या कहा? राइफल लो, कारतूस लो. जाओ यहूदियों का सामना करो, वो आ रहे हैं. फिर उसने मुझसे कहा, जाओ और यहूदी का सामना करो, उसे गोली मार दो. क्या वहाँ कोई और भी था? नहीं केवल वही था. क्या आपको पक्का यकीन है कि आपसे पहले वहाँ कोई नहीं था? कोई उसके पीछे पड़ा हो? नहीं वहां ऊपर कोई नहीं था. वहां अंदर कोई नहीं था. और फिर मैंने बाथरूम में एक आवाज़ सुनी, बूम गुस्ताव मर चुका था, छुरा घुपा हुआ था. उसने खुद को
मार डाला था. आपने उसे उस हालत में देखा था? मैंने उसे चाकू के घाव के साथ वहां पड़ा हुआ देखा था. तो कह सकते हैं कि वागनर की मौत, बदले की कार्रवाई से नहीं हुई थी. बल्कि उसके मन में बदले को आतुर यहूदियों का डर था जिस वजह से उसने मौत चुनी. 1989 में श्लोमो श्मायज़नर की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. उसके नाम वाली कब्र आज भी मौजूद है. उसके अंतिम संस्कार में बहुत से लोग आए. अब मुझे उसकी याद आती है, हमारा स्तानिस्लाव श्लोमो ने बदला नहीं लिया था, जैसा कि उसे जानने वाले बहुत से लोग मानते थे. मैं उसे इन शब
्दों में याद करता हूँ एक सर्वाइवर, एक चहेता आदमी और एक योद्धा. श्लोमो सोबिबोर से भी बच निकला और वागनर की यादों से भी. मैं जितने भी सर्वाइवरों से मिला उनके लिए एक ही चीज़ चाहता था, जो मैं उन्हें नहीं दे सकता था वो है शांति. स्तानिस्लाव श्मायज़नर या "श्लोमो" को कभी सुकून नहीं मिला लेकिन उसने ये सुनिश्चित किया कि वागनर को भी सुकून ना मिले. मैंने उसके लिए यही कामना की. उस कमाल के असाधारण आदमी के लिए, मैं चाहती थी कि वो एक सामान्य और बोरिंग ज़िंदगी जिए और मुझे यकीन है कि वो उसमें ख़ुश रहता.

Comments

@mayankbhati1688

I love this channel i really appreciate your work

@shivautomation

Well done dw tv. Good things are this episode is in Hindi. such a good story cover and documentary.

@jkihatesnake5591

Dw वालो मुझे आप पर फक्र है की आप इतनी महावपूर्ण vidwo को हिंदी में लेके आए, और भी होलोकास्ट की वीडियो हिंदी में लाइए,

@hemantsoni6536

Very nice way to represent the history.... Great work dw

@alikhanpathan3928

DW की डॉक्यूमेंट्री वो भी हिन्दी मे सच मे आप एक यूनिवर्सिटी है एक अच्छी यूनिवर्सिटी जो फ्री मे ज्ञान दे रही

@ParamveerSingh-do2op

नाव की अहमियत को देखकर सीखें जीवन का महत्व स्वयं जल में होकर भी औरों को पार कराती है.. दायित्व ईश्वर उसी को देते हैं, जो औरों का भार उठा सकता है.

@animeshparth7497

मेरे प्रिय DW टीम के सदस्यों। आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस तरह की सविस्तार जानकारी के लिए। मेरे पास शब्द ही नहीं हो पा रहे हैं आपका अभिनंदन करने को।😊😊😊

@shabnamsiddiqui7636

Ak sachayi aur real story ko Hindi m dikhane k liye bht bht shukriya

@rickychaudhary2247

Thanks dw Hindi

@purveshkumarpatel9551

Dw thanks आप इस तरह की डॉक्युमेट्री वीडियो हिन्दी मे लाते हैं

@ParamveerSingh-do2op

शौर्य व स्वाभिमान के प्रतीक,मातृभूमि के अनन्य साधक, अद्वितीय योद्धा, महान रणनीतिकार व प्रशासक, 'हिंद स्वराज' के संस्थापक, छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि | राजऋषि समता राम जी महाराज

@rishi-vet-docs

Brilliant presentation 👍👍

@msstudio8509

Thank you so much ❤

@user-uu5td8ix4h

Aabhar sahit Danyavad Etni jatil Atyachar ko hidi me U tube par hindi me diya

@Kaushalkumarofficial1

सुपर से भी ऊपर

@HimanshuShukla0802

A crash course on history of PALESTINIAN STATE: 1. Before Israel, there was a British mandate, NOT a Palestinian state! 2. Before the British Mandate, there was the Ottoman Empire, NOT a Palestinian state! 3. Before the Ottoman Empire, there was the Islamic state of the Mamluks of Egypt, NOT a Palestinian state. 4. Before the Islamic state of the Mamluks of Egypt, there was the Ayubid Arab-Kurdish Empire, NOT a Palestinian state. 5. Before the Ayubid Empire, there was the Frankish and Christian Kingdom of Jerusalem, NOT a Palestinian state. 6. Before the Kingdom of Jerusalem, there was the Umayyad and Fatimid empires, NOT a Palestinian state. 7. Before the Umayyad and Fatimid empires, there was the Byzantine empire, NOT a Palestinian state. 8. Before the Byzantine Empire, there were the Sassanids, NOT a Palestinian state. 9. Before the Sassanid Empire, there was the Byzantine Empire, NOT a Palestinian state. 10. Before the Byzantine Empire, there was the Roman Empire, NOT a Palestinian state. 11. Before the Roman Empire, there was the Hasmonean state, NOT a Palestinian state. 12. Before the Hasmonean state, there was the Seleucid, NOT a Palestinian state. 13. Before the Seleucid empire, there was the empire of Alexander the Great, NOT a Palestinian state. 14. Before the empire of Alexander the Great, there was the Persian empire, NOT a Palestinian state. 15. Before the Persian Empire, there was the Babylonian Empire, NOT a Palestinian state. 16. Before the Babylonian Empire, there were the Kingdoms of Israel and Judah, NOT a Palestinian state. 17. Before the Kingdoms of Israel and Judah, there was the Kingdom of Israel, NOT a Palestinian state. 18. Before the kingdom of Israel, there was the theocracy of the twelve tribes of Israel, NOT a Palestinian state. 19. Before the theocracy of the twelve tribes of Israel, there was an agglomeration of independent Canaanite city-kingdoms, NOT a Palestinian state. 20. Actually, in this piece of land there has been everything, EXCEPT A PALESTINIAN STATE. Feel free to use this for the uneducated.

@dhanasingh4699

ਸਮੇਂ ਦੀ ਹਕੂਮਤ ਦੀੰਆ ਗੱਲਾ ਚ ਆ ਕਿ ਜ਼ੁਲਮ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ। ਕਿਉਂ ਕਿ ਸਮਾਂ ਅਤੇ ਹਕੂਮਤ ਬਦਲਣ ਤੇ ਇਤਿਹਾਸ ਕੁਝ ਹੋਰ ਬਣਦਾ।

@salmanfaij6876

किया DW documentry hindi, एलुमिनती के बारे में भी बताना चाहिए, जिसे बहुत से लोग नहीं जानते।

@banerjeesiddharth05

Very nice video 📹 👍 👌 👏

@gautambhardwaj1330

Ek एपिसोड reinhard hadrich पर भी