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रूस का ऊर्जा साम्राज्य: पुतिन और गैज़प्रॉम का उदय [Russia's Energy Empire] | DW Documentary हिन्दी

यूरोपीय देश दशकों से रूस से आयात होने वाली गैस पर निर्भर रहे हैं. यह ऐसी मुसीबत है, जो उन्होंने खुद मोल ली है. इसका सबसे बड़ा अपराधी कौन है? जर्मनी. रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद ही जर्मन सरकार को एहसास हो पाया कि रूस लंबे समय से गैस को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है. यह सब हुआ कैसे? रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की योजना क्या है? ये फ़िल्में रूस की सबसे बड़ी गैस कंपनी गैज़प्रॉम की पर्दे के पीछे की झलक दिखाती हैं. ये एक साम्राज्य की उत्पत्ति को दर्शाती हैं. सोवियत संघ के पतन से लेकर रूसियों के धन अर्जित करने तक. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ओर से लगाए गए प्रतिबंध और उनके शासन की बाद की गिरफ्तारियां और ज़ब्तियां. फिल्म निर्माताओं ने यूक्रेन पर रूस के हमले की शुरुआत से पहले फिल्म की शूटिंग की. एक ऐसा प्रोजेक्ट, जो आज मुमकिन नहीं है. यह फिल्म दर्शकों को दिग्गज ऊर्जा कंपनी गैज़प्रॉम की आंतरिक कार्यप्रणाली की एक झलक दिखाती है. #DWDocumentaryहिन्दी #DWहिन्दी #russia #gazprom #putin ---------------------------------------------- अगर आपको वीडियो पसंद आया और आगे भी ऐसी दिलचस्प वीडियो देखना चाहते हैं तो हमें सब्सक्राइब करना मत भूलिए. विज्ञान, तकनीक, सेहत और पर्यावरण से जुड़े वीडियो देखने के लिए हमारे चैनल DW हिन्दी को फॉलो करे: @dwhindi और डॉयचे वेले की सोशल मीडिया नेटिकेट नीतियों को यहां पढ़ें: https://p.dw.com/p/MF1G

DW Documentary हिन्दी

2 days ago

रूस यहां दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस का भंडार है. यूरोप को गैस की बहुत ज़रूरत है. शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद पश्चिम में ऊर्जा निर्भरता का पेचीदा दौर शुरू हुआ और चिंता भी बढ़ी. आप सोवियत संघ को पैसा दे रहे हैं और वो इसका इस्तेमाल अपनी सेना खड़ी करने के लिए कर रहा है. आगे चलकर यह हमारी परेशानी का सबब बनेगा. इस बीच 1980 के दशक में एक शख़्स का असाधारण करियर शुरू हुआ. बतौर केस ऑफिसर, आपको लोगों का फायदा उठाना आना चाहिए. पूर्व केजीबी एजेंट जैसा कुछ नहीं होता. दबाव, प्रभाव बनाने और फायदा उठाने के
लिए गैस उनके दो बड़े हथियारों में से एक है. सोवियत परंपराएं जारी हैं. एक राजनीतिक हथियार के रूप में तेल और गैस निर्भरता, वारसॉ संधि के लिए बिल्कुल अनुकूल थी. दुनिया के सबसे ताक़तवर लोगों में से एक ने रणनीतिक तौर पर अपना सबसे असरदार हथियार इस्तेमाल किया. गैज़प्रॉम की मदद से व्लादिमीर पुतिन ने दुनियाभर में डर फैलाने वाली नीतियां लागू कीं. नॉर्ड स्ट्रीम का मकसद ही मध्य और पूर्वी यूरोप पर दबाव बनाना था. नॉर्ड स्ट्रीम वन ऐसा प्रोजेक्ट था, जिससे रूसी हम पर कड़ा दबाव बनाना चाहते थे. पश्चिमी साइबेरिया म
ें यमल प्रायद्वीप. यहां टुंड्रा के मूल निवासियों ने हजारों साल पुरानी परंपराएं कायम रखी हैं. नेनेट्स लोग रेंडियर चराते हैं. मायको सेरोएटो इनके नेता हैं. उन पर करीब 40 नेनेटों की जिम्मेदारी है. वे रोज़ाना सफर पर निकलते हैं. फिलहाल सब अच्छा है. पतझड़ में ज्यादा मुश्किल होती है. अपने जानवरों का पेट भरने के लिए नेनेट एक से दूसरी जगह घूमते रहते हैं. पर हालिया बरसों में उनका रास्ता और मुश्किल हो चुका है. कभी यमल प्रायद्वीप में प्रकृति अनछुई थी, अब ऐसा नहीं है. सबसे कठिन बोवानेनकोवो क्रॉसिंग अभी आनी बाक
ी है. यह चौड़ी नदी और कंक्रीट की सड़कों वाला लंबा रास्ता है. यह पक्की सड़क टुंड्रा को दो हिस्सों में बांटती है. यही रूस के सबसे बड़े गैस भंडार बोवानेनकोवो गैस फील्ड तक जाने का रास्ता है. दुनिया की सबसे बड़ी गैस निकालने वाली कंपनी गैज़प्रॉम इसका संचालन करती है. इस नीले सोने के कारोबार के मूल में हमेशा राजनीति, पैसा और सबसे बढ़कर ताकत रही है. दशकों से. ऊर्जा उद्योग के खोजकर्ता हमेशा किसी विशाल जगह की तलाश में रहते हैं. वे ऐसे बड़े इलाके की तलाश में होते हैं, जिसकी लागत कम हो और जहां से 30 से ज्यादा
सालों तक सप्लाई होती रहे. ऐसी विशाल जगहें दुनिया में कम ही बची हैं, जिनके बारे में हम जानते हों. और एक देश को इससे बेतहाशा फायदा हुआ है. जर्मनी के लिए रूसी हाइड्रोकार्बन बेस यानी गैस बेस बहुत बड़ा है. तो अगर खालिस आर्थिक पैमाने पर बात करें, तो बड़ी आपूर्ति और कम लागत के लिए आपको रूस की सस्ती आपूर्ति से बढ़िया कुछ नहीं मिलेगा. युर्गेन हाम्ब्रेष्ट ने आठ वर्षों तक दुनिया की सबसे बड़ी केमिकल कंपनी बीएएसएफ का नेतृत्व किया. बीएएसएफ के लिए गैस का मतलब तीन चीजें हैं. पहली और सबसे ज़रूरी कि यह एक कच्चा म
ाल है. केमिस्ट्री हमेशा कार्बन एटम से शुरू होती है. दूसरी हमें बहुत ज्यादा ऊष्मा की ज़रूरत होती है. और तीसरी, हमें कारखाने चलाने के लिए बिजली भी चाहिए होती है. हमें प्राकृतिक गैस चाहिए. बीएएसएफ की गैस रणनीति हमेशा जोखिम घटाने पर केंद्रित रही है. यानी तेल और गैस की उपलब्धता. इसीलिए हम अपनी 50 फीसदी कार्बन जरूरतों की आपूर्ति का स्रोत खुद बनना चाहते थे. हमारे किए हर काम के पीछे बड़ी वजह यही थी. जर्मनी में 2005 के संसदीय चुनाव से ठीक पहले बीएएसएफ, इयॉन और गैज़प्रॉम ने बाल्टिक सागर से गुज़रने वाली पा
इपलाइन बनाने का समझौता किया. हम 2003 में पश्चिमी साइबेरिया में एक नई गैस फील्ड विकसित करने के जॉइंट वेंचर में शामिल हुए. फिर हमने सोचा कि चलो, सस्ती गैस मध्य यूरोप तक ले आएं. आइडिया था कि इस पाइपलाइन के ज़रिए जर्मनी को गैस वाले इलाकों से जोड़ा जाए. इसीलिए नॉर्ड स्ट्रीम 1 बनाया गया. चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर सालों से बीएएसएफ के अहम सहयोगी रहे थे. मुझे जर्मन हितों का प्रतिनिधित्व करना है. ख़ासकर जब जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा सुरक्षा की बात आती है. नाटो के पूर्व विश्लेषक रिचर्ड एंडरसन ने 2006 में
रेखांकित किया था कि कैसे प्राकृतिक गैस यूरोप की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है. सैन्य विश्लेषकों के लिए इस पर बात करना आम है कि ऊर्जा कैसे अक्सर संघर्ष का कारण बन सकती है. ऊर्जा क्षेत्र में रूस का प्रभुत्व ऐसी चिंता है, जिस पर नाटो विश्लेषकों की नज़र कई दशकों से है. प्राकृतिक गैस बिजली बनाने और हीटिंग में इस्तेमाल होती है. प्लास्टिक और उर्वरक बनाने में भी यह मूलभूत ज़रूरत है. यह बहुत सारी औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं की जीवनधारा है. तो यह पुराने सोवियत संघ का नक्शा है. यहां बीच में आप प्राकृतिक गैस
और तेल के कुछ बड़े भंडार देख सकते हैं, जो सोवियत काल में विकसित किए गए थे. रूस के मामले में, खासतौर से हाल में, मुझे लगता है कि यह बिल्कुल साफ हो गया है कि ऊर्जा अक्सर युद्ध की वजह बन सकती है. 1963 में, केनेडी प्रशासन ने सोवियत संघ से पूर्वी यूरोप के बीच द्रुज़बा पाइपलाइन बनने से रोकने की कोशिश की थी. मानेसमन पाइप और बाकी उपकरण उपलब्ध करा रही थी. अमेरिकी सरकार, केनेडी प्रशासन ने उन्हें मना किया और वे मान गए. तब पश्चिमी जर्मनी के चांसलर विली ब्रांट ने देश की नई "ओस्टपॉलिटिक" यानी पूर्वी नीति की श
ुरुआत की. रिश्तों में गर्माहट और नरमी आई, और व्यापार सुधरा. गैस पाइपलाइनें बनाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन किए गए. 1970 में एक पाइपलाइन का काम शुरू हुआ, जो साइबेरिया को जर्मनी से जोड़ने वाली थी. सोवियत के गैस उद्योग मंत्री निकोलाई ओरुडचेव ने अपने जर्मन साझेदारों के साथ अरबों के सौदे का जश्न मनाया. गैस पहली बार सोवियत संघ से ट्रांसफर स्टेशन पर पहुंची. लॉन्च शुरू वित्त मंत्री फ्रीडरिष और उनके सोवियत मेहमानों ने इसे संबंधों के सामान्य होने का नतीजा मानकर गैस लॉन्च की सराहना की. रूसियों के लिए यह सौदा
उन पैसों के बारे में था, जिनकी उन्हें सख्त ज़रूरत थी, क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही थी. देश चलाए रखने के लिए उन्हें पश्चिम से पैसों की ज़रूरत थी. ब्रांट के उत्तराधिकारी हेल्मुट श्मिट ने भी साइबेरियाई गैस का रुख किया. यूरोप के लिए दूसरी पाइपलाइन बनाई गई. चांसलर श्मिट की मॉस्को यात्रा के दौरान जर्मन कंपनियों ने ऐसा ही एक तीसरा कॉन्ट्रैक्ट साइन किया, जो 2000 तक वैध था. श्मिट ने अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर को यह कहते हुए टाल दिया कि व्यापार साझीदार एक-दूसरे पर गोली नहीं चलाते. प्रेसिडेंट कार
्टर ने तो अपने नोट्स में खुलकर लिखा था कि रूस का बर्ताव ठीक करने के लिए अमेरिका जो कठोरता दिखा रहा है और यूरोप उस पर जो मलहम लगा रहा है, वह उससे तंग आ गए थे. अमेरिका, वॉशिंगटन इसे देख रहा था और मानो कह रहा था कि आप सोवियत संघ को पैसे दे रहे हैं, जिन्हें वो सेना खड़ी करने में लगा रहा है. आगे चलकर यह हमारी परेशानी का सबब बनेगा. उस वक़्त एक तर्क यह भी था कि आप खुद को हमारे वैचारिक प्रतिद्वंद्वी यानी सोवियत सुपर पावर पर निर्भर बना रहे हैं. नाटो सदस्य होते हुए आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? अमेरिका को डर था
कि रूस ऊर्जा को सियासी हथियार की तरह इस्तेमाल करेगा और यूरोप और जर्मनी, सोवियत संघ के खिलाफ खड़े नहीं हो पाएंगे. इसलिए इसे सोवियत की नाटो को ध्वस्त करने और पश्चिम को कमजोर करने की रणनीति की तरह देखा गया. पोलैंड में हालात बेकाबू होने को थे. सोलिडारनोश्च्क ट्रेड यूनियन के विरोध के बावजूद सरकार ने 1981 में मार्शल लॉ लागू कर दिया. वहीं नए अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने रूस का प्राकृतिक गैस व्यापार बाधित करने के लिए प्रतिबंधों का सहारा लिया. अमेरिका पोलिश सरकार के साथ अपने आर्थिक संबंधों के प्रम
ुख हिस्सों को बंद करने के लिए तुरंत कार्रवाई कर रहा है. हम अपने सहयोगियों से पोलैंड को उच्च तकनीक निर्यात करने पर और प्रतिबंध लगाने का आग्रह करते हैं. लेकिन जर्मनी तक नई सोवियत पाइपलाइन फिर भी बनाई गई. प्रतिबंधों का उतना असर नहीं पड़ा और साथ ही, उन्होंने पश्चिम को बांट भी दिया. मार्गरेट थैचर ने कहा कि हम नौकरियां खो रहे हैं, क्योंकि हम उस पाइपलाइन के लिए उपकरण सप्लाई नहीं कर पा रहे. अमेरिकी कारोबार इससे खुश नहीं थे. अमेरिका खुद भी पुर्ज़े बेच रहा था और उनका तर्क था कि अगर हम उन्हें नहीं बेच पाएंगे
, तो हमारे यूरोपीय प्रतिस्पर्धी उन्हें उपकरण बेच देंगे. इसलिए आखिरकार वे प्रतिबंध ठंडे बस्ते में डाल दिए गए. यह छिपी हुई बात नहीं है कि हमारे सहयोगी इस कार्रवाई से सहमत नहीं थे. पर मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि औद्योगिक लोकतंत्र एक प्लान ऑफ़ एक्शन पर सहमत हो चुके हैं. उन्होंने 1980 के दशक में एक समझौता किया, जिसने यूरोप जाने वाली सोवियत गैस की मात्रा पर सीमा तय कर दी और यह भी सुनिश्चित किया कि नॉर्वे की गैस यूरोप आएगी, ताकि कुछ विविधता बनी रहे. अमेरिका ने जर्मनी को रूसी गैस पर निर्भर न
ा रहने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन ज़्यादातर गैस साइबेरिया से आती रही. मैं बतौर युवा राजनयिक वाशिंगटन दूतावास में था और राजदूत को वाकई गर्व था कि उन्होंने अमेरिकियों के पाइपलाइन प्रतिबंध के खिलाफ सफलतापूर्वक बहस की. हम सभी इस विचार से प्रेरित थे कि हम जो कर रहे थे, वह संबंध सुधारने की नीति का हिस्सा था. हर कोई इससे सहमत था. मुझे वाकई याद नहीं कि कभी किसी ने कहा हो कि हम गलत रास्ते पर जा रहे हैं. लेकिन अमेरिकी इंटेलिजेंस सर्विस खुश नहीं थीं. CIA प्रमुख विलियम केसी ने राष्ट्रपति रीगन की मदद से
एक खुफिया योजना बनाई. विएना दुनिया की जासूसी राजधानी. मैं ब्लैक मार्केट डीलर था. खासकर मेनफ्रेम कंप्यूटर, न्यूक्लियर फिजिक्स के लिए मापने वाले उपकरणों का. ऐसी नाजुक चीजें, जो कम विकसित देश खुद नहीं बना सकते थे. मैंने पूर्वी जर्मन स्टेट सिक्योरिटी के साथ ट्रेनिंग ली, जहां मुझे भर्ती कर लिया गया. फिर एक ब्रेक के बाद मैंने सोवियत संघ में काम किया. CIA ने एक साल से ज़्यादा मुझ पर नजर रखी. फिर जब उन्हें लगा कि सही वक़्त आ गया है, तो उन्होंने दखल देने का फैसला किया. उन्होंने मुझे दो विकल्प दिए. 20 साल क
ी जेल या उनके लिए काम करना. CIA ने ब्लैक-मार्केट के इस जानकार को महंगी हाई-टेक चीज़ें दीं, जिन्हें सोवियत संघ को बेचने पर प्रतिबंध था. सोवियत संघ ने वही किया, जिसकी उम्मीद थी. GRU के कुछ लोग अचानक होटल में आए. दो लोगों ने मुझसे विनम्रता से कुछ सवाल पूछे. धीरे-धीरे यह छह घंटे की पूछताछ में बदल गया, क्योंकि तकनीकी उपकरणों के साथ साफतौर पर छेड़छाड़ की गई थी. असल में हर चीज़ के साथ छेड़छाड़ हुई थी. तब मुझे पता चला मैंने जो पहला बड़ा कंप्यूटर बेचा था, बड़े कैबिनेट्स से बना हुआ, उसमें आग लग गई थी. रीगन और
उनके CIA चीफ की नज़र मुख्य रूप से साइबेरियाई पाइपलाइनों पर थी. मुझे यकीन है कि अलग-अलग तरह की टेक्नोलॉजी बेची जा रही थी. एक मशहूर मामला है, जिसमें पश्चिम में खरीदे गए एक खराब पुर्ज़े की वजह से गैस पाइपलाइन बर्बाद हो चुकी थी. सोवियत संघ की सबसे बड़ी गैस पाइपलाइनों में से एक को चलाने वाला सॉफ्टवेयर जून 1982 में खराब हो गया. CIA के प्लान के मुताबिक. नतीजा, एक बहुत बड़ा विस्फोट. फिर चोट देने वालों की तलाश शुरू हुई. इसमें कोई शक नहीं कि अगर वे मुझे पकड़ लेते, तो मैं पक्का मारा जाता. बचने का सवाल ही नह
ीं. मैं बेहद खुश था कि मैं बच गया. ज़िंदा बचना मेरी सबसे बड़ी जीत थी. 1985 में मॉस्को की सड़क पर एक रूसी इंजीनियर गिरफ्तार हुआ. CIA का जासूस. बाद में उसे मार दिया गया और पाइपलाइन जल्द ठीक कर दी गई. चीजें पहले जैसी चलने लगीं. उन दिनों व्लादिमीर पुतिन को बतौर केजीबी एजेंट ट्रेन किया जा रहा था. 1985 में उन्हें ईस्ट जर्मनी भेजा गया. किसी ने उनसे पूछा कि आपने ड्रेसडेन में क्या किया? वह केजीबी के केस ऑफिसर थे. फिर भी उन्होंने कहा कि वह लोगों और दस्तावेजों से जुड़े काम कर रहे थे. पुतिन ड्रेसडेन में केजीब
ी के नियमित व्यक्ति बन गए. वह पूर्वी जर्मनी की सिक्योरिटी सर्विस "स्टाज़ी" की बैठकों में अक्सर नज़र आते. स्टाज़ी एजेंट अक्सर पुतिन की तस्वीरें खींचते. बतौर केस ऑफिसर आपको लोगों का फायदा उठाना आना चाहिए. आपको लोगों की कमजोरियों के साथ-साथ ताकत को भी समझना होता है. साथ में यह भी याद रखिए कि वह जूडो चैंपियन भी थे. तो अगर आपका विरोधी शारीरिक रूप से ज्यादा ताकतवर है, तो आप उसकी कमजोरियां समझने की कोशिश करते हैं. आप कैसे उसे भटकाएंगे? तो मेरे ख्याल से अगर आप इन दोनों बातों पर गौर करें, तो वह शायद लोगो
ं का फायदा उठाने में काफी अच्छे रहे हैं. लोगों को महत्वपूर्ण महसूस करवा कर, उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ाकर. स्टाज़ी अफसर मथियास वार्निग भी ड्रेसडेन में सक्रिय थे. वह पहले पश्चिम में जासूस रहे थे. उस समय बर्लिन में मेरा एक करीबी सहयोगी था. मैं मॉस्को में था. उसकी स्टाज़ी फाइलों तक पहुंच थी और उसे पता चला कि वार्निग असल में स्टाज़ी के साथ काम कर रहा था. हम उन लोगों का इंटरव्यू ले रहे थे, जो उन दोनों को जानते थे और यकीन से कह सकते थे कि वे 80 के दशक के अंत में ड्रेसडेन में थे और साथ काम कर रहे थे. हम
यह पता लगाने में कामयाब हुए कि केजीबी असल में ड्रेसडेन में स्टाज़ी एजेंटों को भर्ती करने की कोशिश कर रहा था. पुतिन एक स्टाज़ी आईडी के पीछे छिप सकते थे और 1989 आते-आते वह कम्युनिज़्म को बचाने से कहीं आगे देख रहे थे. यह बहुत सारे अलग-अलग लोगों के बिज़नेस करियर बनाने के लिए बहुत अहम था और शायद इसी से केजीबी अपने नेटवर्क के बड़े हिस्से को संरक्षित कर पा रहा था. वह एक साल पहले ही स्टाज़ी चीफ एरिष मील्के से मिले थे. पुतिन एक ताकतवर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जो अपने सस्ते तेल और गैस की मदद से पूर्
वी जर्मनी को बचाए हुए था. प्राकृतिक गैस बेहतर ज़िंन्दगी, गर्माहट स्कूलों के संचालन और अस्पतालों के चलने से बहुत मजबूती से जुड़ी थी. मैंने 'गोंद' शब्द का प्रयोग किया. कह सकते हैं कि सोवियत संघ अपने पूर्वी यूरोपीय छोटे सहयोगियों को जो सस्ती ऊर्जा बेच रहा था, वह मुख्यत: उन देशों की अर्थव्यवस्थाएं चलाने और उन्हें सोवियत संघ में बनाए रखने के बदले दी जा रही मदद थी. जब भी टकराव होता था, तो रूस वारसॉ संधि के दायरे में रहते हुए सज़ा के रूप में तेल और गैस इस्तेमाल करता था. मैं हंगरी के विद्रोह और सन 68 में
चेकोस्लोवाकिया के विद्रोह की बात कर रहा हूं. मॉस्को ने चेकोस्लोवाकिया में टैंक भेजे और तेल और गैस की आपूर्ति घटा दी. एक राजनीतिक हथियार के रूप में तेल और गैस निर्भरता वारसॉ संधि का उल्लंघन नहीं थी. वे सस्ते तेल और गैस कॉन्ट्रैक्ट का ऑफर देते और बदले में सोवियत हितों के प्रति वफादारी की उम्मीद रखते. विदेश और सुरक्षा नीति में इन निर्भरताओं का फायदा उठाने की एक लंबी मिसाल मौजूद है. 1989 में पूर्वी जर्मनी ध्वस्त होने के कगार पर था, लेकिन सोवियत संघ तेल और गैस के लिए ऊंची कीमतें मांगता रहा. पूर्वी जर
्मनी बमुश्किल ही इतना भुगतान कर पाता और वह संकट में जाता रहा. सोवियत को यह सारा पैसा यूरोपीय देशों से मिल रहा था. और वे देख रहे थे कि यूरोप में ऊर्जा की असली कीमत क्या है. उन्होंने सोचा कि हमारी अर्थव्यवस्था बढ़िया नहीं चल रही है. हम अपनी ऊर्जा इन लोगों को क्यों दे रहे हैं? व्लादिमीर पुतिन और मथियास वार्निग जैसे एजेंटों को खुद को ढालना पड़ा. वे जिस व्यवस्था के तहत काम करते थे, वह ख़त्म हो रही थी. बर्लिन की दीवार गिरने के कुछ ही पलों बाद वार्निग हरकत में आ गए थे. यह दिलचस्प है कि वार्निग को ड्रेस
डेनर बैंक ने कितनी जल्दी काम पर रख लिया. मेरा मतलब उन्होंने बहुत पहले ही उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचान लिया था, जो पूर्वी यूरोप और रूस में उनका कारोबार बढ़ाने में बेहद उपयोगी होगा. मॉस्को में केजीबी के संस्थापक की मूर्ति तोड़े जाने के बाद पूर्व एजेंट व्लादिमीर पुतिन ने खुद को दोबारा खड़ा किया. पुतिन ने कई इंटरव्यू में बहुत अच्छे से बताया है कि वह ड्रेसडेन से कैसे वापस आए और उन्हें नहीं पता था कि क्या करना है. तब वह सेंट पीटर्सबर्ग की सड़कों पर टैक्सी ड्राइवर का काम भी कर रहे थे. आखिरकार वह
मेयर सोबचाक के साथ सेंट पीटर्सबर्ग में मेयर के ऑफिस में नियुक्त हुए. हालांकि, सोबचाक सुधारक थे, पर भ्रष्ट भी थे. तो एक ऐसा वक़्त आया, जब पुतिन विदेशी आर्थिक संपर्कों के इंचार्ज थे और मेरे ख्याल से उसी वक़्त उन्होंने पैसा कमाना शुरू किया. सोवियत संघ के पतन के बाद हिंसा शुरू हुई. 1990 का दशक भयानक समय था. लोग सिर्फ ज़िंदा रहने की कोशिश कर रहे थे. बड़ी बात थी सुरक्षा, जिसे रूसी क्रीशा कहते थे, यानी छत. कभी-कभी यह "छत" किसी आपराधिक संगठन का कोई व्यक्ति हो सकता है. कभी-कभी सरकार का कोई व्यक्ति. 90 के दशक
में अक्सर वह शख्स दोनों ही जगह होता था. स्टाज़ी के पूर्व एजेंट वार्निग ने ड्रेसडेनर बैंक के लिए सेंट पीटर्सबर्ग में संपर्क स्थापित किया. स्थानीय सरकार और एक नई कंपनी गैज़प्रॉम, दोनों में. उन्हें सेंट पीटर्सबर्ग सरकार में किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी, जो उनकी देखभाल कर सके और उनके लिए रास्ते खोल सके. इसी वजह से पुतिन-वार्निग जैसे संबंध इतने दिलचस्प थे, क्योंकि एक तरह से पुतिन वार्निग के क्रीशा थे, उनकी छत थे. आने वाले वर्षों में पुतिन और प्रभावशाली होते गए. वह गणमान्य लोगों के स्वागत में दिखने लग
े और अपना नेटवर्क बढ़ाते गए. इस बीच सोवियत संघ के अवशेषों का बंदरबांट चल रहा था. दावे किए जा रहे थे. यह एक तरह से बेरोकटोक खालिस पूंजीवाद का वक़्त था. पूर्व एक तरह से अनियंत्रित था. बेहद संदिग्ध प्राइवेट नीलामियों में रूस के प्राकृतिक संसाधनों को कुलीन वर्गों के एक छोटे से समूह, जिसमें सभी तरह के बेहद अमीर लोग थे, उन्हें सौंप दिया गया था. पश्चिमी निवेशकों के लिए काफी मुश्किलें थीं, पर आगे चलकर मिलने वाले इनाम इतने बड़े थे कि वे इस खेल में बने रहे. जब रूसी लोग खाने की तलाश में खाली सुपरमार्केटों की
खाक छान रहे थे और कड़ाके की ठंड झेल रहे थे, अंतरराष्ट्रीय निवेशक सस्ती रूसी कंपनियों, खासकर कच्चे माल वाली कंपनियों के पास पहुंच रहे थे. अटकलें पूर्व गैस मंत्रालय को लेकर भी गरम थीं, जिसका नाम 1989 में गैज़प्रॉम रखा गया और 1992 में एक कॉर्पोरेशन में बदल दिया गया. गैज़प्रॉम कंपनी का दाम उस समय के रूस में बेहद कम लगाया जाता था. इसकी वजह इसका इतना सस्ता होना था. सबने मान लिया कि हर क्यूबिक मीटर गैस कंपनी से चोरी की जा रही है. बहुत सारी संपत्तियां चुराकर सीनियर मैनेजमेंट के दोस्तों और रिश्तेदारों को
दी जा रही थीं. जर्मन कंपनियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. रूस की सरकार के अलावा गैज़प्रॉम के सबसे बड़े शेयरधारकों में से एक थी रूहरगैस. यह जर्मन कंपनी सोवियत काल के दौरान ही जर्मनी में साइबेरियाई नेचुरल गैस बेच चुकी थी. लेकिन अन्य निवेशकों ने गैज़प्रॉम की हालत की आलोचना की. हम हर साल गैज़प्रॉम के बोर्ड के लिए एक उम्मीदवार खड़ा करते, जो हममें से एक होता, जिसका काम भ्रष्टाचार उजागर करना था. वे बोर्ड में बैठते थे, जाहिर है हमारे उम्मीदवार को वोट नहीं देते और एक शब्द भी नहीं कहते बस अपनी गैस सप्लाई चा
हते थे. वे आपराधिक गतिविधियों पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं थे. साइबेरियाई गैस की बदौलत रूहरगैस ने यूरोपीय बाजार पर दबदबा बना लिया. उसके सबसे बड़े ग्राहक बीएएसएफ को यह रास नहीं आया. बीएएसएफ को 1993 में रूहरगैस ने ब्लैकमेल किया. कीमतें इतनी बढ़ा दीं कि हमारा लुडविग्सहाफेन कॉम्प्लेक्स खतरे में पड़ गया. हमने विकल्प खोजने का फैसला किया. हमने जर्मनी में ज़रूरी बुनियादी ढांचा बनाने के लिए गैज़प्रॉम के साथ साझा वेंचर किया. हमने मौजूदा नेटवर्क के साथ ही एक बड़ा नेटवर्क बनाया, जिसमें जर्मनी की सबसे बड़ी स्टोर
ेज फैसिलिटी भी शामिल थी. यह बड़ी बात थी और आखिर गैज़प्रॉम ने इसे साथ मिलकर फाइनेंस किया था. हेल्मुट कोल के नेतृत्व वाली जर्मन सरकार ने ऐसे प्रोजेक्ट का समर्थन किया. आंशिक रूप से इसलिए, क्योंकि उन्होंने मुश्किलों में घिरे रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को सहारा दिया था. जिस रूस ने जर्मन एकीकरण को मुमकिन बनाया, उससे साझेदारी का विचार जर्मन विदेश नीति के केंद्र में था. फिर चाहे वाम, दक्षिण मध्यमार्गी जो भी पार्टी हो. और 1990 के दशक में ज़्यादातर वक़्त इसमें कुछ गलत भी नहीं था. दूसरा मकसद रूस को एक तर
ह से नाकाम देश की तरह पीछे नहीं छोड़ना था. आप किसी परमाणु देश को इस रास्ते पर नहीं जाने देना चाहते थे. कोल ने रूस का येल्तसिन के कार्यकाल वाला कर्ज़ माफ कर दिया और प्राकृतिक गैस आपूर्ति होने लगी. पुतिन ने इस पर ध्यान दिया. पुतिन ने बहुत पहले ही समझ लिया था कि रूस की महानता उसके तेल और गैस की असाधारण संपदा पर निर्भर है और रूस की महाशक्ति का रुतबा बढ़ाने के लिए इसे रणनीतिक रूप से इस्तेमाल करने की ज़रूरत है. पुतिन ने 1997 में ऊर्जा निर्भरता पर एक थीसिस लिखी थी कि कैसे यह विदेश नीति में ज़रूरी भूमिका
निभा सकती है. उनकी शुरुआत से ही इस मुद्दे में खास किस्म की निजी रुचि थी. मैंने खुद उन जर्मन खुफिया अधिकारियों से बातचीत की, जिन्होंने थीसिस पढ़ी थी. हमने बात की कि असल में उसका क्या मतलब था. अगर जर्मन इंटेलिजेंस को पता था, तो मतलब चांसलर ऑफिस को भी पता था. घरेलू राजनीतिक रुझान एक तरह से साफ़ थे कि ऊर्जा उद्योग पर ज़्यादा नियंत्रण देश का हो, जिसे सीधे क्रेमलिन संचालित करे. ऐसी नीति की जड़ें हजारों किलोमीटर दूर पश्चिमी साइबेरिया की बोवानेनकोवो गैस फील्ड में हैं. एक बेशकीमती संसाधन. नेनेटों की कई पीढ
़ियों की तरह रेंडियर चरवाहे मायको सेरोएटो ने 25 सालों से टुंड्रा में अपने झुंड की अगुवाई की है. गैस फील्ड विकसित होने के बाद गैज़प्रॉम के बुनियादी ढांचे ने इन मूल निवासियों का जीवन मुश्किल बना दिया है. मायको का झुंड उत्तर में कारा सागर की ओर बढ़ रहा है. हमेशा से ऐसा ही होता आया है. लेकिन टुंड्रा के ये खानाबदोश, गैस फील्ड के जितना करीब पहुंचते हैं, उनकी चिंता उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती है. देखिए ये सड़कें. यह पूरा रास्ता बंद है. उन्होंने एक रेलमार्ग भी बनाया है. जल्द ही हमारे पास कोई जमीन नहीं बचेगी
. अगर वे यह क्रॉसिंग भी बंद कर देंगे, तो क्या होगा? हम दूसरी तरफ नहीं जा पाएंगे. हमें गर्मियां यहीं कहीं बितानी होंगी. लगातार तीन साल हमारे लिए ख़राब रहे हैं. बहुत ज्यादा बर्फ पड़ी थी. रेंडियर इतने कमज़ोर हो गए थे कि उनमें से आधे मर गए. वे ढेर सारी गैस निकालते हैं और विदेशों में मोटी रकम पर बेचते हैं. और हमारा क्या? नेनेटों का मुद्दा गैज़प्रॉम के लिए कभी ज़्यादा ज़रूरी नहीं रहा. इसी बीच 2000 में वो आदमी ताकत के उस शिखर तक पहुंच गया, जिसका किसी को अनुमान नहीं था. नई सदी के पहले साल में व्लादिमीर पुति
न रूस के राष्ट्रपति बने. वह पहले ही प्रधानमंत्री और एफएसबी यानी सीक्रेट सर्विस के निदेशक रह चुके थे. उनके संपर्क देशभर में फैले हुए थे. पुतिन को कुछ बड़े काम करने थे. एक तो इन उद्योगों पर रूसी सरकार की पकड़ मजबूत करनी थी. और यहां बात सिर्फ प्राकृतिक गैस और तेल की ही नहीं थी, हर चीज़ की थी. पुतिन ने अपने करीबियों को इन कंपनियों में लाने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया. कंपनी दर कंपनी, पद दर पद, पुतिन ने आर्थिक रूप से भी सत्ता संभाल ली. फिर आपने 'सिलोविकी' का उभार देखा. 'सिलोविकी' यानी ताकतवर लोग, सिक्योर
िटी सर्विसेस के लोग, जिन्हें पुतिन प्रशासन में बड़े पद मिले. पुतिन ने गैज़प्रॉम पर भी नजरें जमाईं, जो तब भी एक विशाल कंपनी थी और नियंत्रण के बाहर थी. सालाना जनरल मीटिंग में पुतिन मैदान में उतरे और उन्होंने गैज़प्रॉम के CEO रेम वियाक्रेव को नौकरी से निकाल दिया, जो अपने छह-सात साथियों के साथ मिलकर सारी चोरी कर रहे थे. पुतिन ने उनकी जगह एक नया शख्स रखा, जिसका काम था कि वह चोरी न करे. उनका नाम अलेक्सी मिलर था. पुतिन उन्हें सेंट पीटर्सबर्ग के समय से जानते थे. मुझे याद है मैंने गैज़प्रॉम में किसी से थोड
़ा चिढ़कर कहा था, है कौन यह आदमी? किसी भी चीज़ के बारे में वह जानता क्या है? हे भगवान, क्या सिर्फ यही लोग हैं, जो गैज़प्रॉम चला सकते हैं. ये सेंट पीटर्सबर्ग के लोग? और जवाब था नहीं, यही वे लोग हैं जिन पर पुतिन को भरोसा है. लेकिन अलेक्सी मिलर गैज़प्रॉम के असली बॉस नहीं थे. बिल्कुल नहीं वह अकेले फैसले नहीं ले सकते थे. वह गैज़प्रॉम के लिए फैसले ले सकते थे, पर उन पर भी वोटिंग होती थी. इसीलिए कुछ कॉन्ट्रैक्टों में ज़्यादा वक़्त लगा. हम एक सरकारी कंपनी की बात कर रहे हैं. गैज़प्रॉम ने पुतिन के ऑर्डर माने और
एक महत्वपूर्ण टीवी स्टेशन, NTV खरीदा और उसे नियंत्रण में ले लिया. हम सभी से, NTV पत्रकारों से और उन्हें उकसाने वाले सभी लोगों से विनती करते हैं कि अड़ंगे लगाना बंद कर दें. आलोचना करने वाले पत्रकार बर्खास्त कर दिए गए और प्रदर्शन नज़रअंदाज़ कर दिए गए. मुझे आश्चर्य है कि हमारे लोग ऐसा राष्ट्रपति कैसे चुन सकते हैं. यह भयानक है. 20 साल बाद भी गैज़प्रॉम के पास खुद के आकर्षक ब्रॉडकास्टर्स हैं. रूसी मीडिया में यह प्रमुख शक्ति है. एक अलग लाइन स्टेशन बॉस से सीधे क्रेमलिन तक जाती है. और गैज़प्रॉम के जरिए प
ुतिन "एको ऑफ़ मॉस्को" जैसे प्राइवेट रेडियो स्टेशनों को भी नियंत्रित करते हैं. व्लादिमीर पुतिन जब 2000 में सत्ता में आए, तो वह स्वतंत्र मीडिया पर नियंत्रण हासिल करना चाहते थे. बेशक उन्होंने शुरुआत टीवी से की, पर साथ ही हमारे शेयरधारकों में से एक, जिनके पास अधिकांश हिस्सेदारी थी, व्लादिमीर गुज़िस्की ने गैज़प्रॉम से एक लोन लेने के लिए अपने शेयर ज़ब्त कराए. इसीलिए मैं हमेशा कहता हूं कि मिलर हमारे शेयरधारक नहीं हैं, पुतिन हैं. गैज़प्रॉम हमारी शेयरधारक नहीं है, राष्ट्रपति प्रशासन है. मार्च 2022 में स्टे
शन के संचालन पर प्रतिबंध लगा दिया गया. ठीक 20 साल पहले व्लादिमीर पुतिन ने बर्लिन दौरे पर बिल्कुल अलग चेहरा दिखाया था. जर्मनी के कई राजनेता उन्हें उम्मीद के प्रतीक के रूप में देखते थे. आज हमें दृढ़तापूर्वक और निर्णायक रूप से घोषणा करनी होगी कि शीत युद्ध ख़त्म हो चुका है. वस्तुनिष्ठ समस्याएं किनारे कर दें, तो हर चीज़ के पीछे रूस का ज़िंदा और मज़बूत दिल धड़कता है, जो पूर्ण सहयोग और साझेदारी के लिए खुला है. धन्यवाद जब मैंने उस भाषण पर प्रतिक्रिया देखी, तो मुझे लगा कि यह ज़रा बचकाना था कि कैसे लोग उस
इंसान को लेकर बिल्कुल आलोचनात्मक नहीं थे, जो बरसों तक केजीबी में रहा था. पुतिन ने जर्मन चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर का बिना शर्त समर्थन हासिल किया. लोकतांत्रीकरण का यह कथित मौका दरअसल था ही नहीं. पर इससे यह तथ्य भी नहीं बदला कि रूस दुनिया में दूसरी सबसे ताकतवर परमाणु शक्ति था. तब भी और अब भी. आप पसंद करें या ना करें, आपको रूस के साथ रहना होगा. उस समय मेरा रवैया यह था कि हमें किसी तरह उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जोड़ने की कोशिश करनी होगी. पर आपको व्लादिमीर पुतिन के चरित्र के बारे में कोई भ्रम रखने क
ी ज़रूरत नहीं है. वहीं रूस में पुतिन सबसे पहले कुलीन वर्गों के घरों और दफ्तरों की तलाशी करा रहे थे. नया सत्ता संघर्ष उभर रहा था. पुतिन और केजीबी के सभी लोगों के लिए यह देखना बहुत अपमानजनक था कि उनकी निगाह में जिनकी कोई हैसियत नहीं थी, जो लोग सिस्टम का हिस्सा नहीं थे, वे इतने अमीर बन गए. असल में केजीबी के इन लोगों को ये ओलिगार्क हर साल 50,000 डॉलर देते थे, ताकि वे दुश्मनों को गिरफ्तार करें और कारोबारी प्रतिस्पर्धियों पर फर्ज़ी आपराधिक मामलें दर्ज करें. तो उनकी हैसियत ओलिगार्कों के नौकरों जैसी हो
गई थी. 2003 में पुतिन ने ओलिगार्कों को बुलाया और लाइव टीवी पर उनसे पूछताछ की. उनमें से एक की निशानदेही हुई. खोदोरकोवस्की के खिलाफ अभियान में वह हताशा और कड़वाहट बहुत मज़बूती से सामने आई, जो बेहद साफ़ दिखाई दे रही थी. क्योंकि दिख रहा था कि क्रेमलिन और सरकार में ताकतवर लोग दरअसल किसी ऐसे व्यक्ति को निशाना बनाते हैं, जो उनके लिए इस कुलीन वर्ग का प्रतीक हो. ऐसा इंसान, जो आश्चर्यजनक संपत्ति अर्जित करने और देश की सबसे बड़ी तेल कंपनियों में से एक पर कब्ज़ा करने के लिए बहुत नीचे से ऊपर आया था. मिखाइल खोद
ोरकोवस्की उस समय तेल कंपनी यूकोस के प्रमुख थे, जो गैज़प्रॉम के बाद दूसरी बड़ी कंपनी थी. खोदोरकोवस्की देश में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पुतिन के आलोचक माने जाते थे. पुतिन ने प्रतिक्रिया देते हुए खोदोरकोवस्की को गिरफ्तार करा दिया. यूकोस पर टैक्स चोरी का आरोप लगा. आप खोदोरकोवस्की को बर्बाद करने के अभियान में देख सकते हैं कि उसमें एक तरह से सोवियत संघ के पतन के साथ उन्हें जो अपमान सहना पड़ा था, उसका एक तरह से बदला था. खोदोरकोवस्की पर सार्वजनिक मुकदमा चला. हम उस समय इस मामले पर बारीक नज़र रख रहे थे, क्य
ोंकि यह वाकई पुतिन की सरकार का प्राइवेट बिज़नेसों पर पहला बड़ा हमला था. मई 2005 में उन्हें एक पीनल कैंप में नौ साल कैद की सज़ा सुनाई गई. यूकोस को ज़ब्त करके असल से कम कीमत पर नीलाम कर दिया गया. पुतिन के सहयोगियों ने तेल कंपनी का नियंत्रण ले लिया. नाम के सिवा सब ज़ब्त कर लिया गया. ज़ब्ती की बात पर सवाल उठेगा कि कुछ लोग इन संसाधनों तक पहुंचे कैसे? कहा जा सकता है कि उनके पास कुछ ऐसा हो सकता था, जो उनका बिल्कुल भी नहीं था. खोदोरकोवस्की को रूस के सुदूर पूर्व में चीन की सीमा के पास साइबेरियाई जेल में ल
े जाया गया. दूसरे देशों की आलोचना अनसुनी कर दी गई. और जर्मन चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर ने भी एक पक्ष चुन लिया. देवियों और सज्जनों, ये सुधार रूस को स्थिर आर्थिक विकास के रास्ते पर लाए हैं. ऐसी बहस में शामिल होने का कोई तुक नहीं है, जो ऐसी-वैसी घटना के आधार पर उस आत्मविश्वास को हिला दे. जर्मनी की ऊर्जा कंपनियां 2004 में रूस के साथ उसके गैस भंडार तक पहुंचने के लिए पेचीदा सौदेबाज़ी कर रही थीं. ठीक उसी तरह पुतिन भी जर्मनी तक पाइपलाइन बनाने के लिए बेताब थे. रूस को एक बार फिर असली ऊर्जा महाशक्ति बनने के स
्तर पर लाने के लिए पश्चिमी तकनीक और साझेदारियां बहुत ज़रूरी थीं. पुतिन को जर्मनी की तकनीकी मदद की ज़रूरत थी. रूस का पाइपलाइन नेटवर्क खस्ताहाल था. उन्होंने पश्चिमी साइबेरिया जैसी जगहों पर गैस के विशाल भंडार खोजे थे, लेकिन वे उन्हें विकसित नहीं कर सके, क्योंकि उनके पास पूंजी नहीं थी. पर जर्मन केमिकल कंपनी बीएएसएफ ऐसा कर सकती थी. 1997 में हम एक पावर प्लांट को तेल से प्राकृतिक गैस में बदल चुके थे, क्योंकि क्योटो प्रोटोकॉल ने CO2 घटाने की ओर साफ इशारा किया था. जापान के क्योटो में अंतरराष्ट्रीय समुदाय
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने के लिए अपने पहले बाध्यकारी समझौते पर पहुंचा. हम इस नियम को अपनाते हैं, तो तय हो गया. गैस का एक फायदा है. गैस से आप ऊष्मा और ऊर्जा वाले संयुक्त प्लांट को चला सकते हैं. यानी आप शुद्ध तेल या कोयला जलाने की तुलना में इस संसाधन का बहुत बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं. रूस और बीएएसएफ की सौदेबाज़ी में पुतिन खुद शामिल थे. दोनों पक्षों को एक-दूसरे की ज़रूरत थी. वह बैठकों के लिए हमेशा अच्छी तरह तैयार होते थे. कुछ लोग बिना तैयारी के जाते हैं. मैंने पुतिन के साथ ऐसा कभी नहीं
देखा. इसलिए जिन पश्चिमी अधिकारियों का पुतिन से वास्ता पड़ा, उन्हें पुतिन के बारीक ज्ञान और ऊर्जा क्षेत्र में दिलचस्पी की वजह से लगा कि वे सिर्फ रूस के राष्ट्रपति ही नहीं, बल्कि रूसी ऊर्जा के सीईओ के साथ काम कर रहे हैं. यानी वह राजनीतिक व्यक्ति होने के साथ ऊर्जा के जानकार भी हैं. मैं पुतिन से 16 बार मिली हूं. इन बैठकों में मुझे सबसे प्रभावित करने वाली चीज़ यह लगी कि उन्हें आंकड़ों की कितनी जानकारी है. उन्हें अपने सहायकों से पूछने की ज़रूरत नहीं पड़ती. उन्हें ऊर्जा से वाकई प्यार है. यह इंसान ऊर्जा के
बारे में इतना जानता है, जितना ज्यादातर देशों के नेताओं को नहीं पता. वह राष्ट्रपति होने से ज़्यादा गैज़प्रॉम के CEO थे. पुतिन सबसे ज़्यादा एक चीज़ से प्रेरित थे. हम पेरिस क्लब और ख़ासतौर से हमारे जर्मन भागीदारों के साथ पेरिस क्लब के इस कर्ज़ का कुछ हिस्सा समय से पहले चुकाने को लेकर एक समझौते पर पहुंचने से खुश हैं. क्या गैज़प्रॉम और मॉस्को के साथ बातचीत में जर्मन सरकार भी मौजूद थी? नहीं, जर्मन सरकार के प्रतिनिधि वहां नहीं थे. असल में बातचीत गैज़प्रॉम, बीएएसएफ और बाकी साझेदारों के बीच हुई थी. इसमें का
फी लंबा समय भी लगा. लेकिन ड्रेसडेनर बैंक के लिए काम करने वाले पूर्व-स्टाज़ी एजेंट मथियास वार्निग हमेशा वहां मौजूद थे. ये GRU में रहे लोग थे और जर्मन पक्ष के नज़रिए से पूर्व स्टाज़ी लोग थे. यह बहुत अजीब और बहुत संदिग्ध लग रहा था. इसने ऊर्जा डील को लेकर हमारे शक को पुख्ता कर दिया. यूक्रेन की तेल और गैस कंपनी के बॉस आंद्री कोबोलयेव गैज़प्रॉम को सबसे बेहतर तरह से जानते थे. मैं सोवियत संघ में पैदा हुआ था और मैं अच्छी तरह जानता था कि इतनी महत्वपूर्ण कंपनी कभी भी एक साधारण कंपनी नहीं हो सकती. यह राज्य क
ा हिस्सा है. मैं नेफ़्टोगैज़ के एक प्रतिनिधिमंडल का सदस्य था, जो एक नए गैस ट्रांजिट कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत करने मॉस्को गया था. वहां मेजबानी करने वाला व्यक्ति गैज़प्रॉम का मिडिल मैनेजर था, जिसने वोदका के कुछ शॉट लेने के बाद खुद को सोवियत इंटेलिजेंस सर्विस का पूर्व स्पेशल एजेंट बताया. मैंने खुद से कहा कि आंद्री तुम्हें बहुत सतर्क रहना होगा. यहां के ज़्यादातर लोग कारोबारी नहीं हैं. वे गैस से जुड़े लोग नहीं हैं. इन लोगों को जासूसी करना और डेटा चुराना सिखाया गया था. अगर आप बहुत ऊपरी स्तर के रूसी अधिकारि
यों से बात करें, तो वे आपको बताएंगे कि पूर्व केजीबी एजेंट जैसा कुछ नहीं होता. ब्रिटिश न्यूज़ मैगज़ीन द इकोनॉमिस्ट ने 2005 में लिखा कि रूस के पुराने प्रभाव को बहाल करने के लिए पुतिन के पास दो साधन थे. परमाणु हथियार और गैस. मुझे लगता है अब भी पुतिन के पास ये दो बड़े साधन हैं. वह बहुत चालाक हैं और उन्हें एहसास है कि दबाव, प्रभाव बनाने और फायदा उठाने के लिए गैस उनके दो बड़े हथियारों में से एक है. तब नाटो विश्लेषक रिचर्ड एंडरसन ने लिखा था. वास्तविक रूप से देखा जाए, तो यूरोपीय संघ के देश अगर गंभीर ठोस प
्रयास न करें, तो इस रिश्ते में रूस का दबदबा रहेगा. सीधे शब्दों में कहें, तो मांग बनी रहेगी, कीमत की परवाह किए बिना. ठंडे अंधेरे घर या मोटी कीमत चुकाने के विकल्पों में से यूरोपीय लोग दूसरा विकल्प चुनेंगे. 2005 के अंत में बाल्टिक सागर पाइपलाइन का निर्माण शुरू हुआ. बाद में इस परियोजना को "नॉर्ड स्ट्रीम" नाम दिया गया. ऐसा आयोजन हमेशा दिखावे के लिए किया जाता है. फिर भी यह महत्वपूर्ण था. आज हम 'उत्तर यूरोपीय गैस पाइपलाइन' प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं. नॉर्ड स्ट्रीम वन बड़ी बात है, इसमें कोई दो राय नहीं ह
ै. मुझे इसका ज़रा भी अफसोस नहीं है. मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है. यह करना बिल्कुल सही था. यह बीएएसएफ के लिए सही था और यूरोप के लिए भी. हमें जब भी संभव हो, यूरोप के लिए पश्चिमी साइबेरिया से गैस का भंडारण करना चाहिए. अलेक्सी मिलर ने दिसंबर के एक सर्द दिन गेरहार्ड श्रोएडर को नॉर्ड स्ट्रीम की शेयर होल्डर कमिटी के नए प्रमुख के रूप में पेश किया. तब श्रोएडर को जर्मनी का चांसलर पद छोड़े महज़ 17 दिन हुए थे. आप जानते थे कि वह ऐसा करेंगे? नहीं, बिल्कुल नहीं. मैंने सीधे अंगेला मैर्केल को फोन किया. और उन्हें
बताया कि श्रोएडर ने पद स्वीकार कर लिया है? मैंने उनसे कहा कि इरादा तो यही था. वह क्या बोलीं? उन्होंने इस पर आगे कोई टिप्पणी नहीं की. अंगेला मैर्केल 2005 में चांसलर बनीं. रूस के नियंत्रण वाली एक कंपनी ने उनके पूर्ववर्ती को नियुक्त किया, इसने सबको चौंका दिया. जब उन्होंने वह पद संभाला, तो अमेरिका में और बाकी देशों में काफी लोग अचंभित थे. क्योंकि एक चांसलर के लिए यह वाकई बहुत गलत था कि उसने एक सौदे पर बातचीत की और जब वह चुनाव में हार गया, तो उसने तुरंत नई कुर्सी ले ली और उससे मोटा मुनाफा कमाया. इसल
िए मुझे लगता है कि अमेरिका में इसे निश्चित रूप से बहुत नकारात्मक रूप से देखा गया और इस बारे में बहुत सारे संदेह हैं. जर्मनी में भी यही भावना थी. बेशक इस चीज़ को मैं अलग तरीके से हल करना पसंद करता. हालात जितने राजनीतिक होंगे, टकराव उतने ज़्यादा पैदा होंगे. मैं ऐसा नहीं चाहता था. मुझे नहीं लगता कि गैज़प्रॉम में नेतृत्व वाली भूमिका लेना सही है, जब वहां बोर्ड का अध्यक्ष पूर्व-स्टाज़ी प्रमुख हो. जर्मनी के अपने हित में गेरहार्ड श्रोएडर ने एक ऐसे प्रोजेक्ट की देखरेख अपने हाथ में ली, जो ऊर्जा के संदर्भ में
हमारे अपने हित में है. श्रोएडर अपने दम पर गैज़प्रॉम लॉबिस्ट नहीं बने. उनका नामांकन मंज़ूर किया गया था. यह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो यूरोप के आर्थिक हितों का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सके. साथ ही, अधिकांश शेयरधारकों के प्रति समझदारी वाला दृष्टिकोण भी रखता हो. उस समय श्रोएडर में ये दोनों खूबियां थीं. यहां तक ​​कि नई चांसलर, जो सार्वजनिक रूप से पुतिन के प्रति शांत रहती थीं, उन्होंने भी श्रोएडर के नए पद से दूरी नहीं बनाई. मुझे लगता है कि अंगेला मैर्केल ने सक्रिय रूप से इसका समर्थन किया और सहारा दिय
ा था. मुझे याद नहीं कि मैर्केल ने कभी इसके खिलाफ बोला हो. बल्कि उल्टा था. जहां तक ​​मुझे याद है, वह अक्सर उन चैनलों का इस्तेमाल करती थीं, जो गेरहार्ड श्रोएडर से होते हुए जाते थे. मुझे लगता है कि यह एक एहसास भी दिलाता है कि ये महत्वपूर्ण लोग एक देश में महत्वपूर्ण हैं, तो वे रूस की ओर से भी जो कर रहे हैं, वह महत्वपूर्ण ही होगा. तो यह नागरिकों की चिंताओं को बेअसर करने में भी कारगर होता है. इससे ऐसा भी लगता है कि वे अपना बिजनेस चलाने के लिए ऐसे प्रतिष्ठित लोग इकट्ठा कर रहे हैं. तो ऐसा नहीं है कि सिर
्फ श्रोएडर ही इसमें फंसे. हालांकि, यह जैसा दिखता है, उस हिसाब से वह इसका चेहरा बन गए हैं. इस मुद्दे पर जर्मनी के रूढ़िवादियों ने कोई विरोध नहीं किया. क्यों? क्योंकि पूरी जर्मन अर्थव्यवस्था और खासकर ऊर्जा उद्योग ऐसा चाहता था. श्रोएडर की सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी ही नहीं, बल्कि और भी कई समर्थक थे. मुझे याद नहीं, कभी किसी ख़ास व्यक्ति ने कहा हो कि यह बुरा आइडिया था. यूक्रेन में हमें साफ एहसास हुआ कि नॉर्ड स्ट्रीम 1 शुरुआत से ही वह प्रोजेक्ट था, जिसका मकसद रूसियों के लिए वह ज़मीन तैयार करना था, जहां से
वे हमारे खिलाफ आक्रामक हो पाएं. यह है यूक्रेन का उज़होरोड. यूरोप के सबसे महत्वपूर्ण गैस केंद्रों में से एक. पुतिन मानते हैं कि ये पाइपलाइनें यूक्रेन ने नहीं बनाई थीं. ये सोवियत संघ ने बनाई थीं. रूस इस बात से सनक गया कि यूक्रेन वे पाइपलाइन नियंत्रित कर रहा था, जिससे रूसी गैस पश्चिम जाती थी. रूस ने एक समय यूक्रेन से गुज़रने वाले गैस ट्रांजिट सिस्टम पर नियंत्रण लेने की कोशिश की, लेकिन यूक्रेन ने इसका विरोध किया. जब काम नहीं बना, तो उन्होंने फैसला किया कि इस स्थिति से निपटने का यही तरीका है कि यूक्
रेन के बाहर से गुज़रा जाए. मेरा मतलब है कि यह बड़ी स्पष्ट और ठोस रणनीति थी, जो रूस के दृष्टिकोण से तर्कसंगत थी. ऐसी पाइपलाइनें बनाना, जो उसकी निर्भरता को कम करतीं और आखिरकार यूक्रेन पर उसकी निर्भरता खत्म कर देतीं. रूस या कम से कम पुतिन और उनके आसपास के लोग यूक्रेन को एक वैध देश नहीं मानते थे. गैस पाइपलाइन या तो पोलैंड से गुज़रती हैं या यूक्रेन से. यह 1970 से विकसित हुआ विशाल नेटवर्क है. गैस पाइपलाइन महज़ पाइपलाइन नहीं है. कुल मिलाकर उसके पास उससे ज़्यादा गैस परिवहन की क्षमता है, जितनी रूस यूरोपी
य बाज़ार के लिए उत्पादित करता है. ऐसा लगता है कि नई पाइपलाइन इसलिए बनाई गई ताकि यूक्रेन और पोलैंड को बतौर ट्रांजिट देश सिस्टम से बाहर किया जा सके और जर्मनी को गैस आपूर्ति की गारंटी फिर भी बनी रहे. नॉर्ड स्ट्रीम का मकसद ही मध्य और पूर्वी यूरोप पर दबाव बनाने में सक्षम होना था. ऐसा एक भी यूक्रेनी नहीं है, रूस के यूक्रेनी सहयोगियों को छोड़कर, जो मानता हो कि नॉर्ड स्ट्रीम यूक्रेन से बचने की विनाशकारी और स्पष्ट कोशिश के सिवा कुछ और है. नॉर्ड स्ट्रीम पर निर्माण शुरू होने के दो सप्ताह बाद. वे शुरुआत से
ही यह टकराव चाहते आए हैं. उनकी नीति हमेशा से गैस को अवैध रूप से मोड़ने या आसान भाषा में कहें, तो यूरोपीय उपभोक्ताओं से चुराने की रही है. मैं यूक्रेन की गैस आपूर्ति सीमित करने की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश देता हूं. यूक्रेन और यूरोप में गैस का प्रवाह बंद हो गया. 2006 का टकराव शुरुआती बिंदु के रूप में महत्वपूर्ण था. रूसी गैस की थोड़ी सी कटौती के नतीजे उम्मीद से कहीं बड़े थे. हमने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है. देखो हो गया यूरोपीय संघ की आपातकालीन बैठक बुलाई गई. हमें इस पर बात करनी चाहिए क
ि उन 24 घंटों के दौरान क्या हुआ. बीते 40 सालों से ज्यादा वक़्त से रूसी गैस की निर्बाध और भरोसेमंद आपूर्ति में ऐसा पहली बार हुआ है. गैस रोककर पुतिन सोवियत परंपरा जारी रख रहे थे. सुधारक माने जाने वाले पूर्व सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने भी 1991 में सोवियत संघ छोड़ने वाले देशों के खिलाफ गैस को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था. उस समय जर्मनी में पूर्व सोवियत राजदूत वालेंटीन फालिन ने तथाकथित फालिन सिद्धांत विकसित किया. इसमें सात उपकरण गिनाए गए, जिन्हें भविष्य में रूस अपनी विदेश नीति लागू कर
ने के लिए इस्तेमाल कर सकता था. इनमें सबसे ज़रूरी उपकरण ऊर्जा निर्भरता का फायदा उठाना था. 1990 के दशक की शुरुआत में जब पूरा मुद्दा यह था कि क्रीमिया स्थित काला सागर बेड़े को कैसे बांटा जाए, तो ज़ोरदार बहसें हुआ करती थीं कि इस बेड़े का क्या होने वाला है, इसे कैसे बांटा जाएगा. रूस ने यूक्रेन को गैस न देने की धमकी दी. अगर यह सीमा लागू की गई, तो निश्चित रूप से हम बिजली उत्पादन में कटौती के लिए मजबूर होंगे. आपके पास उस तरह का दबाव डालने के लिए एकदम सही हालात हैं. वे यकीनन ऊर्जा को हथियार की तरह उपयोग क
र रहे थे. यूक्रेन के अलग-अलग हिस्सों पर प्राकृतिक गैस का जो कर्ज था, वह रद्द कर दिया गया. बदले में काला सागर बेड़े का अलग हिस्सा रूस को दिया गया. मिशन पूरा हुआ. 2006 में स्वीडिश सहकर्मी लार्सन के एक प्रकाशन में 1990 के दशक को देखते हुए कहा कि रूस ने 50 से ज़्यादा मामलों में विदेश नीति के लक्ष्य के लिए इस तरह की ऊर्जा निर्भरताओं का फायदा उठाया था और दूसरे देशों को राजनीतिक रूप से प्रभावी ढंग से ब्लैकमेल किया. कई यूरोपीय इसका अंदाज़ा नहीं लगा पाए. वे इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार ही नहीं करना चाहते थे
कि यूरोपीय संघ और पश्चिमी दुनिया, उन्हें प्रभावित करने वाले रूस के नए हथकंडे का सामना कर रहे हैं.

Comments

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2 world war or hitlar par video banao Vietnam or American war par bhi video banao

@dkroy22

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@enhanceacademy3694

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@bavaliyajagdish2613

ऊर्जा धरातल की सबसे जरूरी राजनैतिक चीज है।।।।। हा इसके स्वरूप बदल सकते है।।। तेल भंडार से गैस या फिर समय के साथ ऊर्जा का दूसरा स्वरूप।।।।।। इसलिये ही इसके पीछे संतुलन बनाने के लिऐ विश्व भागता रहता है।

@hemantgulwani6561

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बहुत अच्छा लगा

@prabhusinghshekhawat4703

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