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यमन की खौफनाक जंग – जिसकी किसी को परवाह नहीं [Yemen's Dirty War] | DW Documentary हिन्दी

यमन में जारी युद्ध में अब तक कम-से-कम 3,70,000 लोग मारे जा चुके हैं और लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इस खूनी छद्म युद्ध और इसके प्रभावों को दुनिया का सबसे भीषण मानवीय संकट बताया है. अरब प्रायद्वीप के दक्षिण में बसे यमन में सालों से संघर्ष चल रहा है और हाल ही में इसमें नए सिरे से तेजी आई है. सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन ने जनवरी में देश के उत्तर में एक जेल पर हवाई हमला किया, जिसमें कम-से-कम 70 लोग मारे गए और हजारों जख्मी हुए. युद्ध ने अब यमन को स्पष्ट तौर पर दो भागों में बांट दिया है. इस युद्ध के कारण सिर्फ आर्थिक और धार्मिक नहीं हैं. इसे सऊदी अरब और ईरान के बीच छद्म युद्ध के रूप में देखा जाता है. क्षेत्रीय प्रभुत्व, अब तक इस्तेमाल ना हुए और बेहद अहम स्वेज नहर समेत लाल सागर तक पहुंचने का रास्ता युद्ध में दांव पर लगे हैं. यमन की पूर्व राजधानी सना अब दुनिया की सबसे दुर्गम जगहों में से एक मानी जाती है. पिछले छह सालों से इस शहर पर हूथी राजनीतिक और सैन्य आंदोलन का नियंत्रण है, जो खुद को "अंसार अल्लाह" कहता है. लेकिन सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, इस्लाम की ज़ैदी शाखा से ताल्लुक रखने वाले हूथी विद्रोहियों को विधर्मी और वहाबी संप्रदाय के लिए खतरा मानते हैं. पश्चिमी देशों के दिए हथियारों का इस्तेमाल करके उन्होंने यमन के उत्तरी हिस्से में लगातार बमबारी की है. इस बीच एक सख्त नाकाबंदी ने एक बड़ी आबादी के लिए भूखमरी की स्थिति पैदा कर दी है. लगभग चार लाख बच्चों पर अकाल के कारण मौत का जोखिम है. #DWDocumentaryहिन्दी #DWहिन्दी #यमन ------------------------------------------------ अगर आपको वीडियो पसंद आया और आगे भी ऐसी दिलचस्प वीडियो देखना चाहते हैं तो हमें सब्सक्राइब करना मत भूलिए. विज्ञान, तकनीक, सेहत और पर्यावरण से जुड़े वीडियो देखने के लिए हमारे चैनल DW हिन्दी को फॉलो करे: https://www.youtube.com/dwhindi और डॉयचे वेले की सोशल मीडिया नेटिकेट नीतियों को यहां पढ़ें: https://p.dw.com/p/MF1G

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1 year ago

महीनों की तैयारी के बाद। हम यमन के दक्षिण में अपने बंदरगाह के लिए मशहूर शहर अदन पहुंचे। पिछले सात सालों में पश्चिमी देशों के बहुत कम लोग ही इस सड़क से गुजरे हैं। कार में यमन के दो लोग हमारे साथ हैं। लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए हम उन्हें कैमरे पर नहीं दिखाएंगे। वो हमारे साथ आकर जोखिम उठा रहे हैं। क्योंकि पत्रकारों को उत्तर की तरफ विद्रोहियों की ओर ले जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है। आर्थिक और धार्मिक मकसद से जारी युद्ध ने 2015 से यमन को राजनीतिक तौर पर दो हिस्सों में बांट दिया है। सऊदी अरब और संय
ुक्त अरब अमीरात के नेतृत्व वाले गठबंधन से समर्थन पा रहा प्रशासन देश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से को चला रहा है। वहीं उत्तर पश्चिम में अंसार अल्लाह का नियंत्रण है। ये एक राजनीतिक और सैन्य आंदोलन है। जिसे हूथी भी कहा जाता है। इस इलाके पर घेराबंदी है। इसलिए पत्रकारों का यहाँ पहुँचना मुश्किल है। हम अदन से प्रतिबंधित इलाके की ओर जा रहे हैं। उसके आगे कार से सना पहुँचने में करीब 15 घंटे लगते हैं। हम अक्सर मुख्य सड़क छोड़कर खराब रास्ता लेते हैं। ये सड़क तस्कर इस्तेमाल करते थे। इसे सरकार ने छोड़ रखा है। कैम
रे को छुपा लो। छुपाओ। 500 किलोमीटर के इस रास्ते में हम कुल 38 चौकियों से गुजरते हैं। अदन और हुदैदा के बीच तीन कारखानों पर बम गिराए गए थे? हाँ। क्या आप जानते हैं कि ये बमबारी कब हुई थी? 2015 में। मतलब जंग के शुरुआती छह महीनों में। ये फ्रांसीसी मानवाधिकार वकील योसेफ ब्रेहम हैं। जो अपने किए मुकदमों के लिए सबूत जमा करने आए हैं। फ्रेंच पुलिस यहाँ नहीं आ सकती जज भी नहीं आ सकते। लेकिन किसी को तो ये करना ही होगा। सऊदी अरब और यूएई ने उस इलाके तक पहुँचने के रास्ते बंद किए हुए हैं। हवाई बमबारी से बची रहने
वाली ये अकेली सड़क है। ये नाकाबंदी से बची रह गई है। कच्ची सड़कों पर घंटों गाड़ी चलाने के बाद हम सीमा पर पहुँचते हैं। और जंग प्रभावित इलाके में दाखिल होते हैं। यहाँ दो करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं। यह यमन की समूची आबादी का लगभग 70 प्रतिशत है। आमतौर पर इस जंग को सऊदी या अमीरात और उनके सहयोगियों के नजरिये से पेश किया जाता है। लेकिन हमने सीमा के दूसरी तरफ के लोगों के साथ इसे देखने का फैसला किया। सना यमन की विद्रोहियों द्वारा नियंत्रित राजधानी। यहाँ हर साल मार्च में हजारों कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर
संघर्ष की शुरुआत का जश्न मनाते हैं। सना में तीस लाख लोग रहते हैं। ज्यादातर ज़ैदी शिया मुसलमान हैं। अंसार अल्लाह के विद्रोहियों को राजधानी पर कब्जा किए सात साल हो चुके हैं। वे लोगों पर कड़ी नजर रखते हैं। और मंत्रालयों को नियंत्रित करते हैं। बाजार में हमें मिले एक आदमी का कहना है। कि सालों से चल रही जंग के बावजूद सना में जीवन सामान्य है। यहाँ जंग नहीं हो रही है। जीवन पूरी तरह से सामान्य है। हम हर समय सुरक्षित हैं। दुकानें, मस्जिदें, सब खुली हैं। बिल्कुल सना के हर एक इंसान के दिल की तरह। याहया कासिम
सरूर एक स्थानीय सोशल मीडिया स्टार हैं। वो अंसार अल्लाह के ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं कहते। अगर सना में मुश्किलें हैं तो ये दुश्मन के हमलों के कारण हैं। सना में जंग के दौरान क्या हुआ था? इलाके पर बमबारी हुई प्राचीन स्मारकों और इमारतों को बर्बाद कर दिया गया। उन्होंने हमारी ऐतिहासिक विरासत पर हमला किया। लेकिन हम जुझारू हैं, हमारे पास इच्छाशक्ति है और हम मिलकर दुश्मन के खिलाफ खड़े होंगे। फ़ख्र से रहो। अलविदा। सना का इतिहास 3,000 साल पुराना है। सऊदी अरब की पहली बमबारी के बाद यूनेस्को ने सना के पुराने हिस
्से को संकटग्रस्त विरासत स्थल की श्रेणी में रखा। यहाँ एक, दो, तीन, चार, पाँच घर थे सभी पर बमबारी हुई अंदर लोग थे। एक घर में मलबे के नीचे परिवार की लाशें मिलीं। पिता, उनका भाई, पत्नी और बेटा सभी मारे गए। समूचा परिवार मारा गया। 2015 से अंसार अल्लाह आंदोलन इन तीन लोगों के ख़िलाफ़ शुरू हुआ सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, अमीराती क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन ज़ाएद और इनके बीच में यमन के निर्वासित पूर्व राष्ट्रपति अब्द-रबू मंसूर हादी। 2012 में एक अस्थिर दौर के बाद हादी सत्ता में आए उस चुनाव में वो अके
ले उम्मीदवार थे। 2014 में अंसार अल्लाह विद्रोहियों के हाथों बेदखल किए जाने से पहले उन्होंने एक असफल अंतरिम सरकार का नेतृत्व किया। तब से वो रियाद में निर्वासन में रह रहे हैं। प्रतिक्रिया में यूएई समेत सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2015 में यमन पर बमबारी शुरू कर दी। इस गठबंधन के पास संयुक्त राष्ट्र का समर्थन था और अमेरिकी, ब्रिटिश और फ्रांसीसी हथियार भी। इन अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कथित तौर पर नागरिकों के ख़िलाफ़ भी हुआ है। अब तक इस जंग में लगभग 3,70,000 यमनी लोगों की जान जा चुकी है। आम नागरिको
ं की मौतों के कारण यूरोप के गैर सरकारी संगठन सक्रिय हुए। हथियारों के कारोबारी ब्रिटेन, जर्मनी और इटली में। जर्मनी और इटली में कानूनी कार्यवाही का सामना कर रहे हैं। क्योंकि उनके बमों का इस्तेमाल यमन के नागरिकों की हत्या में हो रहा है। फ्रेंच अटॉर्नी योसेफ ब्रेहम ने क्राउन प्रिंस बिन सलमान और क्राउन प्रिंस बिन ज़ाएद के ख़िलाफ़ पेरिस में युद्ध अपराधों से जुड़ी दो शिकायतें दर्ज़ की हैं। अब तक के सबसे घातक हमलों में से एक के बाद ब्रेहम ने अपनी जाँच शुरू की। हम चश्मदीदों की गवाही लेने जा रहे हैं। हो सक
ता है हमें ऐसे पीड़ित भी मिलें जो मुकदमा दायर करने को तैयार हों ताकि हमारे पास पेरिस में मुकदमे के लिए और अधिक लोग और ज्यादा सबूत हों। बमबारी सना के एक बाहरी रिहायशी इलाके में हुई। बम इस इमारत पर गिरे जहाँ 8 अक्टूबर 2016 को अंसार अल्लाह के नियुक्त आंतरिक मामलों के मंत्री अपने दिवंगत पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक समारोह आयोजित कर रहे थे। यही वो जगह है है न? पागलपन है। हम शहर के बीचो-बीच हैं आसपास इमारतें और रिहायशी इलाके हैं। ये किसी सैन्य बैरक जैसा नहीं दिखता। अगर आप ज्यादा से ज्यादा
लोगों को मारना ना चाहते हों तो आप ऐसी किसी जगह पर ढेर सारे रॉकेट नहीं दागेंगे। ये हॉल का मुख्य गेट है। 7 अक्टूबर 2016 को दोपहर 1 बजे के आस-पास हमने मेहमानों का स्वागत करना शुरू किया। नहीं, नहीं 8 अक्टूबर को। नासिर अल रविशान उस दिन वहाँ मौजूद थे। वो आंतरिक मामलों के मंत्री के भाई हैं। मृतक के दूसरे बेटे। हमारा पूरा परिवार वहाँ था। इस प्रभावशाली परिवार के आयोजित समारोह के बारे में फेसबुक पर बताया गया था। मैं बता नहीं सकता कि वो कितना खौफनाक था। बेहद भयानक! यमन में इस तरह के आयोजन में केवल पुरुषों
और बच्चों को बुलाने की परंपरा है। यहाँ फर्श पर अभी भी चप्पलें बिखरी हैं। और ये मेरा जूता है। तुम्हें याद है अली? अंसार अल्लाह ने इस जगह को उसी हाल में रहने दिया ताकि यहाँ जो हुआ उसे कोई ना भूले। क्या हॉल भरा था? हजार से ज़्यादा लोग थे। पहले और दूसरे बम के बीच कितना अंतर था? बस पाँच मिनट। हमले के बाद फैली अफरा-तफरी और यहाँ भरे धुएं के बीच कई लोगों को बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला। कई लोग इस गड्ढे में गिर गए। हर तरफ लाशें पड़ी थीं। आधे कटे लोग। बमबारी के समय लोग जैसे बैठे थे। ठीक उसी हाल में उनक
ी जली हुई लाशें मिलीं। भले ही आंतरिक मामलों के मंत्री निशाना रहे हों लेकिन ज्यादातर पीड़ित आम नागरिक थे। क्या वहाँ सैन्य या सुरक्षाकर्मी मौजूद थे? हाँ सेना थी। लेकिन उनमें से ज्यादातर सेना में सक्रिय नहीं थे। कई तो रिटायर हो चुके थे। योसेफ ब्रेहम के मुताबिक ये बमबारी साफतौर पर युद्ध अपराध था क्योंकि पायलटों ने एक इंसान को मारने के लिए जानबूझकर सैकड़ों निर्दोष नागरिकों पर हमला किया था। यही हैं वो शख्स गलाल अल-रविशान। जो अब उप प्रधानमंत्री और ख़ुफ़िया प्रमुख बन गए हैं। गलाल अल-रविशान उस हमले में बाल
-बाल बचे। 150 मृतकों में से 25 मेरे अपने परिवार के लोग थे। मंत्री को यकीन है कि हमला जानबूझकर किया गया था। इस आयोजन के बारे में फेसबुक और बाकी सोशल मीडिया पर बताया गया था। वो नहीं जानते थे कि ये अंत्येष्टि समारोह था ये सच नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता। उन्होंने हादी सरकार की मुहैया कराई गई जानकारी का इस्तेमाल करने की बात कबूली थी। इस हमले में 30 बच्चों समेत 193 लोगों की मौत हुई थी। इस हमले में 30 बच्चों समेत 193 लोगों की मौत हुई थी। 890 लोग घायल भी हुए। मारे गए लोगों के परिवार के कई सदस्य घायलों
में शामिल थे। जिनमें अली अहमद, सलीम सलाह और नासिर अल रविशान भी थे। वो अब फ्रांसीसी वकील को चश्मदीदों की गवाही और उनकी मेडिकल फाइलें मुहैया करा रहे हैं। और वो सऊदी और अमीराती नेताओं पर दायर उनके मुकदमे में भी शामिल हो गए हैं। इंशा अल्लाह हमारा बदला पूरा होगा और हम इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में अपना मुकदमा भी लड़ेंगे। इन अपराधियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र और कई गैर-सरकारी संगठनों द्वारा बमबारी की जाँच के बाद सऊदी अरब ने आख़िरकार अपनी ग़लती मानी। इन लोगों का आरोप है कि खाड़ी की राजशाही ने पीड़ितों को
चुप कराने और मुकदमे से बचने के लिए पैसे की भी पेशकश की। पहले दिन से ही सऊदी अरब ने समझौता करने, चुप रहने के बदले मुझे पैसे देने की कोशिश की लेकिन मैंने इनकार कर दिया। हमने कहीं दस्तखत नहीं किया। अगर घायलों और शहीदों के परिवारों ने मुआवजा मंजूर कर लिया होता तो बिन सलमान और बिन ज़ाएद बहुत खुश होते। लेकिन वे बस इसका सपना देख सकते हैं। हम चाहते हैं कि उन पर मुकदमा चले। अनुमान है कि युद्ध में अब तक गठबंधन के हवाई हमलों में लगभग 9,000 नागरिक मारे गए हैं। फिर भी अब तक एक भी युद्ध अपराध का मुकदमा नहीं चल
ाया गया है। हम अब सना के पास की एक पहाड़ी की ओर बढ़ रहे हैं जो सिटी सेंटर से करीब 30 मिनट की दूरी पर है। अंसार अल्लाह के पास यहाँ एक अजीब संग्रह है जो कई वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला है। इनमें कई किस्मों के हजारों बम शामिल हैं। कुछ फट गए हैं बाकी नहीं फटे हैं। अली सफ़रा विद्रोही सरकार के साथ मिलकर एक हथियार विशेषज्ञता केंद्र चलाते हैं। ये केवल वो बम हैं जो सना में गिरे थे। वो हमें सबसे ख़तरनाक बमों की तरफ ले जाते हैं। क्लस्टर बमों से करीब 2,500 हमले हो चुके हैं। ये आबादी के लिए ख़तरनाक हैं। आप 9
9 फीसदी क्लस्टर बमों को कहीं नहीं ले जा सकते क्योंकि उनके फटने का खतरा रहता है। हम सिर्फ़ कुछ ही ला पाए हैं। 2008 में कई देश क्लस्टर युद्ध सामग्री को प्रतिबंधित करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संधि पर सहमत हुए। लेकिन अरब प्रायद्वीप के किसी भी देश ने अभी तक इस पर दस्तख़त नहीं किए हैं। फ्रांसीसी वकील इस यात्रा के दौरान उस तरह के बम देखना चाहते हैं जिनका इस्तेमाल जनाजे के दौरान हुआ था। उन्हें मलबे के बीच उस बम से मिलता-जुलता टुकड़ा मिला है जहाँ तक हम जानते हैं ये 82 वॉर-हेड वाला जीबीयू-12(GBU-12) है। हमने
यूएन को यही बताया है। इसमें एक शक्तिशाली विस्फोटक एच 6(H6)होता है। यह दूर तक फैलता है और बहुत रेडिएट करता है। क्या इन बमों से इमारतों को बर्बाद किया जा सकता है? हाँ आपने हॉल पर इनका भीषण असर देखा है। इसका इंसानों, जानवरों और पर्यावरण पर बहुत घातक असर पड़ता है। बैलिस्टिक विशेषज्ञों ने ऐसे मॉडल भी बताए। जिनमें जहरीले पदार्थ होते हैं। अमीन यहां पर जीबीयू 39 (GBU 39) बम का एक हिस्सा है। इसे अमेरिकी कंपनी वुडवर्ड ने बनाया है। यह सबसे विनाशकारी हथियारों में से एक है। इसमें थोड़ा यूरेनियम होता है और य
े रासायनिक और रेडियोऐक्टिव नुकसान करता है। ये घातक है। यमन के इस क्रूर युद्ध में बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। इसके नतीजे पूरी आबादी के लिए भयानक हैं ख़ासतौर पर यहाँ के बच्चों के लिए। कई बच्चों को दस की उम्र में ही काम शुरू करना पड़ता है। कई अस्पतालों में चुप-चाप मर जाते हैं। यहाँ डॉक्टर बहुत व्यस्त हैं। डॉक्टर खालिद सुहैल हुदैदा शहर में काम करते हैं। हर दिन उनके पास इमरजेंसी केस आते हैं। हमारे पास कई मरीज हैं। इस छोटी बच्ची के अंग छोटे हैं। फिलहाल हमारे पास नवजात शिशुओं के 22 मामले हैं जो विकृति
यों के साथ पैदा हुए हैं। अकेले इस विभाग में जन्मजात विकृतियों के 22 मामले हैं। ये हाइड्रोसेफलस है। हमारे पास ऐसे कई मरीज हैं। पहले इसके ज्यादा मरीज थे लेकिन अब कम हो रहे हैं। इसके कई कारण हैं लेकिन ज्यादातर मामलों में ये वंशानुगत नहीं है। ये अक्सर युद्ध और युद्ध सामग्री में मौजूद रसायनों के कारण होता है। जब से जंग शुरू हुई है हम डिप्थीरिया को लौटता देख रहे हैं। 1982 में ये बीमारी यमन में खत्म हो गई थी। हमारे पास गंभीर डायरिया के हजारों मरीज हैं। हैजा के पेशेंट और नई बीमारियाँ जैसे कैंसर, जन्मजात
बीमारियाँ, विकृतियाँ जो पहले दुर्लभ थीं। लोग असुरक्षित हैं। उन्हें यहाँ से चले जाना चाहिए या भाग जाना चाहिए। वे ढंग का खाना नहीं खा पाते कमजोर हैं वे इस हिंसा के कारण मनोवैज्ञानिक तौर पर भी बीमार हैं। इसके अलावा यहाँ हुदैदा में दुर्भाग्य से हमारे पास कैंसर के सबसे ज्यादा मामले हैं। जितना मुमकिन है उससे कहीं ज्यादा करने की ज़रूरत है। बिस्तरों की कमी है। जिन्हें भर्ती नहीं किया जा सकता वो या तो इंतजार करते हैं या मरते हैं सब ईश्वर के हाथ में है। हाल में यमन में युद्ध पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया
है। मार्च में संयुक्त राष्ट्र ने दान देने वाले देशों से यहाँ के लिए 4.3 अरब डॉलर मांगे। इसकी आधी से भी कम रकम मिली। एक अंतरराष्ट्रीय प्रशासनिक कर्मचारी के महीनेभर की तनख्वाह से ऐसे 30 बिस्तर खरीदे जा सकते हैं। यूएन के एक कर्मचारी के वेतन से ये विभाग सालभर चलाया जा सकता है। ये लोग बिना वेतन के काम करते हैं। वे वॉलंटियर हैं। वे ईश्वर और देश के लिए ये करते हैं। वे अपना फर्ज निभा रहे हैं। यमन में भूख का संकट भयावह है। 2021 में संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी कि चार लाख बच्चे भूख से मरने की कगार पर हैं
। इस विशेष वॉर्ड में कुछ ही दिनों के भीतर 74 बच्चों को इमरजेंसी में भर्ती करना पड़ा। आप यहाँ जो देख रहे हैं वो कुपोषण के लक्षण हैं। इन बच्चों में गंभीर कुपोषण है और वे लगातार दस्त से जूझ रहे हैं। उनके इलाज में विटामिन कारगर हो सकते हैं लेकिन वे अभी उपलब्ध नहीं हैं। युद्ध के कारण हमारे पास कुछ भी नहीं है। कई बीमारियाँ अकाल के कारण हो रही हैं पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। वो पाँच दिन पहले बुरी हालत में यहाँ आई थी। एक बिस्तर पर दो बच्चों को रखने की मजबूरी के चलते डॉक्टर ख़ालिद के पास एक बच्चे को ठीक करने
के लिए सिर्फ पाँच दिन होते हैं। उसकी हालत स्थिर है उसे छुट्टी दी जा सकती है। उसे एफ 70 दूध दिया गया फिर एफ 100। दूध के बाद हम उसे ये इमरजेंसी चिकित्सीय खाना देंगे। वो नौ साल की है। मैंने अभी उसकी जाँच की। हम देखेंगे कि हम क्या कर सकते हैं। उसे क्वाशीओरकोर है जो प्रोटीन की कमी से होता है। प्रोटीन को पचाने में दिक्कत होती है। चेहरे और निचले अंगों में एडिमा इसके लक्षण हैं। क्या हुआ? आपका बच्चा यहाँ क्यों है? कुपोषण। क्यों? मोटरसाइकिल। इनका पति मोटरबाइक टैक्सी चलाता था लेकिन उसके पास अब काम नहीं है
। मजदूरी के बिना खाना मिलना मुश्किल है। इसके अलावा इंपोर्टेड चीजें समुद्र में फंसी हैं या ठीक से नहीं रखी गई हैं या एक्सपायरी डेट बीत गई है। ये भी अकाल की वजह हैं। मानो इतना ही काफी नहीं था। स्वास्थ्य केंद्रों पर भी बम गिराए गए। 2018 में सऊदी गठबंधन के हमले के कारण हुदैदा अस्पताल में 40 नागरिकों की मौत हो गई। मानवाधिकार वकील योसेफ ब्रेहम यहाँ एक यमनी गैर सरकारी संगठन से मिलते हैं जो कि उनके पार्टनरों में से एक है। इस एनजीओ ने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को सतर्क करने के लिए अमीराती-सऊदी गठबंधन के ह
मलों का ब्योरा दर्ज किया था। हम हमलों का रिकॉर्ड रख रहे हैं हमने 800 से ज्यादा बमबारियों के ब्योरे जमा किए हैं। सब में चश्मदीदों की गवाहियां, उनके पहचान पत्र और पीड़ितों की सूची जैसी जानकारियां दर्ज हैं। ये एनजीओ युद्ध अपराधों के सबूत जमा करता है। इस लिस्ट में 25 पारिवारिक मुलाकातों, शादियों और अंतिम संस्कार के आयोजनों के ब्योरे हैं। जिन पर बमबारी हुई। इसमें 56 प्रभावित अस्पतालों और क्लिनिकों की जानकारियां हैं। ये एनजीओ ऐसे अपराधों की भी जाँच कर रहा है जिनके बारे में हाल तक बहुत कम जानकारी थी। ज
ैसे कि 31 अगस्त 2019 को इस पूर्व विश्वविद्यालय पर हुआ हमला जो कि अब अंसार अल्लाह की जेल है। यहाँ गठबंधन के पकड़े गए सैनिक रखे जाते हैं। इसमें युद्ध बंदियों को रखा गया था। यूएन और रेड क्रॉस दोनों ने इसका दौरा किया। ये बात गठबंधन को पता थी। आठ इमारतों पर आठ मिसाइलें दागी गईं जिसमें कुल 140 लोग मारे गए। उनमें हर एक युद्ध बंदी था जिसे जेनेवा कन्वेंशन के मुताबिक सुरक्षा मिली हुई थी। हमले में केवल 43 ही बचे। मैंने जो देखा उससे मैं बेहद हैरान और दुखी हूँ। इंटरनेशनल रेड क्रॉस के एक प्रतिनिधि ने घटनास्थल
का दौरा किया। आप यकीन मानिए मैं भी बेहद दुखी हूँ क्योंकि कैदियों की सुरक्षा और सहायता करना आईसीआरसी का मैनडेट और भूमिका है। गठबंधन के हमले में उसके अपने ही सैनिक मारे गए। फिर भी दो साल बाद गठबंधन अभी भी दावा करता है कि वह हथियारों के ठिकाने को निशाना बन रहा था। क्या कोई सैन्य लक्ष्य था? बैरक या हथियारों की फैक्ट्री? गठबंधन के दावों के उलट यहाँ ना कोई हथियार कारखाना था, ना मिसाइलों का कोई भंडार और ना ही कोई सैन्य शिविर था। इसकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने भी की है। तो फिर ये युद्ध अप
राध क्यों किया गया? अब्दुल कादिर अल-मुर्तदा का अपना एक अनुमान है। वो अंसार अल्लाह कैदियों की रिहाई से जुड़ी बातचीत के प्रभारी हैं। उन्होंने जो बताया वो हैरान करने वाला है हम कैदियों की अदला-बदली करने वाले थे लेकिन सऊदी अरब इसके ख़िलाफ़ था। इससे जुड़ी वार्ता ताइज़ में स्थानीय नेताओं के साथ हुई थी। लेकिन सऊदी ने इनकार कर दिया वे युद्ध बंदियों पर नियंत्रण रखना चाहते थे। ये हमला शायद सबको ये याद दिलाने की चेतावनी था कि फैसला किसके हाथों में है। लेकिन कई हवाई हमलों और समुद्री और हवाई नाकेबंदी के बावजूद
निर्वासित राष्ट्रपति और सऊदी अरब से समर्थन पा रही उनकी सेना के ख़िलाफ़ अंसार अल्लाह मजबूती से आगे बढ़ रहा है। क्या हम इसे यहाँ कर सकते हैं? 2021 में अंसार अल्लाह की सेना में लगभग दो लाख लोग होने और उनके पास हाथ से बने कॉम्बैट ड्रोन्स होने की बात कही जा रही थी। अल्लाह हू अकबर अमेरिका का नाश हो लेकिन सेना को प्रभावशाली यमन कारोबारियों से भी समर्थन मिलता है जैसे याहया अल हब्बारी। उन्होंने रीयल एस्टेट और इंपोर्ट-एक्सपोर्ट में खूब पैसा कमाया और वो अंसार अल्लाह के संरक्षकों में से एक हैं। जब युद्ध शुरू
हुआ तो उन्होंने लंदन छोड़ दिया ताकि अपनी दौलत का इस्तेमाल निर्वासित राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ कर सकें। ये हादी की कार है। अब्द रब्बू मंसूर हादी की कार। मैंने इसे पाँच साल पहले ख़रीदा था क्योंकि बहुत सारे कट्टरपंथी थे अल-क़ायदा के लोग आईएसआईएस के लोग। वो सना, हुदैदा और ग्रामीण इलाकों में मौजूद थे। अब मैं इसका इस्तेमाल तब तक नहीं करता जब तक विदेशी साथ न हों ताकि अगर उन्हें डर लगे तो कार में ले जाया जा सके। अपने बुलेटप्रूफ 4X4 में वो हमें विद्रोही नेताओं में से एक मोहम्मद अली अल-हूथी के पास ले जाते हैं। व
ो गठबंधन की मोस्ट वॉन्टेड लोगों की लिस्ट में हैं। मोहम्मद अल हूथी ऐसे इंसान हैं जिनकी देश में लोग बहुत इज्जत करते हैं। वो नंबर 1 हैं। साथ ही युद्ध में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है। वो एक योद्धा हैं योद्धा। बैठक सना से दूर याहया अल हब्बारी के एक ठिकाने पर हुई। अल हूथ परिवार ने अंसार अल्लाह की शुरुआत की। पिछली करीब आधी सदी से वो इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से हैं। इतने प्रभावी कि अमीराती-सऊदी गठबंधन सभी विद्रोहियों को हूथी बुलाता है। ये लोग यमन की हिफाजत कर रहे हैं यमन के लिए लड़ रहे
हैं। और इन्होंने हजारों शहीदों को खोया है। दरअसल जब से सऊदी अरब ने उनसे लड़ना शुरू किया उन्होंने सत्ता कायम करने का फैसला किया। लाखों लोग उनका सम्मान करते हैं और उन पर भरोसा करते हैं। 43 साल के मोहम्मद-अली अल हूथी जंग की शुरुआत से ही रेवोल्यूशनरी कमिटी के अध्यक्ष हैं और शासन के प्रमुख लोगों में से एक हैं। वो अमीरातियों और सऊदी के निशाने पर हैं और गठबंधन के लड़ाकू विमानों ने उन पर व्यक्तिगत रूप से हमला किया है। विरोधियों के मुताबिक उनके परिवार ने सऊदी अरब के दुश्मन ईरान के साथ हाथ मिला लिया है।
हम कट्टर नहीं हैं। हम ना तो सऊदी के साथ हैं और न ही ईरानियों के साथ। हम सारे मुसलमानों से कहते हैं कि इस्लाम की अलग-अलग शाखाओं के आपसी किसी झगड़े से ऊपर हमें जोड़ने वाली कड़ी क़ुरान है। यह बयान पूरी तरह सच नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के मुताबिक अंसार अल्लाह को ईरानी समर्थन से फ़ायदा मिलता है और यहाँ तक कि उसे शिया बहुल ईरान से सैन्य मदद भी मिलती है और इससे संघर्ष बढ़ता है। उत्तरी यमन के इन पहाड़ों में हूथियों समेत ज्यादातर लोग ज़ैदी मुसलमान हैं। जैदी शिया मुसलमान भी हैं। उनके पास ईरान की स
्वीकार्यता है लेकिन सऊदी की नहीं। क्यूंकि सऊदी सुन्नी हैं और वहाबी पंथ को मानते हैं। ज़ैदियों ने 9वीं सदी से लेकर 1950 के दशक तक इस पहाड़ी इलाके पर शासन किया। सऊदी अरब 20वीं सदी में अपने गठन के बाद से ही ज़ैदी प्रभाव को ख़त्म करने की कोशिश कर रहा है। ये इस्लाम की दो रूढ़िवादी शाखाओं के बीच का टकराव है और इसमें तेल से ढेर सारा पैसा बनाना भी इसके मकसद में शामिल है। लाल सागर में हमारे पास बहुत सारा तेल और गैस है। हुदैदा और रास अल खतीब के आसपास भंडार हैं। ये हमारे पास हैं। हमारे पास तेल है शायद यूरोप स
े भी अधिक। इस युद्ध की वजहों में गंभीर आर्थिक और ऊर्जा आकलन भी शामिल हैं। यमन के तेल भंडार उसके पड़ोसी सऊदी अरब जितने बड़े तो नहीं लेकिन काफी ज्यादा हैं। और यहाँ पाइपलाइन और रिफाइनरीज़ हैं जैसे यहाँ मरीब में लेकिन तेल के अलावा यमन का समुद्र तट उसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करने की क्षमता देता है। अंसार अल्लाह और गठबंधन बाब-अल-मन्देब जलडमरूमध्य के लिए भी लड़ रहे हैं। स्वेज नहर की ओर जाने वाला ये रास्ता वैश्विक समुद्री यातायात का एक प्रमुख मार्ग है। सऊदी अरब और अमीरात अरब सागर के लिए रास्त
ा खोज रहे हैं। सऊदी पूरब में एक बंदरगाह चाहते हैं। और वे बाब-अल-मन्देब जलडमरूमध्य के साथ-साथ इस द्वीप को भी नियंत्रित करना चाहते हैं। जिसका यमन के लिए आर्थिक और समुद्री तौर पर सामरिक महत्व है। यमन युद्ध केवल धर्म से नहीं जुड़ा है। इसका मकसद अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मार्ग और तेल पर नियंत्रण करना भी है। यमन के सारे तेल संयंत्र अभी गठबंधन के कब्जे वाले इलाकों में हैं। गठबंधन की मंजूरी के बिना तेल की एक बूंद भी उत्तर की ओर नहीं जाती। तेल खोजना अम्मार सालेह अल-अदरई का मकसद है। वो यमन पेट्रोलियम कंपनी
चलाते हैं और बॉडीगार्ड्स के बिना कहीं नहीं जाते। उनके लिए सुरक्षा इंतजाम क्यों हैं? अच्छा क्योंकि उन्हें दाएश में गोली मारी गई थी। शायद आईएसआईएस के लड़ाके उन्हें मार डालें। अब यमन में हर मशहूर शख़्स निशाने पर है। वो हमें दिखाना चाहते थे कि तेल की नाकाबंदी जनजीवन पर कैसा असर डालती है। उनके दफ्तर के पास ही राजधानी का सबसे बड़ा सरकारी गैस स्टेशन है। इस पर नजर ना जाना मुश्किल है क्योंकि इसके बाहर लंबी कतारें लगी रहती हैं। हर कोई नियमों का पालन करे ये सुनश्चित करने के लिए कई लोग मौजूद हैं। वो हफ़्ते मे
ं एक बार ही आ सकते हैं। मैं नंबर प्लेट और रजिस्ट्रेशन नोट करता हूँ। हर नागरिक हफ्ते में बस 40 लीटर तेल ले सकता है। कई बार लोगों को 24 घंटे कतार में लगना पड़ता है। ऐसी एक कार को 120 लीटर चाहिए लेकिन कोटा 40 लीटर ही है। हम यूएन और ताकतवर पदों पर बैठे लोगों से अपील करते हैं कि हमें इस जुल्म से आज़ादी दिलाएं। यमन के लोग अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते। हम इस युद्ध को और नहीं झेल सकते। मैं दो दिन से यहां हूँ। 2021 की पहली छमाही में ये स्टेशन केवल जनवरी और जून में ही खुला था। फरवरी, मार्च,अप्रैल और मई में
इसे बंद रखा गया था। जरूरी चीजों का सख्त कोटा और महीनों तक बनी रहने वाली कमी को केवल तस्करी से दूर किया जा सकता है। पूरे उत्तरी यमन का अस्तित्व खतरे में है। ये ही दिक्कतें हैं। तेल की कमी समुद्री लुटेरे और ऐसी तमाम चीजें हमें बहुत नुकसान पहुँचा रही हैं। आप खाद्य सामग्री से भरे ट्रक देख रहे हैं। वे नाव से लाए गए लेकिन यहाँ फंसे हुए हैं क्योंकि ईंधन नहीं है। वे 40 डिग्री गर्मी में धूप में खड़े होते हैं और खाना सड़ जाता है। गेहूँ और खाना लाने वाले जहाजों को अंदर जाने की इजाजत है लेकिन ईंधन आने की अन
ुमति नहीं है। अंसार अल्लाह ने गठबंधन पर समुद्री लूट का आरोप लगाया है। विद्रोहियों के इलाकों पर नाकाबंदी के कारण ये केवल अपने एक दुश्मन देश संयुक्त अरब अमीरात से तेल ले सकता है। गठबंधन और यूएन के लोग जिबूती में जहाजों की तलाशी लेते हैं। जाँच होने के बाद वे हुदैदा बंदरगाह की ओर बढ़ते हैं। लेकिन टैंकरों को अक्सर महीनों तक सऊदी अरब के बंदरगाह जिजान की ओर मोड़ दिया जाता है। अभी दो जहाज जिजान में फंसे हुए हैं एफओएस स्पिरिट और जीटी फ्रीडम। एफओएस यूएन के हरी झंडी देने के बावजूद एफओएस स्पिरिट 193 दिनों स
े वहां अटका हुआ है। ये सभी टैंक अभी खाली हैं। अंसार अल्लाह के नियंत्रण वाली पोर्ट सिटी हुदैदा में हफ्तों से एक भी टैंकर नहीं आया है। ज्यादातर कर्मचारियों को घर भेज दिया गया है। कृपया मेरे साथ आइए। 15 नंबर ज्यादा गैस। गैस के लिए। गैस के लिए बेंजीन। खाली। हाँ खाली देखिए यमन में सभी गाड़ियाँ और बिजली तेल से चलती हैं। नाकाबंदी सारी चीजों पर असर डालती है। तेल सुविधाओं पर प्रतिबंध से स्वास्थ्य, अस्पताल, कृषि, परिवहन और बिजली सभी प्रभावित हुए हैं। ये नाकाबंदी अन्यायपूर्ण और निराधार है। ये हुदैदा इलेक्ट
्रिसिटी मैनेजर की ओर से मदद की गुहार है। इस टैंक में एक लाख टन तक पेट्रोलियम उत्पाद रखा जा सकता है। बंदरगाह में अब एक भी जहाज़ नहीं है। जनवरी से अब तक सिर्फ एक जहाज़ आया है। तेल नाकाबंदी से प्रभावित यमन के दो करोड़ से ज्यादा लोगों के लिए ईंधन मिलना ना केवल दूभर है बल्कि बहुत महंगा भी है। ये तेल टर्मिनल के पास लाल सागर का तट है। यहाँ पूरा मछली उद्योग संघर्ष कर रहा है। हुदैदा के मछुआरे कई-कई दिनों के लिए समुद्र में जाते थे और दूर इरिट्रिया के तट तक भी चले जाते थे। एक वक्त था जब वे आधे देश को मछली की
आपूर्ति करते थे। अब समुद्र किनारे बच्चे ज्यादा हैं और मछलियाँ कम। ये नाव शार्क पकड़ने में माहिर है। मोहम्मद अल हसनी मछुआरा संघ के अध्यक्ष हैं। वे सैकड़ों जहाज़ मालिकों और हजारों नाविकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हुदैदा देश का सबसे बड़ा फिशिंग पोर्ट है नावों की लंबी कतार जाने का इंतज़ार कर रही है। लेकिन ईंधन नहीं है। और अगर है भी तो बहुत महंगा है। सलाम वालेकुम निकलने को तैयार? एक लीटर गैस 700 रियाल में मिलती थी यानी एक यूरो से भी कम 3,000 रियाल में मछली पकड़ना फ़ायदेमंद नहीं है। आने-जाने में दोगुन
ा खर्च होता है। आप पर्याप्त कमा लेते हैं? नहीं मुझे दो या तीन गुना ज्यादा चाहिए। अभी काम करके भी कर्ज में डूब जाते हैं! हम अगले टैंकर के लिए समुद्र की ओर देखते हैं। जब हम ये फ़िल्म बना रहे थे तब लगभग 80 प्रतिशत मछुआरे ज़मीन पर ईंधन के अगले जहाज की राह देख रहे थे। हम आज पकड़ी गई मछलियाँ देखने जा रहे हैं। जंग से पहले सारे टेबल भरे होते थे। सब व्यस्त होते थे। कारोबारी और रेस्तरां वाले यहाँ आते थे। हर दिन लगभग 100 टन मछलियाँ पकड़ी जाती थीं। अब केवल दस टन मिलती हैं। लेकिन गैस कई मुद्दों में से केवल ए
क है जो मछुआरे अभी भी जा रहे हैं वे बड़ा जोख़िम उठा रहे हैं क्योंकि ये ख़तरनाक है। वो ख़तरा है युद्ध का जो समुद्र में भी चल रहा है। जंग शुरू होने के बाद से अब तक गठबंधन के हमलों में समुद्र में गए 100 से ज्यादा मछुआरे मारे जा चुके हैं। उन पर हथियारों की तस्करी का शक था। इस आकार की और इससे छोटी नावों पर बमबारी की गई। इन नावों पर आमतौर पर चार या पाँच मछुआरे होते हैं। हमने सैन्य नौकाओं को हथियार खोजते देखा है और जब उन्हें कुछ नहीं मिलता तब भी उन्हें डुबा देते हैं। सऊदी सेना यमन की समुद्री सीमा को नियंत
्रित करती है लेकिन पहाड़ों को नहीं। इन पहाड़ियों से अंसार अल्लाह को हटाने के लिए लड़ाकू विमान पर्याप्त नहीं हैं। उन्हें ज़मीन पर सैनिक उतारने होंगे जिस मामले में सऊदी नेतृत्व वाला गठबंधन पीछे है। वो हजारों सूडानी लड़ाके लाया है। कुछ मर्सिनरी हैं बाकी सैनिक हैं। तुम्हें कब गिरफ्तार किया गया? आज सूडान का ये सैनिक युद्धबंदी है। उसे अक्टूबर 2019 में गिरफ्तार किया गया था। हमने उससे मिलने को कहा। सऊदी अरब ने सीमा की सुरक्षा से जुड़े मिशन के लिए उसकी भर्ती की और भुगतान किया। हमें सऊदी की तरफ वाली सीमा की
रक्षा करनी थी। हमें यमन नहीं जाना था। लेकिन मंसूर हादी के यमनी सैन्य लीडरों ने हमें लाल सागर तट की ओर अंदरूनी इलाके में बढ़ने को कहा। हमारे पास कोई चारा नहीं था। जो आदेश मिला उसका हमें पालन करना था। ये गवाही फ्रांसीसी वकील के लिए बहुत काम की है। 2019 में इस सैनिक के पकड़े जाने से पहले उन्होंने युद्ध के मैदान पर दिलचस्प गठबंधन देखे। हमारे साथ सऊदी भी थे अमीराती नहीं। और अल-इस्लाह पार्टी का एक समूह भी था। हम साथ नहीं थे लेकिन एक ही जगह पर थे। वे अगली कतार में लड़ रहे थे और हम उनके पीछे थे। अल- इस
्लाह यमन की प्रमुख सुन्नी पार्टी है। इसके गठबंधन से रिश्ते हैं। लेकिन इसके कई सदस्य अल-क़ायदा में शामिल हो गए हैं। क्या इस युद्ध से आतंकी संगठन को फायदा हो रहा है? ख़ासतौर पर अरब प्रायद्वीप में सक्रिय अल-क़ायदा को। वो भी हूथियों और अंसार अल्लाह से छुटकारा चाहता है। उनके सरगना खालिद बतरफी ने इतना ही कहा। बतरफी कभी बिन लादेन के अनुयायियों में से एक था और अफगानिस्तान में ही था। हम यमन के कई इलाकों में 11 से ज्यादा मोर्चों पर हूथियों और उनके समर्थकों से लड़ रहे हैं। 7 जनवरी 2015 को पेरिस में शार्ली एब्
दो त्रासदी के बाद अरब अल क़ायदा कुख्यात हो गया। क्वैशी भाइयों ने गोलीबारी की और अरब अल क़ायदा एक्यूएपी ने घटना की जिम्मेदारी ली। यमन में संगठन के तत्कालीन प्रवक्ता नासिर अल-अनसी ने हमले का जश्न मनाया। ओह! अल-अनसी। अंसार अल्लाह की ख़ुफिया सेवा के प्रमुख के तौर पर गलाल अल-रविशान अल-क़ायदा की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखते हैं। वो अल-अनसी से वाकिफ हैं। वो सना में पैदा हुआ यहीं पला-बढ़ा। वो कट्टरपंथी बन गया और कम उम्र में ही अल-क़ायदा में शामिल हो गया। 2015 के एक हमले में वो मारा गया। अरब अल क़ायदा क
े पेरिस हमले की जिम्मेदारी लेने के दो महीने बाद एक अमेरिकी ड्रोन हमले में अनसी मारा गया। हो सकता है इसके लिए गठबंधन ने ख़ुफिया जानकारी दी हो। लेकिन ख़ुफ़िया प्रमुख रविशान उसे मुख्य रूप से विज्ञापनबाजी मानते हैं। मुख्य मकसद था सऊदी और अमीराती कब्जे की छवि सुधारना। और ये दिखावा करना कि वे आतंकवाद से लड़ रहे हैं कब्जा नहीं कर रहे। यमन में शार्ली एब्दो हमले से जुड़े होने के बावजूद कई अन्य आतंकवादियों पर लंबे समय तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। उनमें से एक है फ्रांस का पीटर शेरिफ। पीटर शेरिफ वो मुझे याद है।
शेरिफ पेरिस हमले से जुड़ा आखिरी जिंदा आतंकवादी है। दिसंबर 2018 में उसे जिबूती से गिरफ़्तार किया गया था। फ्रांसीसी ख़ुफ़िया विभाग के मुताबिक वो क्वैशी भाइयों के संपर्क में था। शार्ली एब्दो को ख़त्म करना 2010 से ही एक्यूएपी के अजेंडे में था। शेरिफ कई सालों तक यमन के कुछ बारीकी से निगरानी रखे जाने वाले इलाकों में रहा था। फिर भी उससे पूछताछ तक नहीं की गई। रविशान के मुताबिक गठबंधन और निर्वासित राष्ट्रपति हदीद जिहादियों के साथ दोहरा खेल खेल रहे हैं। गठबंधन और हादी सरकार को स्पष्ट तौर पर हमारे ख़िलाफ़ लड़ने
में दिक्कत आ रही थी। उन्होंने धर्म के आधार पर गठबंधन बनाए जैसे सलाफियों और अल-क़ायदा के साथ। गठबंधन को यूएन, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस से समर्थन मिला है। रविशान का कहना है कि अपने साझा दुश्मन अंसार अल्लाह से लड़ने के लिए उन्होंने अल-कायदा से भी हाथ मिलाया। ये उनका झंडा है। ये झंडा बिन सलमान और ट्रम्प से समर्थन पाने वाले उन कुत्तों में से एक का है। यूरोप में ये एक वर्जित मुद्दा है। लेकिन अंसार अल्लाह के उप विदेश मंत्री के लिए नहीं जो कि शांति वार्ता के प्रभारी हैं। मैं पुख्ता तौर पर आपसे कह सकता
हूँ कि अल-क़ायदा और आइसिस इस गठबंधन का अभिन्न हिस्सा हैं जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मान्यता मिली हुई है। वो अनिवार्य हिस्सा हैं। मरीब में आइसिस और अल-क़ायदा के सदस्यों को पैठाया गया है। और वे बिल्कुल अगली पंक्ति में हैं। मरीब देश के केंद्र में है। यहाँ सालों से सामरिक महत्व का तेल निकालने और प्रॉसेस करने वाले रिग्स पर कब्जे की लड़ाई चल रही है। कहा जाता है कि यहीं पर गठबंधन और अल-कायदा एक-दूसरे को समर्थन दे रहे हैं। अप्रैल 2021 की इस रिपोर्ट में अंसार अल्लाह ने मरीब में अल-क़ायदा के ठिकाने और हथि
यार रखने की जगहों की पहचान की। उन्होंने इस गठबंधन में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले एक शख्स की पहचान की। उसका नाम खालिद अरदाह है और वो इस इलाके के एक बड़े सुन्नी परिवार से है। 2017 में अमेरिका ने अनजाने में ही इस आरोप की तब पुष्टि कर दी जब वॉशिंगटन ने खालिद अरदाह को अल-क़ायदा लीडरों से जुड़ी अपनी वॉन्टेड लिस्ट में डाला। वो अल-क़ायदा के एक शिविर की निगरानी कर रहा था और संगठन को हथियारों और लड़ाकों की आपूर्ति कर रहा था। लेकिन इस फुटेज में वो यमनी सैन्य अधिकारियों के साथ मरीब से ज्यादा दूर नहीं है। मै
ं चीफ ऑफ स्टाफ जनरल अल-मकदाची को धन्यवाद देता हूँ। जिस सैन्य अधिकारी को सलामी दी जा रही है वो पूर्व राष्ट्रपति हादी के रक्षा मंत्री हैं। वो अल-क़ायदा लीडर से कुछ ही मीटर की दूरी पर खड़े हैं। भाषण दे रहा शख्स निर्वासित राष्ट्रपति का राइट हैंड है। नवंबर 2019 में यहाँ वो रियाद में भी दिख रहा है। उसका नाम अली मोहसिन है। वो सऊदी अरब और अमीरात से समर्थन पा रही सरकार में उप राष्ट्रपति है। अली मोहसिन का अल-क़ायदा से संबंध कोई नई बात नहीं है। फ़्रांस की विदेशी ख़ुफ़िया एजेंसी डीजीएसई 11 सितंबर के हमले से
एक साल पहले अली मोहसिन को लेकर चौकन्नी हो गई थी। मोहसिन उस समय सेना में जनरल था और माना जाता था कि ओसामा बिन लादेन के करीबी सहयोगी शेख अब्देल माजिद अल जेंदानी और उससे फंडिंग पाने वाले यमनी कट्टरपंथियों के साथ उसके ठोस संबंध थे। अली मोहसिन दो चेहरों वाला इंसान है एक तरफ़ वो अंसार अल्लाह से लड़ रहे गठबंधन में अहम भूमिका में है और साथ ही वो एक अल-क़ायदा लीडर के साथ मिलकर भी लड़ता है। हम संयुक्त यमन में दोबारा मिलेंगे। मैं फील्ड मार्शल मंसूर हादी की ओर से आपको बधाई देता हूं। वो आपकी जीत और कामयाबी की
कामना कर रहे हैं। इंशाअल्लाह। ये सबको पता है उसके जैसे लोग गठबंधन सेना में अहम पदों पर हैं बतौर सैन्य अधिकारी या राष्ट्रपति के सलाहकार या शिविर के प्रमुख जैसे पदों पर हैं। अक्टूबर 2020 में उत्तरी प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र को 11 लोगों की लिस्ट भेजी जिन पर अल-क़ायदा के साथ जुड़े होने का शक था। उनमें अद्ल अल-दबानी उर्फ अबू अल-अब्बास भी था जिस पर अल-क़ायदा के साथ संबंध होने का आरोप लगाया गया था। सीएनएन के पत्रकारों के मुताबिक वो ताइज़ क्षेत्र में गठबंधन की एक ब्रिगेड का नेतृत्व करता है। एक और चौंकाने
वाला मामला अब्द अल-वहाब अल-हमीकानी का है। जिसे अमेरिका अल-क़ायदा नेता मानता है। जबकि वो रियाद में निर्वासित राष्ट्रपति मंसूर हादी के दफ्तर में पाया जाता है। यहाँ वो यमनी प्रतिनिधि मंडल के बीच तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून से हाथ मिला रहा है। यमन छोड़ने से पहले फ्रांसीसी वकील योसेफ ब्रेहम अपने ताजा नतीजों की पड़ताल करना चाहते हैं। दुनिया के इस हिस्से में सऊदी अरब और यूएई, फ्रांस के सबसे अच्छे सहयोगी हैं। और उसके सबसे बड़े दुश्मन अल-क़ायदा और आईसिस हैं। तो हमारे सबसे करीबी सहयोगी और स
बसे बड़े दुश्मन एक साथ आगे बढ़ रहे हैं जो बहुत चौंकाने वाली बात है। आप इसे आतंकवाद से मिली-भगत भी कह सकते हैं। हम इन देशों पर निर्भर हैं इसलिए वे जिसे चाहें, जहाँ चाहें अपने हितों के मुताबिक समर्थन करते हैं। राजनीति हमेशा तर्कसंगत नहीं होती। राजनीतिक जोड़ तोड़ के जनसंख्या पर भी भयानक परिणाम हो रहे हैं। यमन में करीब पौने दो करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। यानी आधी से ज्यादा आबादी इस हाल में है। सना में भूख भी एक विकट दिल दहलाने वाली मुसीबत है। तुम ये लो और वहाँ रख दो। इन बर्तनों में
रखा खाना मुहल्ले के कुछ ही हिस्से में बंट पाएगा। हर सुबह अयमान और उनका परिवार अपने तरीके से भूख से लड़ता है। ये चावल है, ये सब्जियाँ हैं। कभी-कभी हम मांस भी देते हैं। मैं एक सड़क बनाने वाली कंपनी में काम करता था। लेकिन संघर्ष शुरू होने के बाद हमने गरीबों की मदद के लिए वॉलंटियर करना शुरू कर दिया। परिवार की रसोई में अयमान बेहद गरीब लोगों के लिए खाना बनाते हैं। इसका सामान पड़ोसियों और दुकानदारों से आता है। हम 240 परिवारों को खाना खिला सकते हैं। लेकिन कभी-कभी जो मिलता है वो केवल 50 परिवारों के लिए प
र्याप्त होता है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हालात कितने मुश्किल हैं। मैं जो भी करता हूँ वो संघर्ष है, फ़र्ज़ है, जिहाद है। हर दोपहर 200 से ज्यादा परिवारों को खाना मुहैया कराने के मकसद से पिता और पति भी खुद को अंसार अल्लाह सेनानी के रूप में देखते हैं। दो घंटे और। 11 बजे तक बनकर तैयार हो जाएगा। उन्हें इस लड़ाई में हथियारों की नहीं बल्कि गैस की जरूरत है। यहाँ सना में हर परिवार को निश्चित मात्रा में ही गैस मिलती है। हर सिलेंडर मायने रखता है। हमें हर महीने दो गैस सिलेंडर मिलते हैं। कभी-कभी ब्लैक मार्केट मे
ं भी मिल जाता है लेकिन नियम हर महीने दो सिलेंडर का ही है। क्या तुमने सिलेंडर खोला? एक गैस सिलेंडर की कीमत 6000 रियाल है। ब्लैक मार्केट में कीमत दोगुनी है। ये तैयार है। इसे अपने सिर पर डाल लो। ताकि बाल ढक जाएं। चलो मज़ाक का वक़्त नहीं है। बैग खोलो। चिंता मत करो तुम जलोगे नहीं। अब बैग बंद कर दो। सुबह के 11 बजे हैं और अयमान और उनके बच्चे डिलीवरी के लिए खाना बना रहे हैं। फहाद थैलियों को बंद करके कटोरी में रख दो। एक ठेले में चावल के बैग हैं दूसरे में सब्जियों के थैले हैं। अयमान के पड़ोसी आज 150 गरीब स्
थानीय परिवारों को खाना पहुँचाएंगे। सना के मजदूर वर्ग वाले इलाके से दूर हम एक ऐसे शख्स से मिलते हैं। जिनके पास किसी चीज की कमी नहीं है याहया अल-हब्बारी। मैं रोज तैरता हूँ एक घंटा। अंसार अल्लाह को समर्थन देने वाले कारोबारी याहया अल-हब्बारी के पास आलीशान घर है। वो रीयल एस्टेट और अनाज के कारोबार से दौलत कमाते हैं। ये मेरी पोती है। मिलकर अच्छा लगा। और वो मेरा पोता है। वो इस इलाके का काफी मशहूर घुड़सवार है। उनके पास कई खेत हैं और वो भूखे लोगों की मदद भी करते हैं। ये अंगूर है। ये ऑर्गेनिक है आप चाहें त
ो चख सकते हैं। कोई भी यहाँ आकर मुफ़्त में खा सकता है। हम बहुत दान करते हैं। हम इस खेत से जो उपहार देते हैं वो दरअसल कुछ भी नहीं है! पिछले छह सालों में हमने देशभर में गरीब लोगों को गेहूं, आटा, चीनी चावल बांटा है। अगर हम डब्ल्यूएफबी या किसी विदेशी संगठन पर निर्भर रहते तो हम शायद पूरी तरह दम तोड़ चुके होते। अल-हब्बारी समूह अभी भी उत्तरी यमन के लिए अनाज आयात करता है। लेकिन इन दिनों आटा नकद में मिलता है और कभी-कभी सप्लाई लाने वाले जहाज हफ्तों तक लाल सागर में अटके रहते हैं। यूएन और उसका विश्व खाद्य का
र्यक्रम भी समुद्र के रास्ते आपूर्ति भेजता है। कारोबारी हब्बारी इसे तमाशा बताते हैं। यूएन यमन की बड़ी मदद करने का दावा करता है। वो पैसे इकट्ठा करते हैं। लेकिन वो लोग पैसे के साथ खेल खेलते हैं। वे सबसे खराब गुणवत्ता वाला सामान यहाँ लाते हैं गेहूं, आटा,सारी चीजें और जितना वो देते हैं वो बहुत कम है। कुछ भी नहीं है। यमनी-सऊदी गठबंधन और अंसार अल्लाह पर यमन के लोगों के खिलाफ अकाल पैदा करने का आरोप लगता है। आखिर में कोई भी पक्ष बेदाग नहीं दिखता ये खौफनाक जंग खामोशी से लोगों का क़त्ल कर रही है और दुनिया क
े एक बड़े हिस्से की इस ओर नजर भी नहीं जा रही है।

Comments

@rajendradarji5635

शिया वर्सिस सुनी की लड़ाई है और मासूम लोग मर रहे हे अगर इंसान ने यह धर्म ना बनाए होते तो आज दुनिया स्वर्ग होती।।।

@kishorsawarkar2067

Best documentary in the world.keep it up 👍

@user-se5xy5yg8h

Great documentary.... Thanks D.W. 👍🏻🤝🇮🇳

@amankont1529

यहा कोई नही बोलेगा पश्चिम देश। लेकिन रूस के पीछे पड़े हुए है।

@akgaming8944

Great documentary ✌

@aliaasif580

Or yha to Modi or Amit Sha bhi nahi he... Proud INDIAN MUSLIM JAI HIND 🤗

@HR-rp8pc

DW का ये वीडियो बहुत ही अच्छा लगा क्योंकि दुनिया में हो रहे युद्ध अपराध की सच्चाई को सामने से देखा जा सके।अमेरिका में बम बनाने वाली कंपनी यूरेनियम का भी इस्तेमाल करती हैं आम लोगो पर ये बहुत ही सर्मनाक है।

@discovery5117

DW is the best ❤

@mohitji1677

DW thanks for making this informative documentary...

@kamilansari1903

मन बहुत ही विचलित हुआ देख कर लेकिन आपने सचाई दिखाई सुक्रिया

@palakyadav1046

Best documentary 👌🏻👌🏻👌🏻

@shaguftajunaid9682

thanks for all team

@RajKumar-wm1fu

मस्त आवाज हे

@blackicetattoo

Great work dw👌🏼👌🏼👌🏼

@asadnaqvi1609

To day Yemen🇾🇪 is very strong💪 ❤

@fflover288

Thanks for DW documentary

@shapankar1733

ALL LOOKING GOOD PEOPLE AMEEN ❤❤

@ankurverma7515

बहुत अच्छा लगा Thank you with heart dear.... Bhahut achi video hai es video se bhahut kuch new dhekha suna ....

@educationsystemofficial8732

इस धरती पर आर्थिक मजबूत लोग कमजोरो पर अत्याचार करते आए हैं। धर्म के नाम पर पुराने वक्त से ही युद्ध चलते आए हैं।

@omprakashmahara

Feel like authentic and real documents. Wish to see such more high quality contents