मैं चुड़ैलों जीनों बलाओ को महज किताबों में पढ़ा करता था मेरे नजदीक य महज झूठ और मन गणित कहानियां होती थी लेकिन ऐसा नहीं यह मन गणित कहानियां नहीं हकीकत है ठोस हकीकत इनसे इंकार नहीं किया जा सकता मैंने एक लंबी उम्र पाई है और मेरे साथ क्या-क्या हुआ बहुत भयानक वाकत है अब चूंकि जिंदगी के इस मरहले में हूं जहां सिर्फ मौत ही मौत है मैंने अपने दिल में पुख्ता अहद कर लिया कि मैं भी इनका मुकाबला करूंगा इनका हाथ करूंगा जिस तरह उन्होंने मेरा घर हो जाना है मैं भी उनकी जिंदगियां तबाह करूंगा और मैं अपने मकसद में
कामयाब रहा अपना बदला लिया अपने मासूम बच्चों का अपनी बीवी का सबका बदला लिया आज से 60 साल कबल मैं अपने तीन बच्चों अकरम नेगत और रिफत को गर्मियों के मौसम में स्कूल से छुटियां होती तो लेकर बच्चों की नाने के घर ले गया मेरी सास की सिर्फ एक ही बेटी थी और तीन बेटे थे बेटी यानी मेरी बेगम और मेरे तीनों साले करीबी शहर में काम करते थे मैं मेरी बेगम और बच्चे जब बच्चों के साथ उनके ननल पहुंचे तो पहले की तरह हमारा क्रम जोशी से इस्तकबाल नहीं किया गया इससे कबल जितनी दफा भी हम गांव गए घर वाले मेरे बच्चों को हाथों ह
ाथ उठाते इस दफा उनका रवैया मेरी समझ से बाहर था घर के तमाम अफराद के रंग पीले पड़े थे जैसे काफी अरसे से फाके कर रहे हो चंद मिनट के बाद मैंने अपने साथ से वजह पूछी तो वो बोली अशरफ बेटे तुमको बच्चों को लेकर यहां नहीं आना चाहिए था आखिर क्यों क्या बात है मैंने फिर वजह पूछी तो सास बोली एक महीना से गांव वालों पर कयामत गुजर रही है कई दिन हो गए किसी ना किसी घर में खून हो जाता है एक महीने में कमो बेश 10 अफराद कत्ल हो चुके हैं आखिर यह कत्ल क्यों हुए क्या गांव वालों की किसी के साथ दुश्मनी चल रही है मैंने अपनी
साथ से पूछा तो वह कहने लगी नहीं बेटा बात ऐसी नहीं है हमारे गांव के करीब चिड़ेल और बलाओ ने बस्ती बना ली है और एक शेर जितना काला सया बिल्ला अशरफ बेटे वो बिल्ला नहीं बल्कि पूरी बिला है चुड़ल है या भूत है अपनी सास की यह बात सुनकर मैं खिलखिला कर हंसा क्योंकि मैं इन चीजों को कतई नहीं मानता था मां जी आप भी अजीब बातें करती हैं यह यह जिन भूत बलाए कुछ भी नहीं आप लोगों का वहम है असल बात कुछ और है जिसका दिल छोटा होता है वह तिनके से भी खौफ खा जाता है और जिसका दिल बड़ा होगा उसके सामने पहाड़ बई की मानंद है अर
े नहीं अश्र बेटे यह हकीकत है अगर हमारे गांव में यह वाक्यात ना होते तो मैं तुम्हारी बात की ताई करती लेकिन आंखों सामने देखने के बाद नहीं बेटा नहीं तुम्हें मेरी बात माननी पड़ेगी आराम करने के बाद जब गांव के लोगों से मिलोगे तब तुम्हें यकीन आ जाएगा अगर फिर भी यकीन ना आया तो गांव के कब्रिस्तान में नई बनी हुई कबर देख लेना जो मासूम बच्चों की है वह बिला बच्चों पर ज्यादा हमला करता है उन्हें लहू लहान कर देता है उनके जिस्म के टुकड़े-टुकड़े करता है और उनका खून पी जाता है कहां से आता है हमें मालूम नहीं अगर कोई
इसे मारने की कोशिश करता है तो गायब हो जाता है गांव के सभी लोग खौफ जदा है अब तक जितनी भी मौतें हुई है रात के अंधेरे में हुई है और धूप में ऐसे कई बिल्ले गांव के बायर कब्रिस्तान के पासपास नजर आते हैं जो अपनी शक्ल बदलते रहते हैं गांव वालों ने बच्चों को घरों में बंद कर रखा है सख्त निगरानी की जा रही है फिर भी हर दूसरे तीसरे दिन किसी ना किसी घर में कत्ल हो जाता है मां जी ठीक है बस करें कोई और बात करें मैंने बात बदलनी चाहि क्योंकि मैं इन चीजों को मानता ही नहीं था थकावट की वजह से मेरी आंखें बंद होना शुर
ू हो गई जल्दी ही मैं सो गया जब उठा तो असर की अजान हो रही थी मैं उठा गुसल किया और मस्जिद की जानिब नमाज अदा करने के लिए चल पड़ा क्योंकि मेरा ससुराली गांव था इसलिए गांव के लोग मेरे वाकिफ थे इसलिए नमाज से फारे होकर उनसे गपशप लगाने लगा लेकिन गांव के तकरीबन हर फर्द के चेहरे पर मायूसी और जर्दी छाई थी उन सबके अंदर एक खौफ था गांव वालों की य हालत देखकर मुझे अम्मा की बातों का यकीन होने लगा लेकिन फिर इस यकीन को मजाक में बदल दिया और घर आ गया गांव वालों की आदत होती है कि सरे शम ही रात का खाना खा लिया जाता है
वहां भी ऐसा ही हुआ मगरिब की नमाज के फौरन बाद खाना टेबल पर लगा दिया गया जो मैंने खाया खाने के बाद मैं छत पर जाकर लेट गया मेरे बच्चे भी छत पर आ चुके थे बच्चे गांव की अपो हुवा देखकर खुश हो रहे थे कभी इधर और कभी उधर भागते बच्चों को खुश देखकर मैं भी खुश था अम्मा की बातों का मेरी बीवी ने इस कदर असर लिया के छत पर आते ही कहा अशरफ साहब हमें यहां ज्यादा दिन नहीं रुकना चाहिए सुबह बच्चों को लेकर वापस चले जाते हैं मुझे तो खौफ आ रहा है कि कहीं अरे कुछ नहीं होगा तुम पागल हो गई हो मैंने बीवी को प्यार और सख्ती क
े मिले जुले अल्फाज में डांटा लेकिन उसके दिल में मां ने जो खौफ डाल दिया था वह निकलना मुश्किल हो चुका था जूजू अंधेरा होता जा रहा था मेरी बीवी की जान पर बढ़ती जा रही थी बच्चों को अंदर कमरे में ले गई और कहने लगी कि यहां पंखे के नीचे सो जाओ बाहर नहीं खेलना बल्कि बाहर बिल्कुल नहीं निकलना रात के ना जाने कौन से पहर मेरी आंख लग गई और मैं सो गया सुबह के वक्त उठा तो हर चीज अपनी अपनी जगह सलामत थी गांव में किसी भी किस्म के रोने थोने की बात नहीं हुई मैंने अपनी सास से कहा अम्मा बिल्ला कहां है मुझे प दिखाओ मैंन
े सास से मजाक किया बेटा अल्लाह खैर करे और व बिल्ला किसी दुश्मन के घर भी ना जाए कोई अच्छी बात मुंह से निकालो मेरी सांस के चेहरे पर अचानक परेशानी नुमाया हो गई जिसको मैंने महसूस करते हुए बात बदल डाली मैं दफ्तर से तीन दिन की छुट्टियां लेकर आया था इसके बाद बच्चों को एक माह तक गांव में रहना था ताकि खूब जी भरकर अपनी नानी वगैरह से मिलने नाश्ता से फरा होकर मैं गांव के बाहर इस विराने में निकल गया जहां बताया गया था कि चुड़ैलों नेने डेरा डाल रखा है मुझे इन चीजों पर यकीन नहीं था इसलिए बहादुर बना बैठा था अगर
यकीन होता तो गांव वालों की तरह कमरे में घुसा रहता आधा दिन मैंने वहां विराने में ही गुजारा और मैंने एक बात नोट की कि गांव का कोई बूढ़ा जवान वगैरह इस विराने में नहीं आया वो वीराना खौफनाक जरूर था खौफनाक से मुराद सांप बिच्छू नले वगैरह का डर था क्योंकि ऊंचे ऊंचे सुरूट और झाड़ियों के बेतरतीब झुरमुट तब ती दोपहर में भी मुझे वहां कुछ नजर नहीं आया और मैं वापस गांव आ गया मेरी इस होशियारी और दलेरी पर बजाए सांस खुश होती उल्टा प्यार से डांटने लगी बेटा तुझे मना किया है यह गांव वाला पहले वाला गांव अब नहीं है अब
सब कुछ बदल चुका है लेकिन तुम हो कि मेरा इतना समझाने के बावजूद भी तुम्हारे सर पर जू तक नहीं दगी घर में आराम करो अगर बाहर निकलना है तो वहां गांव में स्कूल की ग्राउंड है गांव के आदमी वहां दोपहर को बैठते हैं वहां जाकर बैठ जाओ अम्मा जी की बात मैंने काटना ली मां जी आप तो खवा मखा खफ जदा हो रही हैं वही गांव है और वही लोग यहां सब कुछ वही है कुछ भी तो नहीं बदला आप सब गांव वालों को वहम हो गया है और वहम का कोई इलाज नहीं इतना कहने के बाद मैं दोबारा घर से निकलकर स्कूल के ग्राउंड में चला गया वाकई गांव के चंद
पूरे खेतों वरा के काम से फारिग होकर दरख्तों की छाव में बैठे आपस में बातों में मसरूफ थे एक दरख्त के नीचे ताश की गेम चल रही थी ताश का मैं बहुत शौकीन हूं इसलिए बुजुर्गों को सलाम किया और हाथ मिलाने के बाद दूसरे दरख्त के नीचे ताश वाली जगह पर चला गया गांव का मेहमान था और यह लोग जानते थे कि मुझे भी शौक है लिहाजा एक आदमी ने अपनी जगह खाली करके मुझे बिखा दिया और यूं गेम चलने लगी वहां बैठे वक्त गुजरने का एहसास नहीं हुआ खेलने के दौरान वोह लोग आपस में बिल्ले के मुतालिक बातें कर रहे थे जिन पर मैंने जरा भी ध्य
ान नहीं दिया जब सूरज डलने के करीब हुआ तब जाकर हमने गेम खत्म की बुजुर्ग आदमी वहां से उठकर चले गए उस जगह और लोग भी बैठे थे मैं चंद मिनट उनके पास बैठा रहा एक आदमी कह रहा था अगर अब वह बिल्ला गांव में आया तो फायर कर देंगे और वही उसका खात्मा कर देंगे दूसरा बोला नहीं वो फायर से नहीं मरेगा वह तो बिला है इन चीजों का उस पर असर नहीं होगा मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि यह रहमत साहब के चार साला बच्चे पर सबसे पहले इस बिल्ले ने हमला किया रहमत साहब आप खुद बताएं कि क्या हुआ रहमत के दो बेटे थे रहमत बोला रात के प
िछले पैर में जब आंख खुली तो मेरी चीख निकली गई मेरे बेटे की चड़ पाई पर एक सया पिल्ला चुका हुआ था उसने मेरे बच्चे की गर्दन को दबोच रखा था और होन पी रहा था मेरी चीख सुन सुनते ही उस बिल्ले ने खूनखार आंखों से मेरी तरफ देखा और कमरे में ही गायब हो गया मैंने बच्चे को देखा तो वह खून में लत पत मर चुका था उसके साथ ही रहमत की आंखों में आंसू आ गए मैं अपने बेटे के लिए कुछ नहीं कर सका मेरे सामने मेरा बेटा बिल्ले की नजर हो गया वो बिल्ला छोटा तो नहीं था शेर की माने जिस्म था उतना ही कद काट था और आखें खूनखार थी उस
की जुबान में सच्चाई थी रहमत की बात सुनकर मुझे भी कुछ-कुछ खौफ आने लगा रहमत की आंखों से आंसू बह रहे थे कि उसका बेटा बिल्ले का निशाना बन चुका उसे देखकर मुझे यकीन आने लगा फिर एक-एक करके उसने गांव में बिल्ले का शिकार होने वाले 10 बच्चों के बारे में बताया वह भी इसी तरह लह लहान हुए थे गुलाम दीन के तो दो ही बेटे थे एक ही रात में बिल्ले का शिकार हो गए काफी देर ऐसी बातें होती रही इसके बाद मगरिब की अजने शुरू हो गई और नमाज पढ़ने मस्जिद में चले गए नमाज से फारिग होकर सीधा घर आ गया मेरे दिमाग में रहमत की बातें
गूंज रही थी उसके बाद सास की बातें गूंजने लगी कि गांव बदल चुका है यहां हर चीज बदल चुकी है हर किसी को अपने घर की फिक्र है शाम के बाद कोई आदमी घर से नहीं निकलता बच्चों की हिफाजत के लिए रात भर जागता रहता है घर में खाना तैयार था मैंने खाना खाया और बच्चों को लेकर छत पर चला गया मुझे अपने बच्चों से बहुत ज्यादा प्यार था खुदान फस्ता अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं मैं बच्चों की खुद निगरानी करना चाहता था चत पर तीन चड़ पाइयां थी मैंने अपनी चपाई दरमियान में कर ली एक तरफ चपाई पर मेरी बड़ी बेटी जिसकी उम्र 8 साल
थी लेट गई और मेरी दूसरी तरफ दूसरी चड़ पाई पर दोनों बच्चे लेट गए कुछ देर आपस में खेलने के बाद तीनों बच्चे सो गए और मैं उनकी निगरानी करने लगा न जाने कब मेरी आंख लग गी और कब मैं बेहोशी की नींद सो गया अचानक मेरी बच्ची जोर से चीख तो मेरी आंख खुल गई और जैसे मेरी चीख निकल गई वह बिल्ला मेरी बेटी की गर्दन को अपने दांतों में दबोचे खून पी रहा था मेरी चीख सुनकर वह बिल्ला भाग गया और पता नहीं कहां गया एकदम से गायब हो गया नजर नहीं आया इतने में मेरी बीवी और सास भी पर आ गए हमसाय के लोग भी अपनी-अपनी छतों पर आ गए
बच्ची तड़पती जा रही थी और जब बच्चों की चरपा पर नजर पड़ी तो मैं एक खोफनाक चीख के बाद बेहोश हो गया मेरे दोनों मासूम बच्चे खून में लगभग रपाई पर पड़े थे उनकी गर्दन जिस्म के साथ लटक रही थी उन मासूम जिस्मों पर बिल्ले के पंजों के निशान थे मुझे कुछ होश नहीं रहा जब होश आया तो मैं कमरे में नीचे पड़ा था और बायर सन में गांव के लोगों का ह चूंग था खो पुकार इस कदर दर्दनाक थी कि आसमान भी रो रहा था पता चला कि मेरी बेटी भी तड़प-तड़प कर खुदा को प्यारी हो गई मैंने दोनों हाथों से अपने आप को पीटना शुरू कर दिया मेरे ह
ोश उड़ चुके थे न जाने कैसी बहकी बहकी बातें करने लगा मासूम बच्चों के लाशें देखकर घर में मातम हो रहा था खून में भीगे कपड़े मुझे तड़पा रहे थे मेरे होश उड़ा रहे थे मेरी बीवी अपने सर के बाल नज रही थी पीट पीट कर खुद को लहू लोहान करना चाह रही थी कौन था जो उस वक्त रो नहीं रहा था हर कोई आंसू बहा रहा था मुझसे पूछा गया के इन लश का क्या करना है वापस ले जाना है या यही दफन करना है मैंने कहा नहीं लेकर जाऊंगा यही दफन करना है अपने घर वालों को भी मेरी बेहोशी में इतल जा चुकी थी वह भी चीखते वाले थे अपने बच्चों की ल
ाशें देख देख देखकर मेरे आंसू खुश्क नहीं हो रहे थे गांव के हर फर्द की कहानी मुझे सच लगने लगी थी मुझे मेरा मजाक महंगा पड़ा मेरे घर वाले भी आ गए उसके बाद मैंने तीनों मासूम बच्चों के खून में हाथ रंगे और कहा कि मुझे कसम है उस पैदा करने वाले की कि जब तक इन गांव की का खात्मा नहीं करन चैन से नहीं बैठूंगा अब मेरी जिंदगी का मकसद सिर्फ इन बलाओ का खात्मा होगा और कुछ नहीं मुझे बदला लेना है उनकी जान लेनी है मैंने इस अहद को हर हाल में पूरा करना है गुसल के बाद मेरे मासूमों को कफन की सूरत में सफेद लिबास पहनाकर ल
े गए और कब्रस्तान में दफना दिया एक साथ लाइन में छोटी-छोटी तीन कबड़े खोदी जा रही थी जहां उन्हें दफन करना था और मैं कपड़ों पर टेक लगाए आंसू बहाता रहा वहां बैठे-बैठे रात के साय फैलने लगे लेकिन मुझे इस जिंदगी से क्या लेना था अब मेरी दुनिया में रात भर कब्रस्तान ही रहा वहां ऐसे कई सियाह बिल्लों का सामना हुआ मुख्तलिफ सूरतें बदल-बदल कर बलाए मुझे खौफ जदा करती रही और मैं कुरानी आयात का वेद करता रहा लेकिन किसी ने मुझे नुकसान नहीं पहुंचाया रात गुजर गई गांव वाले मेरे पास कब्रस्तान आए मुझे तसल्ली दी और वापस ग
ांव ले गए मुझे हर चीज खाने को दौड़ती थी दिल चाहता था कि बलाओ का हात्मा कर डान लेकिन मैं कुछ भी नहीं कर सका एक हफ्ता तक गांव में रहा इस हफ्ता में गांव में बिल्कुल इसी तरह एक और वाकया हुआ उस बिल्ले ने एक और बच्चे का खून कर दिया किसी के पास इस मसले का हल नहीं था आम में लोग भी आते रहे लेकिन जिन्नात की यह बस्ती कायम रही यह कहानी सिर्फ एक घर की नहीं थी जहां अमिल लोग आते यहां तो घर घर यह वाकत रोमा हो रहे थे एक हफ्ते बाद मैं अपना सब कुछ लटा करर वापस शहर आ गया हमारे शहर से ननल गांव का फासला 400 मील था अब
मुझे किसी ऐसे बुजुर्ग की तलाश थी जिससे मैं बलाओ को खत्म कर डालता एक शाम में शहर के एक मजार पर बैठा अपने बच्चों के बारे में सोच रहा था और खुदा से दुआएं कर रहा था कि एक दरवेश मुझे नजर आए जो एक कोने में बैठे इबादत इलाही में मसरूफ थे मैं अपनी जगह से उठा और उनके पीछे जाकर बैठ गया काफी देर तक खामोश बैठा रहा जब वो बुजुर्ग इबादत इलाही से फारे हुए तो मेरी तरफ देखा उनकी आंखों में चमकती चेहरे पर नूर बरस रहा था ऐसे लगता था जैसे वह इंसान ना हो कोई फरिश्ता हो मैंने झुककर उन्हें सलाम किया उन्होंने मेरे सर पर
हाथ फेरा और बोले बेटा मैं जानता हूं तुम क्यों यहां बैठे हो तुम्हारे दिल में जो कुछ है मैंने पढ़ लिया है लेकिन बेटा जो तुम चाहते हो बहुत मुश्किल काम है इस काम में अक्सर लोग नाकाम हो जाते हैं और नतीजा मौत होता है वाकई बुजुर्ग ने मेरे अंदर की बात पढ़ ली थी बाबा जी मैं लुट गया हूं मैंने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया और वो मुझे तसल्ली देते रहे और बोले मैं जानता हूं अब तुम्हारी क्या ख्वाहिश है बाबा जी मैंने उन चड़ों का खात्मा करना है सिर्फ मेरे बच्चे उन्होंने जबाह नहीं किए बल्कि पूरे गांव के बच्चे हलाक
हो रहे हैं पूरे गांव में हर दूसरे तीरे दिन सफे मातम बिच जाती है बाबा जी मुझे इसका हल बताएं उन बुजुर्गों ने एक दफा फिर मेरे सर पर हाथ फेरा और कहा बेटे ठीक है यह बहुत जिम्मेदारी का काम है पूरे उतर गए तो अपने मकसद को पा लोगे और पूरे ना उतरे तो तुम्हारे बच्चों से भी तुम्हारा बुरा हाल होगा अच्छा सुनो एक वजीफा देता हूं इसे लगातार बगैर किसी नाग के पूरे 41 दिन करना है यह वजीफा रात 10 बजे शुरू करना है और जब तक मुकम्मल ना हो जाए पढ़ते रहना है यानी फजर की अजान से कबल खत्म कर है 1000 मर्तबा रोजाना पढ़ना है
इस दौरान तुम्हारे सामने बहुत कुछ आएगा मगर डरना नहीं खौफ जदा नहीं होना और यह तावीज गले में डाल लो इस ताबीज का यह फायदा होगा कि कोई भी मखलूक तुम्हारे जिस्म को हाथ नहीं लगा सकेगी वह बिला तुमसे प्यार और फौदा करके यह तावीज हासिल करने की कोशिश करेगा मुख्तलिफ शक्ल तब्दील करेगा लेकिन उन्हें तावीज नहीं देना अगर दे दिया तो फिर तुम अपना वजीफा मुकम्मल नहीं कर पाओगे यह वजीफा तुमने उसी गांव के कब्रिस्तान में करना है खुदा तुम्हारे मकसद में तुम्हें कामयाब करें बेटा नमाज की पाबंदी करनी है फौज कलाम से परहेज करना
है ज्यादा खाना पना नहीं किसी चीज के सहारे भी खड़े नहीं होना इन चीजों का ख्याल रखना इसके बाद वो बुजुर्ग उठे और मजार से बाहर निकल गए तावीज मैंने जेब में डाल लिया चेहरे पर खुशी के तासुर थे लेकिन वजीफा मुश्किल था कैसे करता अगर यह वजीफा ना करता तो मेरा मकसद भी पूरा नहीं होता अपने बच्चों के खून से रंगे हाथों से जो अहद किया था कैसे पूरा होता यह तमाम बातें में मजार की दीवार से टेक लगाई सोचता रहा रात भी इन्हीं ख्यालों में गुजर गई और सुबह हुई नमाज अदा की दफ्तर गया वहां तो मा की छुट्टी की दरख्वास्त दी जो
कुछ तग दो के बाद मंजूर हो गई आज घर से आए मुझे एक हफ्ता हो चुका था पीछे बीवी कैसी थी कुछ खबर नहीं थी दफ्तर में मेरे जिमे कुछ काम ज्यादा था जो मुझे दो दिन में पूरा करके देना था इसके बाद दो महीने की छुट्टी थी नवाज मैंने शुरू कर दी थी पांच वक्त की नमाज पढ़ता और रात भर जागता रहता कि अपने मकसद में ना काम ना हो जाऊं दूसरे दिन मैं सुबह दफ्तर पहुंचा इता कतला मिली मेरी बीवी खुदा को प्यारी हो गई वह बच्चों की जुदाई बर्दाश्त नहीं कर सकी बच्चों की फौत कीी के बाद बीमारी से उठ ना सकी और बच्चों के पास ही चली गई
खबर मिलते ही मैंने अपना काम दूसरे आदमी के सपोर्ट किया और गांव की तरफ रवाना हो गया तकरीबन 5:00 बजे गांव पहुंच गया वहां पहले की तरह मातम बिछी थी मेरी भी वही हालत थी मेरा तो अब सब कुछ लूट गया खुद को कैसे तसल्ली देता आंसू मुकद्दर बन चुके थे अब मेरा इस दुनिया में कौन था जिस के लिए मैं जीता एक दिल चाहा कि खुद को खत्म कर डालूं और अपने बच्चों के पास पहुंच जाऊं लेकिन दूसरे लमहे अपने अहद का ख्याल आया तो खुद को खत्म करने का ख्याल दिल से निकाल दिया मगरिब की नमाज के बाद बीवी को भी बच्चों के साथ दफन कर दिया ग
या अपने गांव जाने को दिल नहीं चाहता था मेरा सारा हनान तो यही था गांव जाकर क्या करता आज की रात फिर बी बच्चों के साथ ही गुजारी वहां कब्रिस्तान में पानी का इंतजाम मौजूद था जनाजा गाह के करीबी एक नलका था जहां से वजू करके इ की नमाज अदा की रात भर बीवी बच्चों के लिए दुआएं करता रहा और खुदा से अपने मकसद में कामयाब होने की रो रोकर दुआ की और अब मैंने बीवी बच्चों की कब्रों के साथ ही वजीफा की जगह का इंतखाब कर लिया कि अपने बच्चों के पास ही रहूं उस जगह को मैंने झाड़ियों और घास से साफ किया और कल से वजीफा शुरू कर
ने का मंसूबा बनाया जेब में हाथ डाला तो तावीज गायब था मेरा रंग एकदम उड़ गया कभी वह जेब देखी तो कभी वो लेकिन तावीज ना मिलना था ना मिला फिर ख्याल आया के तावीज तो शहर के दूसरे कपड़ों में भूल आया हूं मैं गांव की तरफ भागा जुबान पर कुरानी आयात जारी थी अजीबो गरीब किस्म की आवाजें मेरा पीछा कर रही थी जिनमें मेरे बच्चों की आवाजें थी बच्चों की आवाजें सुनकर मैं रुका लेकिन पीछे देखने ही वाला था कि ख्याल आया यह बला वगैरह की कोई साजिश है पीछे देखना मेरे लिए खतरनाक है अगर पीछे मुड़कर देखा तो यह मुझे खत्म कर देंग
ी इसलिए मैंने दोबारा भागना शुरू कर दिया और घर पहुंचा अब दिल में उल्टे सीधे ख्याल आ रहे थे क्या गन मेरे घर वालों ने मेरे वो कपड़े ो डाले तो तावीज तो खत्म हो जाएगा कुछ ख्याल आता कभी पूछ लू अगर तावीज ना मिला तो मैं वजीफा नहीं कर पाऊंगा मेरे उड़े रंग देखकर घर वाले समझ गए कि चुड़ैलों ने खूब जदा किया है लेकिन असल हकीकत का किसी को इल्म नहीं था आज बीवी की रस्में कुल थी नमाज के बाद मस्जिद में खतम गैरा का प्रोग्राम था इसी दौरान मुझे ख्याल आया कि दो मां के लिए गांव आया हूं हो सकता है लदा ने मैं मेरे कपड़े
बैग में रख दिए हो इसी ख्याल से उम्मीद की कुछ किरण नजर आई इसके बाद अपने बच्चों की आवाजें जो रात को मैंने सुने थी मुझे तड़पा रही थी हो सकता है मेरे अपने बच्चों की आवाजें हो जो मुझे पुकार र हैं जो मिन्नत समाजत कर रही थी कि अब्बू यह लोग हमें मार रहे हैं मेरे बच्चे मुझे पुकारते रहे और मैंने पीछे मुड़कर उन्हें देखना भी ना था कितना बेहिस हो चुका था कितना बेरहम इंसान था कि मैं अपने बच्चों को पीछे मुड़कर भी देखना गवारा नहीं किया फिर ख्याल आया कि यह बच्चे नहीं थे मुझे सिर्फ अपनी तरफ माइल करने के लिए उन चु
ड़ैलों ने बच्चों की आवाजें निका लकर मिन्नत समाजत पैदा की होगी अगर मुड़कर देखता तो मेरा खात्मा कर देते अजीबो गरीब कशमकश में उलझा हुआ था इसी उधेड़ बुन में खत्म की तरफ भी ध्यान नहीं दे सका कि मली साहब ने क्या पढ़ा है लोग कब गए मुझे होश ही नहीं आया पता तो उस वक चला जब मौलवी साहब ने मुझे बुलाकर कहा बेटा अब सिवाय सबर के और कुछ नहीं सब्र करो यही अल्लाह को मंजूर था खुद ने हिम्मत पैदा करो सब्र से काम लो इंसान के ऊपर ऐसे वक्त आते हैं मौलवी साहब की बातें सुनता रहा उसके बाद घर आ गया आते ही अपना बैग चेक किया
बैग में पड़े तमाम के तमाम सूट निकालकर चारपाई पर फैला दिए खुदा की कुदरत के वो सूट भी बैग के अंदर मौजूद था मैंने फोरी उस सूट को पकड़कर उसकी जेब में टटोलना शुरू कर दी तबीज साइड वाली जेब में मौजूद था तावीज को हाथ में पकड़कर चूमा कुछ तसल्ली हुई इसके बाद एक मोची के पास जाकर तावीज को दागे में फिरोक अपने गले में डाल दिया अब मैं मुतमइन था लोग घर में आ जा रहे थे रोना धोना मचा हुआ था रिश्तेदारों के बच्चे इधर-उधर खेलते हुए देखता तो आंखों में आंसू आ जाते और फिर हिम्मत से काम लेता कि खुदा को मेरे साथ ऐसा ही
मंजूर था लेकिन अपना अहद मुझे हर हाल में पूरा करना था मुझे उन डायनों का खात्मा करना था मैं दीवार के साथ टेक लगाकर बैठ गया खाने पीने को दिल नहीं चाहता था नजरों के सामने बच्चों के होन जदा लाशें घूम रहे थे जो मुझे कह रहे थे कि अब्बू जिन्होंने हमें मारा है उनसे इंतकाम लो हां मैं जरूर इंतकाम लूंगा जरूर बचा लूंगा मैं जरूर उनका खात्मा करूंगा यह प्लान त था और यह 41 दिन मैंने गांव भी छोड़ने का प्रोग्राम बना लिया कि आने जाने की दिक्कत से बेहतर है कि कब्रिस्तान में ही डेरा लगा दो बीवी बच्चों के दरमियान ही र
हूं लोग वापस अपने-अपने घरों को जाना शुरू हो गए मैंने भी कुछ बुने हुए चने कुछ साथ दिए और मगरिब की नमाज से फारे होकर कब्रिस्तान का रुख कर लिया अपनी सास को बता दिया कि कब्रिस्तान में ही वजीफा करने जा रहा हूं अगर जिंदा बच गया तो दोबारा मिलूंगा अगर ना बचा तो चुड़ने जीनाथ वगैरा अगर मेरी कुछ हड्डियां वगैरह छोड़ गए तो मेरी इन हड्डियों को मेरे बच्चों के साथ कबर में दफन कर देना सास ने बहुत रोका लेकिन जब मैंने अपने बच्चों से किया हुआ वादा याद दिलाया तो उन्होंने मुझे इजाजत दे दी कब्रिस्तान पहुंचकर बच्चों को
सलाम किया उनकी कब्रों को बौसा दिया और अपनी महसूस जगह पर बैठ गया ताबीज मेरे कले में था जिससे 99 फी खौफ कम हो चुका था और बुजुर्ग का बताया हुआ वजीफा मैंने अच्छी तरह याद कर लिया इशा की नमाज कब्रिस्तान में अदा की इसके बाद जब रात 10:00 बजे का टाइम हुआ तो मैं बुजुर्ग के बताए हुए तरीके के मुताबिक खड़ा हो गया और वजीफा शुरू कर दिया पूरी रात मुझे किसी किस्म की कोई चुड़ैल या कोई और चीज नजर नहीं आई अलबत्ता दोनों पांव और टांगों पर खड़ा रहने की वजह से सूझ गई थी फजर की नमाज से कबल ही मैंने वजीफा मुकम्मल कर लिय
ा और उसके बाद फजर की नमाज अदा करने के बाद कब्रिस्तान से चंद गज के फासले पर एक पुराने दफत के नीचे लेट गया रात भर जगने की वजह से जल्दी नींद के आ होश में चला गया उसके बाद मुझे कुछ खबर नहीं कि क्या हुआ जब आंख खुली तो दोपहर 1 बजे का वक्त था मेरे करीब खाना पड़ा था जो शायद सास ने घर से भेज दिया था क्योंकि बर्तन वैरा घड़ के थे खाने से फारिग होकर कब्रों के पास जा बैठा नमाज जोहर का वक्त हुआ तो नमाज अदा की यह सिलसिला चलता रहा तीन दिन इसी तरह गुजर गए मैं अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ा आज सुबह से स्याह बादल आसमान
पर फैल रहे थे मैं जोहर की नमाज से फारे होकर बच्चों की कब्र के पास बैठा कि एकदम अंधेरा हो गया ऐसा लगता था कि दिन ना हो बल्कि स्याह रात पारिश से बचने के लिए मेरे पास कोई सामान नहीं था अगर घर जाता तो तीन मील पैदल चल पड़ता बादल के गरजने और बिजली के चमकने से दिल दहल रहा था ऐसा महसूस होता जैसे चंद नमो बाद तूफानी बारिश शुरू हो गई और मेरा ख्याल दुरुस्त साबित हुआ देखते ही देखते बारिश के कतरे कब्रिस्तान की जमीन को बिगोने लगे उसके बाद हर तरफ ऐसे बारिश शुरू हो गई कि मैं खौफ जदा हो गया उसी पुराने बड़े से दर
ख्त के नीचे आकर बैठ गया मैं मिनटों में ही तमाम का तमाम देख चुका था गर्मियों में ही सर्दी महसूस होने लगी उस दरख्त का साया भी कुछ नहीं कह सका वहां पर बारिश के कतरे मुसलसल गिर रहे थे मैं जिक्र इलाही में मसरूफ हो गया अगर हिम्मत हार जाता तो मेरा कुछ नहीं बचता एक नया वाकया देखकर मैं खोफ जदा हो गया कब्रिस्तान में ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई बहुत बड़ी बला दरख्तों को उखाड़ उखाड़ कर फेंक रही है इतनी बड़ी बला मैंने जिंदगी में पहली मर्तबा देखी थी इस बला को देखने के बाद मेरी जुबान से विरद और तेज हो गया मैंने एक ब
ड़ी मुसीबत में गिरफ्तार हो चुका था एक बारिश दूसरा बला का सामना जो खतों को उखाड़ हुए मेरी जानिब बढ़ रही थी जब बला कदम मारती तो जमीन हिल जाती मुझसे कुछ दूर ही वो बिला रुक गई मैंने अपनी आंखें बंद कर ली क्योंकि मैं जानता था कि अब बिला मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगी अगर गजद आवाज मेरे कानों से टकराई जिसने मुझे चौका कर रख दिया यह गले से तवीज उता करर मेरे हवाले कर दो वरना आग लगा दूंगी खौफ की वजह से मैंने जल्दी-जल्दी तावीज उतारने की की लेकिन अचानक बुजुर्ग की बात याद आ गई बेटा बलाए तुमसे यह तावीज मांगेगी अगर दे
दिया तो नुकसान उठाओगे यह ख्याल आते ही मैंने हाथ रोक लि लिए और कहा आग लगा दो तावीज नहीं दूंगा उस जिन की आंखों में आग के शोले नवाया नजर आने लगे जो मेरे इर्दगिर्द गिरने लगे लेकिन मुझे इन शोलों से खौफ नहीं आया क्योंकि यह शोले मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे उसके हमले बेकार हुए तो वह वापस बढ़ा और उन्हीं दफन के दरमियान जाकर एक बिल्ले की शक्ल इख्तियार कर ली उस बिल्ले को देखकर मुझे बच्चों का नक्शा सामने आ गया जैसे उसने मेरे बच्चों के गर्तन को अपने लंबे दांतों से नोचा था मेरी आंखों से आंसू निकल आए वो बिल्ला
वहां से गायब हो गया मैंने घड़ी देखी थी असर का वक्त हो चुका था बारिश में ही वजू किया और नमाज अदा की सर्दी की वजह से पूरा बदन कांप रहा था बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी हर तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा था बादल के गरजने की आवाजें और बिजली की चमक इसी तरह जारी थी ऐसा लगता था जैसे आसमानी बिजली मुझ पर गिरेगी और मैं खत्म होकर रह जाऊंगा लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ मुसलसल आठ घंटे बारिश होती रही इसके बाद बारिश का जोर कम हो गया लेकिन सर्दी से मेरा बुरा हाल था ये ख्याल आया कि घर जाकर कंबल ले आऊं लेकिन फिर यह सोचक
र चुप रहा कि कंबल भीग गया तो और ज्यादा सर्द लगेगी बहरहाल मगरिब के बाद इशा की नमाज अदा की और पूरे 10 बजे अपनी मख सूस जगह पर वजीफे के लिए खड़ा हो गया वजीफा शुरू करने में अभी एक घंटा ही गुजरा था कि वही बिल्ला झाड़ियों की खलाता हुआ मेरे सामने आ गया मैंने अपनी आंखें बंद कर ली उसने फिर तावीज मांगा लेकिन मैंने तावीज नहीं दिया उसने बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रहा उसके क बाद कब्रिस्तान में रोशनी फैलना शुरू हो गई इस रोशनी में मुझे एक-एक चीज नजर आने लगी एक-एक कबर वाजे थी जनलम बा जोर-जोर से हंसने की आवाजें आन
े लगी और देखते ही देखते कब्रिस्तान की झाड़ियों से खूबसूरत लड़कियां निकलकर मेरे सामने आ गई यह चुड़ैल ऐसी बनी सबनी थी जैसे पहले दिन की दुल्हन हो सभी मुझे प्यार नजरों से देखने लगी और फिर उनमें से एक बोली शायद उनकी सरदार थी आप बहुत अच्छे हैं आओ हमारे करीब मैं तुम्हारे प्यार में डूब रही हूं मैं उनकी चाल जान चुका था वह मीठी नजरों से मुझे देखे जा रही थी और बोले जा रही थी कहने लगी मैं तुम पर बन मिठी हूं तुम्हारी बीवी से भी ज्यादा अच्छी हूं तुम्हारी बीवी से ज्यादा तुम्हें चाहूंगी यह तावीज मुझे दे दो मेरे
गले में डाल दो और मुझे अपनी दुलन बला लो मैं हमेशा तुम्हारी दासी बनकर ऊंगी आओ मेरे शहजादे यह तावीज मेरे गले में डाल दो असल बात तावीज की थी जिस वजह से वो मुझे हाथ नहीं लगा सकती थी वरना हो सकता था कि मैं पहले ही दिन उनका शिकार हो जाता और मैंने अपनी आंखें बंद करली और वजीफा जारी रखा कुछ देर बाद आंखें खोली तो मेरे सामने शहजाद आं ना थी बल्कि एक भयानक शक्ल वाली खार आंखों वाली लंबे नातों वाली उल्टे पांव वाली चूड़ने खड़ी थी अगर तुमने तावीज हमें नहीं दिया तो तुम्हारे बच्चों के साथ तुम्हारी भी कबर बना देंग
ी उनकी शक्ल देखकर मुझे खौफ आ गया और मैंने एक बार फिर अपनी आंखें बंद कर ली अपना वजीफा जारी रखा उसके बाद वह काफी देर मुख्तलिफ ड्राव नहीं आवाजें निकालती रही और फिर यब हो गई और दोबारा कोई चीज सामने नजर नहीं आई मेरी आलत ऐसी थी कि अब खड़ा भी ना हो हुआ जा रहा था इतना लंबा वजीफा था कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था अगर वजीफा छोड़ देता तो चिरन का शिकार हो जाता अगर नहीं छोड़ता तो कामयाबी होती लेकिन थकावट बहुत हो चुकी थी बुजुर्ग ने सच कहा था कि वजीफा करने में अक्सर लोग नाकाम हो जाते हैं लेकिन मैं नाकाम नह
ीं होना चाहता था वो रात भी गुजर गई बुजुर्ग ने सच कहा था कि वजीफा करने में बहुत से लोग नाकाम हो जाते हैं लेकिन मैं हर सूरत में इस वजीफे को मुकम्मल करना चाहता था नमाज फजर के बाद फिर कबर पर बैठ गया अब इतनी हिम्मत नहीं थी कि चल फिर सकता बच्चों की कबर देखकर दिलों दिमाग में एक जोश पैदा होता कि मुझे हर हाल में यह वजीफा पूरा करना है मेरी सास की मेहरबानी थी कि घर से खाना रोजाना आ जाता मैं उनका एहसान मन था हालांकि मेरा उनसे अब क्या रिश्ता था जिसकी वजह से रिश्ता कायम था वह तो मनो मती तले जाकर सो गई आज वजीफ
ा करते मुझे 10 रोज गुजर गए 11वां दिन था पांच नमाज बाकायदा से अदा करने के बाद मैं फिर रात को वजीफे के लिए खड़ा हो गया आज खड़ा होना मेरे लिए मुश्किल था बैठकर वजीफा करने की इजाजत नहीं थी और ा ही दायरा लगाना होता था शायद दायरा ना लगाने की वजह से गले में डाला हुआ तावीज था बहरहाल जो बुजुर्ग ने फरमाया था उस पर पूरा पूरा अमल कर रहा था ना चाहते हुए भी मुझे खड़ा होना पड़ा और वजीफा शुरू कर दिया आज फिर एक ही घंटा गरा था कि चंद खौफनाक शक्लों वाली चुड़ैल बलाए मेरे सामने आ गई आज उनके इरादे ज्यादा खतरनाक थे सबक
ी आंखों में खून उतर रहा था आते ही बोली अगर तुमने आज हमें तावीज ना दिया और यह जो तुम रोजाना करते हो ना छोड़ा तो तुम्हारा वह अंजाम करेंगी कि तुम्हारी हड्डियां तक चबा जाएंगी आज कुदरती बात थी एक तो खड़ा होना महाल था दूसरा उनकी सरतो से इतना खौफ आ रहा था कि दिल चाहा वजीफा अधूरा छोड़कर भाग जाऊं लेकिन ऐसा करने से सिवाय मौत के और कुछ नहीं था मैंने जब उनकी बात नहीं मानी तो वही चुड़ैल बोली इसके तीनों बच्चों की कपें खोदकर उनकी लाशें निकालो इसके सामने इन लाशों की हड्डियां जबाती हैं इतना सुनना था कि मेरी बर्द
ाश्त से बाहर हो गया दिल चाहा कि सब एक मिनट से पहले-पहले खत्म कर दूं लेकिन फिर खामोश रहा बर्दाश्त करना पड़ा उन चिड़ेल ने मेरे बच्चों की खबरें खोदने शुरू कर दी जूजू खबरें खोती रही मेरे दिल पर पत्थर चलते रहे मैं मजबूर बे बस उनका फेल देखता रहा जब उनके इस फेल का मुझ पर असर ना हुआ तो उन्होंने यह काम छोड़ दिया और एक मर्तबा फिर मेरी मिन्नत समाजत करने लगी मैंने दिल ही दिल में शुक्र अदा किया कि मेरे बच्चों के जिस्म तो महफूज रहे उनकी मेहनत समाजत का मुझ पर जरा भी असर नहीं था फिर उन्होंने शोले उगलने शुरू कर
दिए जो पूरे कब्रिस्तान में फैलते गए जहां-जहां पर शोला गिरता आग बड़क उठती मैं यह मंजिर भी अपनी आंखों से देखता रहा पूरे कब्रस्तान में आग लगी होती मेरे बच्चों की कपें खुदी हुई थी लेकिन कुछ भी नहीं हुआ हर चीज महफूज रही वजीफा खत्म होने वाला था फिर चुड़ैल नाकाम होकर वापस चली गई नमाज फजर अदा करने के बाद मैं उसी गफ के नीचे आकर लेट गया मेरे वजीफे का गांव वालों को यह फायदा जरूर हुआ था कि जब से मैंने वजीफा शुरू किया था गांव में किसी भी किस्म का वाकया नमा नहीं हुआ था शायद तमाम चुड़ैल सिर्फ मेरा ही खात्मा चा
हती थी गांव वाले खुश थे और गांव वालों से ज्यादा मैं खुश था क्योंकि औलाद की जुदाई का दुख मैं बेहतर जानता था मेरे बच्चों के साथ जो कुछ हुआ था किसी और के साथ होता नहीं देख सकता था अब तो हर रोज कोई ना कोई वाकया रोमा होता लेकिन सुबह जब देखता तो हर चीज अपनी असल हालत में होती वजीफा करने से मैं 20 दिनों में ही आधा रह गया दुनिया से राबता खत्म कर बैठा एक बात जो मुझे मालूम होती कि अब पांव और टांगों में इतनी हिम्मत आ चुकी थी कि रात भर खड़े रहना मेरे लिए कोई थकावट नहीं होती थी पहले त दिन मुझ पर बहुत भारी थे
इसके बाद आहिस्ता आहिस्ता हर काम आसान होता चला गया अब चुड़ैलों बलाओ से भी खौफ नहीं आता था उन गैबी मखलूक में रहने का आदी हो चुका था अभी आधी मंजिल बाकी थी यानी आधा फासला मैं तय कर चुका था आधा बाकी था आज 21वीं रात थी इशा की नमाज से फारे होकर रात 10:00 बजे में अपनी जगह पर खड़ा हो गया और वजीफा शुरू कर दिया आज की रात एक अजीब मंजर देखने में आया कि सारे गांव में जहरीला तुआ फैल गया जिसका असर मुझ पर भी हुआ धुआ इस कदर सयाह था कि आसमान पर चमकते चांद और सितारे नजर नहीं आ रहे थे काफी देर तक ये धुआ रहा उसके बाद
एक बड़ा जिन रुमा हुआ यह जिन शायद तमाम चनों का सरदार था हर कोई उसके सामने खड़ा था उसने आते ही एक आ से दरख्त को पकड़ा तो वो रखत जड़ों समेत जमीन से उखड़ गया उसके कदमों की आवाज कानों के पर्दे फाड़ देने के मुथरा दिव थी वह जिन जिन कपड़ों के ऊपर पांव रखता कपड़ों की लंबाई दो-तीन फुट अंदर दास जाती वह फुं काता मेरी तरफ बढ़ रहा था दोनों हाथों में दरख्त ऐसे उठा रखे थे जैसे हम लोग कोई लकड़ी लेकर चलते हैं उसकी शक्ल देखकर मुझे बचत आ गई मुझसे काफी दूर खड़ा होकर अपने हाथों को मेरी तरफ बढ़ाया जो मेरे जिस्म के कर
ीब आकर रुक गए व द गवाह अगर गले में तावीज ना होता तो उसके खौफनाक हाथ मेरी हड्डियों को रेजा रेजा कर देते अपने करीब उसके हाथों को देखकर मैंने खौफ से आंखें बंद कर ली और वजीफा जारी रखा और ना जाने क्या-क्या धमकियां वो मुझे देता रहा लेकिन मैंने उसकी तरफ ध्यान ही नहीं नहीं दिया और वजीफे में मशगूल रहा हाथ पांव और जिस्म कांप रहा था लेकिन हिम्मत से काम लिया अगर आज की रात मैं डर जाता तो उसने मुंह से एक फूंक मानी तो ऐसे लगा जैसे आंधी आ गई हो दूसरी फूंक से हरे बरे रफत को आग लग गई मुझ में खौफ और बढ़ गया मैंने
अपनी आंखें दोबारा बंद कर ली मेरे अंदर की हिम्मत जवाब देने लगी लेकिन मैंने तावीज नहीं दिया खुद वो उतार नहीं सकते थे यह वाकया भी गुजर गया और जिन के गायब होते ही तरफ तों में लगी आग खुद बखुदा बुझ गई फजर से कबल ही मैंने वजीफा मुकम्मल कर लिया और नमाज फजर अदा करने के बाद रहतो के बजाय गांव वापस आ गया इस बला का खौफ इस कदर दिल में असर हुआ कि मुझे बुखार हो गया गांव वाले मेरी हालत देखकर कांप गए घर जाते ही मैं चारपाई पर धरम से गिरा और बेहोश हो गया अब मंजिल मुश्किल थी चुड़ैल नहीं चाहती थी कि मैं अपने मकसद में
कामयाब लौटू बुहार की हालत में बेहोशी में मेरे मुंह से जिन्नात और चुड़ैलों की बातें निकल रही थी जो बात में मेरी सास ने मुझे बताई मेरी सास गांव के हकीम से दवाई ले आई जिससे मुझे आराम नहीं आया सास बोली बेटा अब चंद दिन आराम करो वजीफा वगैरह बाद में मुकम्मल कर लेना अब वैसे भी लगता है बुलाए गांव का रूह छोड़ गई हैं 20 22 दिन हो गए हैं कोई वाकया नहीं हुआ लेकिन मैं यह वजीफा नहीं छोड़ सकता था सास ने मुझसे एक बात की हमम ली कि अब हर रोज सुबह सवेरे घर आया करूंगा जो मैंने हमी भर ली अब मगरिब की नमाज अदा करने के
बाद मैं कब्रिस्तान चला जाता और सुबह सवेरे वापस आ जाता मेरी सास ने मेरी खुराक का खास ख्याल रखा अगर वह मेरे साथ तावून ना करती तो कभी वजीफा करने में कामयाब नहीं होता आज एक महीना गुजर चुका था 32 वां दिन था तीन गुना ज्यादा मंजिल पा ले थी अगर आप जरा भी भटक जाता तो कुछ भी हाथ नहीं आता गांव आने के बावजूद गांव वालों से राबता नहीं रखा क्योंकि दुनियावी बातों से परहेज था वजीफा करके वापस आता तो मेरी सास ने नाश्ता तैयार करके रखा होता मैं नाश्ता करके सो जाता और मेरी सास दरवाजा बंद कर देती ताकि मेरी नींद में ह
लाल अंदाजी ना हो अब मौसम बरसात शुरू हो चुका था हर रोज बारिश होती कभी दिन को होती कभी रात को गांव के गलियों में कीचड़ होता गांव से कब्रिस्तान का सफर बहुत अजियत नाक होता मुझे आते-जाते अजीबोगरीब आवाजों का सामना करना पड़ता आज अभी मैं बैडरूम में सोया ही था तो मेरी सास ने एक झटके से दरवाजा खोला इससे कबल ऐसा कभी नहीं हुआ था दरवाजे के जोर से खुलने की आवाज से मेरी आंख खुल गई उनका चेहरा उतरा था मैंने खरियत दरयाफ्त की तो बोली बेटा बाहर आओ खुदा खैर करे मेरे मुंह से ये अल्फाज निकले और मैं बिस्तर से उठकर बाहर
सैन में आ गया बाहर मेरे दफ्तर का आदमी शमशाद खड़ा था उसे अपने सामने देखकर मैं हैरान रह गया उसका चेहरा भी उतरा हुआ था जरूर कोई बात थी वह यहां कैसे पहुंचा यह वही जानता था मैंने कहा शमशाद अंदर आ जाओ कने बैठकर बातें करते हैं व बोला नहीं यार बस तु मेरे साथ शहर चलो अरे भाई हुआ क्या है कुछ बताओ तो सही मैंने परेशान होते हुए कहा अशरफ तुम्हारे वालिद साहब एक हादसे में इंतकाल कर गए हैं और वह इतना कहकर चुप हो गया मुझ पर जैसे बिजलियां से गिर पड़े आंखों से आंसुओं की बरसात शुरू हो गई कब मैंने बमुश्किल अल्फाज अद
ा किए बस यार रात 10 बजे और मैं आधी रात को ही चल पड़ा था मुझे कुछ समझ नहीं आ रही थी मैं क्या करूं एक तरफ वालिद साहब की मौत दूसरी तरफ वजीफा जो आखिरी मराल में था ना मैं आगे जा सकता था ना पीछे दरमियान में खड़ा अपनी बेबसी पर कायम रहा चलो अशरफ जल्दी चलो क्या सोच रहे हो वह दोबारा बोलने लगा मैं क्या जवाब देता 400 मील का सफर तय करके कैसे जा सकता था मैं भी वालदैन का एक लौटा बेता था और चार बहनों का एक ही भाई बहने शादीशुदा थी और मेरा वहां होना लाजमी था उसे मैंने कमरे में बिठाया मेरी सास भी परेशान थी वह असल
हकीकत जानती थी कि अगर वजीफा अधूरा रह गया तो मैं भी नहीं बचू अगर वहां ना गया तब भी बड़ा मसला था फैर सास ने कहा बेटा तुम जाओ अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा फारे होते ही चले आना किसी से ज्यादा बात करने की जरूरत नहीं जब वजीफा से फारिग हो जाओगे तब जाकर तफसील से हर किसी से बातें कर लेना मैं शमशाद के साथ घर से बाहर निकल पड़ा खुदा ने वाकई बेहतरी की कि बस तैयार मिल गई शायद उसे हमारा ही इंतजार था हमारे सवार होते ही बस चल पड़ी और तकरीबन 6 घंटे के अंदर हम दोनों दिल्ली पहुंच गए सुबह 6:00 बजे चले थे जब घर पहुंचे त
ो 12 बजे का वक्त था वहां सब मिलकर खूब रोया अब्बू का चेहरा बार-बार चूमा और जी भरकर आखिरी दीदार किया घर में चूके मेरा ही इंतजार था इसलिए जल्दी अब्बू जान की मयत को कब्रिस्तान ले जाकर सुपुर्द फाक कर दिया गया उसके बाद मैंने अपने दोस्त शमशाद को तमाम हकीकत बता दी और उसकी जिम्मेदारी लगा दी कि मेरे जल्दी वहां काम अंजाम दे मैं अब्बू जान के रस में कुल में शामिल हो जाऊंगा मेरी तमाम बातें व समझ चुका था और मैं कब्रिस्तान से सीधा बस स्टॉप आ गया और बस पर सवार हो गया कुछ देर बाद बस ने अपना सफर शुरू कर दिया बस गा
ंव के शहर में पहुंची तो रात के 9:00 बज चुके थे अब शहर से गांव का पैदल सफर तकरीबन 1 घंटे का था अगर सवारी मिल जाती तो 20-2 मिनट में सफर तय हो जाता लेकिन रात की तारीखी में इस वक्त गांव की तरफ जाने वाने कोई चीज नहीं थी और मैं अपना वक्त जाया नहीं करना चाहता था जोहर की नमाज वहां अब्बू को को दफन करने के बाद पढ़ ली थी असर और मगरिब की नमाज बस रोकर अदा की नमाज का छूट जाना वजीफे में नाकामी का सबब था अब शहर में नमाज इशा अदा की और एक गाड़ी वाले से बात की वो नहीं माना जब मैंने डबल पैसे देने को कहा तो मान गया
और फिर गांव के करीब उतार दिया अब पने हुए थे मैंने कब्रिस्तान की तरफ भागना शुरू कर दिया 10 मिनट में कब्रिस्तान पहुंचा रास्ते में कीचन की वजह से तीन-चार दफा गिरा लेकिन भागता रहा कब्रिस्तान से मेरे बच्चों की आवाजें आ रही थी अब्बू यहां नहीं आना यह लोग आपको मार देंगे अब्बू यहां ना आए यह लोग आपको मार डालेंगे मगर मैं मुसलसल भाग रहा था सांस फुले थे आवाजें मुसलसल मेरे कानों से टकरा रही थी मैं जानता था कि मेरे बच्चों की आवाजें चुड़ने चीख रही थी कि मैं वापस पलट जाऊं और वजीफा ना करूं और वह मुझे मार देंगे जि
ंदगी में कभी इतना नहीं दौड़ा था जितना आज इस हालत में दौड़ा अभी 10:00 बजने में कुछ मिनट बाकी थे कि मैं कब्रिस्तान पहुंच गया और बच्चों की कबोंपेटे उड़ चुकी थी जो जल्द ठीक हो गई कुछ मिनट में मुझे आराम मिल गया यह मिनट मेरे लिए बहुत कीमती थे जब पूरे 10:00 बजे तो मैंने खड़े होकर वजीफा शुरू कर दिया इस दफा कोई बला सामने नहीं आई सिर्फ अप्पा जान के कफन में लिफी लाश नजर आई जो चलते-चलते मेरे सामने लेट गई उन्हें देखकर मैं फस से कांपने लगा अब्बा की मैयत ने आंखें खोली इससे कबल के मेरे मुंह से चीख निकलती मेरे आ
वाज मेरे हलक में ही दब गई अब लाश की आंखों में आग के शोले निकलने लगे और बोले बेटा तुम यह सब क्या कर रहे हो चलो छोड़ो और चलो मेरे साथ जल्दी छोड़ो मैं भला वजीफा कैसे छोड़ सकता था मैंने आंखें बंद कर ली अब्बू की मैयत ठी और उसने मेरे बच्चों की कबे खोदना शुरू कर दी अगर तुम शहर ना गए और यह वजीफा ना छोड़ा तो मैं तुम्हारे बच्चों को लेकर शहर चला जाता हूं वह इस कदर तेजी से कब्रों से मट्टी हटा रहे थे जैसे यह बच्चे उनकी औलाद ना हो लेकिन अब्बू बला ऐसा क्यों कर सकते थे मुझे वजीफे से क्यों रोक सकते थे यह भी कोई
बला है जो साजिश कर रही है यह उसकी चाल है मेरे जहन में यह बात आई तो जहन मुतमइन हो गया चंद मिनट बाद वह लाश एक मर्तबा फिर मेरे सामने आकर लेट गई और आंखें फाड़ फाड़ कर मेरी तरफ देखने लगी मैंने आंखें बंद कर ली जब दोबारा आंखें खोली तो लाश एक ुए की शक्ल में गायब होना शुरू हो गई आज की रात मुझ पर बहुत भरी थी लेकिन खुदा ने मेरी मदद की और मैंने आज की रात भी वजीफा मुकम्मल कर लिया फजर की नमाज वहीं अदा की इसके बाद गांव वापस आ गया मेरी सांस मुझे देखकर बहुत खुश हुई उनकी जान में जान आई मुझे वजीफा मुकम्मल करने का
बताने की जरूरत ना रही वो खुद ही बे बोली बेटा तुम्हें जिंदा देखकर मैं जान चुकी हूं कि तुमने आज की रात भी वजीफा मुकम्मल कर लिया खुदा तुम्हारा मकसद पूरा करे वह मेरे बच्चों की नानी थी उन्हें भी मेरे बच्चे बहुत प्यारे थे दूसरा शायद उनके घर कत्ल हुए थे इसलिए ज्यादा प्यार करती थी कि मेरे घर वाले कुछ बातें ना बनाए खैर ये मेरी अपने सोचे थी उन्होंने मेरा नाश्ता तैयार किया और मेरा बिस्तर दुरुस्त करके खुद काम में मसरूफ हो गई मैं नाश्ते से फारिग होकर जाकर सो गया और आजब आदत जोहर से कबल ही मेरी आंख खुल गई नमाज
जोहर अदा करने के बाद मैं दोबारा कमरे में बैठा जिक्र इलाही करता रहा और असर का वक्त हुआ तो वह भी नमाज अदा की मैंने अपनी सास को अपने अब्बू के बारे में बताया कि यूं हम वहां पहुंचे और जनाजा से फारे होकर सीधा वापस आ गया खुदा का शुक्र है और आपकी दुआएं हैं कि मैं इस वक्त पर पहुंच गया वरना खुदा जाने क्या होता मेरी सास ने मेरी बात काट डाली और फिर शहर की बातें शुरू कर दी मैंने कहा कल सुबह शहर जाकर हाथ डाल कर आता हूं ताकि वहां के बारे में हालात मालूम होते रहे मगरिब की नमाज के बाद ही कब्रस्तान चला गया और वह
ां ही निशा की नमाज अदा की इसके बाद 10 बजे वजीफा शुरू कर दिया एक हफ्ता इसी तरह गुजर गया चुड़ैलों और पलाओ ने रंग रंग की रुकावट डाली लेकिन खुदा हर मौके पर मेरे साथ रहा और मैं कामयाब होता रहा आज मैं बहुत खुश था आज 40 सवीं रात थी और इसके बाद सिर्फ एक और रात थी और उसी एक रात में मुझे मेरी मंजिल मिल जानी थी एक बहुत बड़ा जिन जिसने जमीन से बाहर निकलना था और अपने आप को मेरी गुलामी में देना था उसके बाद मेरा काम शुरू हो जाना था आज की रात मेरे लिए बहुत अहम थी जोहर के वक्त सोकर उठा तो गुसल किया नमाज जहर अदा क
ी इसके बाद सास से बातें होती रही मेरे तीनों साले शाम के बाद घर आते थे तीनों साले शहर में काम करते थे जब से वजीफा शुरू किया था सास ने सख्ती से मना कर रहा था कि मुझसे ज्यादा गुफ्तगू ना की जाए जिस मकसद के लिए यहां आया हूं वह पूरा करने थे बाद में जो चाहे जितनी चाहे बातें कर लेना उन्होंने अपनी मां की बातों पर पूरा अमल किया खैर दिन गुजर गया मगरिब की नमाज से फार होकर कब्रिस्तान चला गया अगले दिन जहर की नमाज के बाद कब्रिस्तान पहुंच गया कब्रिस्तान पहुंचने के बाद बच्चों की कमरों को बौसा दिया उनके लिए दुआएं
की और नमाज इशा से फारे होकर 10 बजने का इंतजार करने लगा आज जान भी पूरे जौबन में था इसकी रोशनी में कब्रिस्तान की हर चीज साफ दिखाई दे रही थी बादल का कहीं नामो निशान नहीं था दिन के वक्त बादल इधर-उधर आसमान पर घूम रहे थे लेकिन अब वह भी खत्म हो गए 10:00 बजे तो मैं अपनी मख सूस जगह पर खड़ा हो गया और वजीफा शुरू कर दिया तकरीबन दो घंटे के बाद कब्रिस्तान में से कबर फटी उसमें से एक हड्डियों का ढांचा निकला जो मेरी तरफ बढ़ने लगा ढांचे को देखकर मैं खौफ से पसीना पसीना हो गया उसके बाद कबर फटती रही और ढांचे निकलते
रहे यह मंजर 40 दिन में पहली बार देखा था उनके सर सही सलामत थे लेकिन जिस्म ढाचर्य सूते कि मैं चीखते चीखते रह गया मेरे आसपास की भी कबे पटी तो उनमें से भी ऐसे ही ढांचे निकलने लगे सर के बाल लंबे-लंबे दांत बाहर को निकले हुए थे मेरे इर्दगिर्द घूमने लगे मेरा खफ से बुरा हाल था काफी देर बाद वो ढांचे मुझे खौफ जदा करते रहे इसके बाद वापस कमरों में चले गए और कपें दोबारा बंद होना शुरू हो गई मैंने शुक्र का कदमा पढा उनके रायप हो जाने के बाद कब्रिस्तान में एक बड़ा हजू नजर आया जो मेरे करीब आ गया उन्होंने चारपाई प
र एक लाश उठा रखी थी मेरे करीब ही उन्होंने चारपाई रख दी और चारपाई के स्किस बैठ गए अचानक उस लाश का कफन गायब हो गया और वह मुर्दा उठकर बैठ गया मुर्दा अभी उठाई था के तमाम हजू चीखे मारता हुआ कब्रिस्तान के इधर-उधर भागने लगा मुझे भी उससे बहुत ज्यादा खौफ आया जब उसे सामने कोई आदमी नजर नहीं आया तो वो मेरी तरह पड़ा मैं एक मर्तबा फिर खौफ से दरस गया जिसम में जैसे जान ना रही गिरते गिरते बचा इसके बाद मैंने आंखें बंद करके वजीफा ऊंची आवाज में पढ़ना शुरू कर दिया ताकि खौफ खत्म हो जाए चंद रमो के बाद वोह मैयत और चारप
ाई दोनों गायब हो गए मैं अभी तक खौफ से का रहा था उसके यब हो जाने के बाद कुछ देर सुकून रहा उसके बाद मेरे एक बेटे फिर दूसरे फिर तीसरे तीनों बच्चों की कबरे फटी और मेरे तीनों बच्चे कब्रों से कफन समेत निकल आए गो के ये भी चिन्नाथंबी अच्छा लगा मुझे जरा भी उनसे खौफ नहीं आया तीनों मासूम बच्चे काफी देर तक मेरी नजरों के सामने रहे और फिर बोले अब्बू घर भाग जाएं घर भाग जाए उनके ये अल्फाज सुनकर मैंने आंखें बंद कर ली मैं जानता था कि जिन्नात मेरा वजीफा मुकम्मल नहीं होने देंगे जब दोबारा आंखें खोली तो बच्चे गायब थे
और कबर उसी तरह बंद थी चंद सेकंड बाद मेरी बीवी की मैयत मेरे सामने थी व बोली मेरे सरताज मुबारक हो तुम अपने वजीफे में कामयाब हो गए तुम्हारे वजीफे का वक्त खत्म हो गया अब तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता छोड़ दो तुमने अपना मकसद पा लिया यह भी एक चाल थी बीवी ऐसा नहीं कह सकती थी क्योंकि अभी एक दिन बाकी था यह भी जिन्नात की चाल थी इस बार भी मैंने आंखें बंद कर ली चंद मिनट बाद वो लाश भी हाइप होगी और मेरा वजीफा खत्म हो गया मैं वजीफे से फारे होकर फजर की नमाज अदा की अपने बच्चों की कब्रों को चूमा और कहा मेरे
बच्चों तुम्हारा इंतकाम तुम्हारा बाप जरूर लेगा जम से किया हुआ वादा जरूर निभाएगा इसके बाद मैं घर आ गया मुझे बुजुर्ग ने रात के वाक्यात किसी को बताने की इजाजत नहीं दी थी जब तक मैं अपना वजीफा पूरा नहीं कर लेता किसी को कुछ नहीं बता सकता था खुदा का लाख-लाख शुक्र है कि मैं अपनी मंजिल से आज सिर्फ एक कदम के फासले पर खड़ा था नाश्ता करके मैं जाकर सो गया हबे ममू जोहर के वक्त बया वसल किया नमाज अदा की सास से इधर-उधर की बातें की मेरी कामयाबी पर वह दिली तौर पर खुश थी गांव वालों भी खुश थे किन 40 दिनों में गांव मे
ं कोई वाकया नहीं रूमा हुआ कोई बच्चा कत्ल नहीं हुआ हर कोई सुकून के साथ अपने काम में मगन था बच्चे भी गलियों में खेलते नजर आते असर की नमाज का वक्त हुआ तो नमाज असर अदा की अब चेहरे से ऐसा लगता था जैसे एक दरवेश हो दाढ़ी बढ़कर काफी लंबी हो गई मुछे भी बढ़ चुकी थी सर के बाल लंबी-लंबी जुलफे बन चुके थे कोई मुझे पहचान नहीं सकता था कि मैं पहले क्लीन शेव अशरफ था नमाज मगरिब से फारे होकर मैं सीधा कब्रिस्तान चला आया वहां काफी देर बैठने के बाद नमाज इशा आ की इसके बाद 10 बजे वजीफे के लिए खड़ा हो गया आज आखिरी रात थी
कोई भी चीज नजर ना आई जब वजीफा खत्म हुआ तो चंद कलमा थे जिन्हे पढ़ना था वो कलमा शुरू किए ही थे कि जमीन पर जैसे जलजला आ गया मैं ब मुश्किल समला इसके बाद मेरे सामने की जमीन फटना शुरू हो गई बहुत बड़ी बलाव जमीन से उपर आई उसे देखकर मैं मैं लस गया काफी देर तक मैं उस बदसूरत बला को देखता रहा उसके बाद एक गदार आवाज मेरे कानों के पत्र पर्दों से टकराई हुकम करो आका मैं तुम्हारे सामने हाजिर हूं जो कहोगे वैसा ही होगा मैं कलमा खत्म कर चुका था और फिर खुद पर फूंक मारी बुजुर्ग के कहने के मुताबिक मैं बला से मुखातिब ह
ुआ अपनी उंगली की अंगूठी मेरे हवाले कर दो जिन ने अंगूठी उतार कर मेरे हवाले कर दी जिन नाथ चले मेरे कब्जे में थी मैंने कहा अब तुम एक इंसानी शक्ल में आ जाओ वो एक खूबसूरत शक्ल में मेरे सामने आ गया उसकी अंगूठी मैंने अपनी उंगली में पहन ली और नमाज फजर अदा की उसके बाद उसे वापस भेज दिया और मैं घर आ गया अपनी सास को मुबारकबाद दी अब दुनिया की हर चीज मेरे हाथ में थी मैं एक बहुत बड़ा आदमी बन चुका था चुड़ल मेरे सामने नौकरानी की हैसियत रखती थी सास ने नाश्ता तैयार किया और मैं नाश्ते सफारी होगर कमरे में सो गया असब
े आदत जहर से कबल ही आंख खुली गुसल किया नमाज जर के बाद शुकराने के नफल अदा किए इसके बाद अपने बच्चे से किए हुए अहद को पूरा करने के लिए सा से बात की तमाम गांव वालों को इकट्ठा करें और उनके सामने हुनी बिले का खात्मा करेंगे यह बात मेरी सास को पसंद आई और मगरिब की नमाज से कबल तमाम गांव वालों को स्कूल की ग्राउंड में जमा किया गया गांव वालों को जब मालूम हुआ कि मैं एक बहुत मुश्किल वजीफे में कामयाब हो गया हूं तो उनकी खुशी की इंतहा ना थी असर की नमाज के बाद लोग स्कूल के ग्राउंड में जमा हो गए मैं भी वहां पहुंच ग
या गांव वालों को खुश देखकर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था उन सब की नजर में एक मैं अजीम मात्री बन चुका था कुछ देर के बाद मैंने वही कलमा पढ़े गांव वालों की नजरों के सामने एक बड़ा तूफान आया उसके बाद ग्राउंड में धुआ ही धुआ जमा होने लगा धु में ही जिन जाहिर हुआ इस अंदाज में बोला हुकम मेरे आका गांव वाले इस जिन की शुगल सूरत देखकर खौफ जदा हो गए लेकिन यह जिन मेरा गुलाम था इसलिए वह घरों को ना भागे मैंने कहा इस बिल्ले को सामने हाजिर किया जाए जिसने मेरे बच्चों और गांव वालों के बच्चों की जान ली है हुक्म की त
मील की जाती है यह कहकर एक मर्तबा फिर दुआ ग्राउंड में फैला और जिन गायब हो गया और कुछ लम बाद उसी दुआ में उस जिन के इर्दगिर्द तकरीबन छह बिल्ले खड़े थे यह वही थे जिन्होंने गांव वालों की नींदे हराम कर रखी थी और बच्चों का खून पिया था उनको कत्ल किया था मैंने कहा अपनी असली हालत में आ जाओ इन बलाओ ने अपने रूह बदले और गांव वालों के सामने खौफनाक शक्लों में जिन खड़े थे उनके लंबे-लंबे दांव थे और चेहरे बहुत अजीबोगरीब और भयानक थे उनके दांत खून में डूबे थे शायद उन्होंने हमारे गांव के अलावा दूस गांव में भी इसी तर
ह आफत मचा रखी थी मैंने कल मात पढ़कर एक चिन पर फूंक मारी वह भयानक किस्म की आवाजें निकालने लगा और साथ ही साथ उसका जिसम धुआ की शक्ल इख्तियार करने लगा इसके बाद वो एक पत्थर बन गया पत्थर में से इसी तरह चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगी गांव वाले यह तमाशा देख रहे थे फिर पत्थर में आग बढ़ ग और पत्थर जलकर राख हो गया यह सब क्या हो रहा था मैं खुद हैरान था फिर कुछ जमीन फटी और राख जमीन के अंदर चली गई ची हों की आवाजें थम गई ये एक जिन की मौत थी सब गांव वालों ने देखी अब मेरे सामने पांच जिन खड़े थे मैं कलि मात पढ़
पढ़कर उन पर फूंके मारता रहा और जिस तरह पहला जिन बरा था इसी तरह बाकी भी मनने लगे पहले धुआ धुए से पत्थर और पत्थर में आग बड़क उठने और फिर राख बनने के बाद जमीन में समा जाते उन बलाओ का खात्मा हो गया जिन्होंने बच्चों की जान ली थी अब कब्रस्तान जाना था और वहां चुड़ैलों को आग लगाने थी उनका खात्मा करना था मेरे कहने पर जिन गायब हो गया मैंने सुकून का सांस लिया मेरा मकसद पूरा हो चुका था मैंने बदला ले लिया गांव वाले मेरी इस कामयाबी पर बहुत खुश थे और मुझे दुआएं दे रहे थे गांव की बूढ़ी औरतें बार-बार मेरा सर चू
म रही थी वह गांव अब इन बलाओ से पाक हो चुका था जिन पर जिन्नात ने कब्जा जमा रखा था मगरिब की नमाज से फार होकर मैं सीधा कब्रिस्तान गया वहां पर भी वही कलमा पढ़े जिन हाजिर हुआ उसे मैंने हुकम दिया कि उस कब्रिस्तान के तमाम चुड़ैलों को हाजिर करो चंद दनमों में तमाम चुड़ैल मेरे सामने थे यह वही चुड़ैल थी जो कल तक मुझ पर हावी थी और मुझे जान से मारने की धमकियां दे रही थी आज हाथ जोड़ जोड़कर मिन्नतें कर रही थी कि हमें छोड़ दो हम यहां से हमेशा के लिए चली जाएंगे इससे कबल आपने हमारे सरदान को खत्म किया है हमें छोड़
दें हम भी इस दोबारा इस गांव का रुख नहीं करेंगे उन्होंने मुझे वास्ते दिए मिन्नतें की लेकिन उन पर तरस कर के मैं इंसानी जिंदगी तबाह नहीं करना चाहता था मैंने कल मात पढ़े और उन पर फूक मारी पूरे गांव में चुड़ैलों की चीख पुकार मच गई मेरे सामने वह तड़पने लगी उसके बाद धुए से कब्रस्तान में फल गया और पत्थरों में बद तब्दील हुआ फिर उन पत्थरों को आग लग गई और फिर वह पत्थर जमीन में समा गए उनका खात्मा करने के बाद मैं वापस गांव आ गया मेरा जहन मुतमइन था मैं पुर सुकून हो चुका था गांव वालों को रेलों के खात्मे की खब
र सुनाई गांव के लोग खुशी में मेरे नारे लगाने लगे मैंने तमाम गांव वालों से कहा आप सब लोगों को अब किसी किस्म का कोई खतरा नहीं आप आज के बाद यहां कोई गैबी कुवत नहीं आएगी मेरा मकसद पूरा हो चुका है अब यहां किसी का खून नहीं होगा होगा किसी मां-बाप के सामने उसके बच्चों को जुदा नहीं किया जाएगा आज की रात मैं पुर सुकून सोया फजर की अजान से कबल ही आंख खुल गई और नमाज फजर अदा की उसके बाद मैंने गांव छोड़ दिया वापस शहर आ गया वालिद साहब के रस्म कुल में शिरकत सी मां से गले मिलकर खूब रोया बहनों से मिलकर खूब रोया बहन
े शादीशुदा थी और छोटी बहन खाव के साथ अम्मी के पास रहती थी इसलिए मैंने दरवेशी लाइन इख्तियार कर ली और दीने तबलीग का काम संभाल लिया कुछ अरसा गुजरने के बाद पाकिस्तान हिंदुस्तान से अलहदा हो गया और मैं पाकिस्तान आ गया बाकी की जिंदगी यहां ही गुजरी दुनिया से दिन उ चाट हो गया है दरवेशी लाइन में बहुत लुक है आज यहां होता हूं तो दूसरे दिन कहीं और मेरा कोई ठिकाना नहीं और ना ही कोई ठिकाना बनाना चाहता हूं खुदा की रा में अपनी जिंदगी बस कर रहा हूं अब बूढ़ा हो गया हूं ना जाने किस शहर में किस गांव में मौत हो जाए उ
सके बाद वह बुजुर्ग मुझे दोबारा नहीं मिले शायद वह हिंदुस्तान में ही कहीं रह गए बनों ने बहुत तलाश किया लेकिन वह नहीं मिले अगर खुदा को मंजूर हुआ तो एक दिन जरूर उनको तलाश कर लूंगा आप भी मेरे लिए दुआ करें कि खुदा मुझे उन बुजुर्ग से दोबारा मिलवा दे नीचे कमेंट में जरूर बताइए आपको कहानी कैसी लगी और हमारे चैनल को सब्सक्राइब जरूर कीजिए शुक्रिया
Comments